Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Patmeshwari Devi Temple in Gonda where Lord Shiva and Maa Sati had spent a night

लखनऊ से तीन घंटे दूर है पटमेश्वरी मंदिर, शिवजी और मां सती यहां रुके थे एक रात

  • यूपी की राजधानी लखनऊ से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर तीन घंटे की ड्राइव पर मां पटमेश्वरी का मंदिर है। पुराणों में लिखा है कि भगवान शंकर और माता सती यहां एक रात रुके थे। किवदंती है कि 400 साल पहले यहां एक आततायी राजा का वध कर मां स्थापित हो गईं।

Ritesh Verma हिन्दुस्तान टीम, रमेश पांडेय, धानेपुर (गोंडा)Thu, 21 Nov 2024 07:31 PM
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उत्तर प्रदेश (यूपी) के गोंडा जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर धानेपुर थाना के मेहनौन गांव के बाहर मां पटमेश्वरी देवी का मंदिर स्थापित है। मां पटमेश्वरी देवी का मंदिर लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां हर सोमवार और शुक्रवार को पूजा अर्चना करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान शिव ने माता सती के साथ यहां विश्राम किया था। पहले इस स्थान को गुप्ते देवी के नाम से जाना जाता था। बाद में यहां मां पटमेश्वरी देवी मंदिर बना।

पूर्व सांसद और अयोध्या के प्रख्यात संत रामविलास वेदांती कहते हैं कि पटमेश्वरी मंदिर हजारों वर्ष पहले का सिद्ध स्थान है। यहां पर भगवान भोलेनाथ ने सती के साथ विश्राम किया था जिसका जिक्र पुराणों में है। सतीसह महादेव: मेहनौनमपुस्थितम्, एक रात्रौ स्थित्वा च पुनर्गत: अगस्त्य आश्रमम्। वेदांती कहते हैं कि त्रेता युग में एक बार भगवान भोलेनाथ मां सती के साथ अगस्त्य ऋृषि के आश्रम कथा सुनने जा रहे थे। यहां रात्रि में उन्होंने माता सती के साथ गुप्त रूप से विश्राम किया और फिर अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। तब से यह स्थान गुप्ते देवी के नाम से विख्यात रही जो अब मां पटमेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है।

पूरे लदई गांव के रहने वाले रामानंद तिवारी बताते हैं कि यहां पर सैकड़ों वर्षों तक कोई मंदिर नहीं था। सब कुछ खुले में था। मंदिर बनाने का प्रयास कुछ लोगों ने किया लेकिन सफल नहीं हुए। एक दशक पहले लोगों ने मां की पूजा-अर्चना कर मंदिर बनाने की अनुमति मांगी, जिसके बाद मंदिर का निर्माण कराया गया है। मुख्य द्वार पर गुप्तेश्वरी देवी का गुफारुपी मंदिर है, जिसकी विधिवत स्थापना शेष है।

400 साल पहले आततायी राजा का वध कर स्थापित हुईं मां सती

यहां पर देवी पिंडी रूप में विराजमान है। यहां मां का आविर्भाव करीब चार 400 वर्ष पुराना बताया जाता है। किंवदंतियों के मुताबिक उस समय एक आततायी राजा से जनता परेशान थी। लोगों ने देवी की स्तुति की और राजा से मुक्ति दिलाने की कामना की। तब देवी प्रकट हुईं और तलवार से राजा का वध कर दिया। इसके बाद इसी स्थान पर पिंडी के रूप में स्थापित हो गईं। तब से आज तक यह स्थान भक्तों की आस्था का केंद्र है। साल भर प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को पूजा के लिए भीड़ आती है। शारदीय और वासंतिक नवरात्र में प्रतिपदा से पूर्णिमा तक प्रतिदिन बड़ी संख्या में दूर-दूर के जिलों के लोग भी दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।

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