बोले उरई: खुद ही खरीदते हैं डंडा-वर्दी, मानदेय का भी रहता इंतजार
Orai News - बोले उरई: खुद ही खरीदते हैं डंडा-वर्दी, मानदेय का भी रहता इंतजार बोले उरई: खुद ही खरीदते हैं डंडा-वर्दी, मानदेय का भी रहता इंतजार
उरई। चाहे सर्दी हो धूप हो या बारिश, हमें ड्यूटी ईमानदारी से करनी है। सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा अपने कंधों पर रखना है। हम लोगों की सुरक्षा की चिंता करते हैं पर हमारी परेशानियों से किसी को कोई लेना देना नहीं है। प्रांतीय रक्षक दल के जवान संसाधनों के अभाव, ड्यूटी लगाने में भेदभाव, काम के अनुरूप पैसा न मिलने जैसी कई समस्याओं से परेशान हैं। पीआरडी जवानों को हर माह ड्यूटी भी नहीं मिलती है। इतना ही नहीं, अपने पैसों से ही वर्दी, डंडा और जूते तक खरीदने पड़ते हैं। बावजूद इसके तमाम परेशानियों के बीच ये चौराहों पर मुस्तैद दिखते हैं। चौराहों और प्रमुख सड़कों पर ट्रैफिक का दायित्व संभाल रहे प्रांतीय रक्षक दल (पीआरडी ) जवान अपनी ड्यूटी तो पूरी तत्परता से निभा रहे हैं पर इन्हें सुख-चैन नसीब नहीं होता। धूप-छांव की परवाह किए बिना सुरक्षा व्यवस्था में लगे रहते हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों को सुरक्षा देने वाले जवानों को संसाधनों और सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा। न दिन में सुकून है और न रात में चैन। जब चाहे जहां चाहे ड्यूटी लगा दी जाती है। संख्या के अनुसार पर्याप्त ड्यूटी भी नहीं मिलती, ऐसे में कई-कई दिन तक घर में ही बैठना पड़ता है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान के सामने यह दर्द अनिल कुमार ने बयां किया। वह लंबे समय से पीआरडी जवानों के हकों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनका कहना है कि कुछ स्थानों पर मूल कामों से हटकर काम लिया जाता है। कई थानों में चतुर्थ श्रेणी का भी काम लिया जाता है।
जिले में 586 पीआरडी जवान तैनात हैं जिसमें 30 महिलाएं भी हैं। ये जवान थाना, यातायात व्यवस्था, बिजली घर, कॉलेज, कस्तूरबा विद्यालय सहित अन्य प्रशासनिक भवनों पर ड्यूटी करते हैं। पीआरडी जवान उत्तम सिंह ने बताया कि उस समय अधिक परेशानी होती है जब इन्हें ड्यूटी लगवाने के लिए रुपये देने पड़ते हैं। इतना कम मानदेय, भत्ता होने के बाद जब रुपये देने पड़ते हैं तो परेशानी होती है। लगातार दो महीने तक ड्यूटी नहीं मिलती। पूरे साल में चार से पांच महीने ही काम मिल पाता है। ऐसे में परिवार को पालने में बड़ी मुश्किल होती है। पीआरडी जवान रामकरण ने बताया कि जहां भी ड्यूटी लगाई जाती है वहां उतना ही काम करते हैं जितना होमगार्ड करते हैं। इसके बाद भी हमें उनके बराबर मानदेय नहीं मिलता है। जवान जगदीश ने बताया कि इसके पहले तो पीआरडी जवानों का भत्ता 375 रुपये ही था। अब गनीमत है कि 395 रुपये हो गया है। तब सरकार ने अनुपूरक बजट में पीआरडी जवानों के ड्यूटी भत्ते में बढ़ोतरी की व्यवस्था की थी, लेकिन शासनादेश जारी न होने से पीआरडी जवान इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं। उन्होंने बताया वर्ष 2019 मार्च में उनका भत्ता 250 से बढ़कर 375 कर दिया गया था इसके बाद 375 से बढ़कर 395 रुपये कर दिया गया। लेकिन ड्यूटी 60 किमी दूर लगाने में पेट्रोल खर्च में ही सब रुपये खर्च हो जाते हैं। वह लोग घर का खर्च कैसे चलाएं यह उनके आगे सबसे बड़ी समस्या है। नौकरी की बात करें तो वेतन शुरू होते ही खत्म हो जाता है, पीआरडी जवान को पुलिस विभाग की ओर से डंडा भी नहीं दिया जाता है। उसको भी अपनी जेभ से खरीदना पड़ता है। जिसके चलते वह ड्यूटी कर पाते हैं। वहीं आने-जाने वाले लोग दुत्कार देते हैं। अगर ट्रैफिक नियमों का पालन न करने वाले वाहन सवारों को रोक देते हैं तो लोग हमसे बदसलूकी करते हैं। उन्होंने कहा कि कम से कम भत्ता नहीं मिलता तो इज्जत ही मिले। हमे न तो इज्जत मिल रही है न ही भत्ता। यह कैसा उनके साथ व्यवहार किया जा रहा है। इसको लेकर पीआरडी जवान हमेशा परेशान रहते हैं और अपना दर्द किसी को बयां नहीं कर पाते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक जवान ने बताया कि अधिकारी नजदीक ड्यूटी तब लगते हैं जब उनको कुछ सुविधा शुल्क मिल जाए। नहीं तो वह इतनी दूर ड्यूटी लगा देते हैं। जिससे वह आने-जाने में ही परेशान हो जाएं। वहीं सुबह से लेकर शाम तक डंडा लिए खड़े रहते हैं।
पीआरडी में भर्ती होने से युवा बना रहे दूरी: जवानों ने बताया कि शासन प्रशासन की अनदेखी से नई पीढ़ी के युवा इसमें भर्ती होने से बच रहे हैं। इसकी मुख्य वजह कम मानदेय है। हालांकि मानदेय पांच सौ ड्यूटी के हिसाब से देने का प्रावधान किया गया है लेकिन यह कब दिया जाएगा, इसकी तिथि निर्धारित नहीं है।
वाहन चालक करते अभद्रता: पीआरडी जवान राजेंद्र प्रसाद ने बताया यातायात व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए ट्रैफिक को संभालते हैं तो वाहन चालक अभद्रता करते हैं। जब शिकायत अधिकारियों से करते हैं तो वह नसीहत देकर ड्यूटी सही से करने की बात कहते हैं। जिससे जवानों को आए दिन किसी न किसी व्यक्ति या वाहन चालक से अपमानित होना पड़ता है जबकि यातायात व्यवस्था ट्रैफिक पुलिस के साथ पीआरडी जवान पर जिम्मेदारी ज्यादा रहती है इसके बाद भी हमे सम्मान नहीं मिलता है।
बोले पीआरडी जवान
हमें अपनी ड्यूटी का पता नहीं रहता है कब कहां लगा दी जाए, कब अवकाश मिलेगा कब ड्यूटी नहीं लगेगी जानकारी नहीं होती है।
- मनोज कुमार
जब नौकरी लगी थी तो उम्मीद जगी थी कि आगे चलकर परमानेंट मानदेय मिलने लगेगा, लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी परमानेंट होने की उम्मीद नहीं है।
- जगदीश सिंह
पीआरडी जवानों को प्रशासनिक ड्यूटी मिलनी चाहिए विभागों में भेज पर्सनल काम लिया जाता है। सुरक्षा व्यवस्था में तो सिर्फ नाम की ड्यूटी है।
- रामकरन सिंह
पीआरडी जवानों की अधिकारियों के घर पर ड्यूटी लगवाई जाती है तो वहां पर निजी काम करना पड़ता है वर्दी में हमें अफसरों का काम करना पड़ता है।
- उत्तम सिंह
सरकार की ओर से किसी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। दुर्घटना बीमा अनिवार्य करना चाहिए जिससे मुसीबत में परिवार के काम आ सके।
- मलखान सिंह
पीआरडी जवानों को आयुष्मान योजना में चयनित कर लाभ देना चाहिए, जिससे बीमारी में वह इलाज करा कर योजना का लाभ ले सकें।
- उपदेश कुमार
जहां ड्यूटी लगे वहां पर रुकने के लिए बैरक की व्यवस्था हो, दोनों टाइम का खाना भी मिलना चाहिए जिससे उन्हें टिफिन घर से न लाना पड़े।
- रामजी लाल
नौकरी करने के लिए कई किमी. दूर जाना पड़ता है। एक दिन का 395 रुपये मिलते हैं, जिसमें दो सौ रुपये का तो पेट्रोल खर्च आ जाता है।
- सुरेन्द्र कुमार
हमें वर्दी के भी रुपये नहीं मिलते हैं, वर्दी भी अपने रुपयों से ही बनवानी पड़ती है। एक वर्दी पर खर्च एक हजार से दो हजार रुपये आता है।
- राजेंद्र कुमार
जिन जवानों को ट्रेनिंग मिल चुकी है, उनको चौराहों पर नहीं लगाया जाता है अगर चौराहों पर हमारी तैनाती होगी तो ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त रहेगी।
- रजनेश कुमार
किसी भी जवान को हथियार चलाने की ट्रेनिंग नहीं दी गई है जबकि हम कानून व्यवस्था में पूरा योगदान देते हैं इसलिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाए।
- अनिल कुमार
पीआरडी जवानों की ड्यूटी रात में चौराहों पर लगा दी जाती है जबकि हमारे पास हथियार नहीं होते हैं सिर्फ डंडे के भरोसे ड्यूटी करते हैं।
- महेंद्र सिंह
सुझाव
1. सभी जवानों को नियमित ड्यूटी देने के लिए सार्वजनिक स्थलों पर उनकी तैनाती की जाए।
2. ट्रैफिक व्यवस्था के लिए प्रशिक्षण दिया जाए।
3. प्रशिक्षित जवानों को डंडे की बजाय हथियार दिए जाएं।
4. पीआरडी जवान को होमगार्ड और पुलिस के बराबर सम्मान मिलना चाहिए।
5. ड्यूटी पर आने-जाने का खर्च सरकार उठाए, साधन उपलब्ध हों।
6. पीआरडी जवानों से चतुर्थ श्रेणी का काम नहीं लिया जाए।
7. जवानों को उनके थाना क्षेत्र के आसपास तैनात किया जाए।
शिकायतें
1. पीआरडी जवान को वर्दी खुद खरीदनी पड़ती है।
2. जवानों को सिर्फ 395 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं, घर-परिवार चलाना मुश्किल है।
3. प्रशिक्षित जवानों को रायफल न देकर डंडा पकड़ा दिया जाता है।
4. मानदेय काफी कम है। इससे परिवार को पालना मुश्किल है। मांग के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है।
5. ड्यूटी स्थल पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव।
6. जवानों को उनके घर एवं थाना क्षेत्र से दूर तैनात करने से आवागमन में दिक्कत होती है।
7. पीआरडी जवानों को अवकाश मिलने का भरोसा नहीं है।
बोले जिम्मेदार
पीआरडी जवान की अगर ड्यूटी के दौरान दुर्घटना में मौत हो जाती है तो उन्हें दस हजार रुपये मुआवजा मिलता है, जबकि पीआरडी जवानों ने मांग की है कि एक लाख रुपये परिजनों को मुआवजा दिया जाए, समस्या के लिए अधिकारियों को लेटर लिखे जाते हैं, जवानों की ड्यूटी सिर्फ जिले में लगाई जाती है।
- राजीव कुमार उपाध्याय, जिला युवा कल्याण अधिकारी
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