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बोले उरई: सरहद से लड़कर लौटे हैं...दुश्वारी ने घेर लिया

Orai News - उरई में पूर्व सैनिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उनकी जमीनों पर कब्जा हो गया है और वे दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। चिकित्सा सुविधाएं भी सही नहीं हैं और कैंटीन की अनुपस्थिति के कारण...

Newswrap हिन्दुस्तान, उरईMon, 17 Feb 2025 04:04 PM
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बोले उरई: सरहद से लड़कर लौटे हैं...दुश्वारी ने घेर लिया

उरई। सरहद पर अपने फौलादी इरादों से दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले हमारे जांबाज सैनिक अपने घर में अपनों से ही जंग लड़ रहे हैं। देश की रक्षा कर लौटे तो पता चला कि उनकी जमीनों पर कब्जे हो गए, अब जमीन छुड़ाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। इसके अलावा बदहाल अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए भी उनकी जंग जारी है। जिले में एक कैंटीन भी नहीं है, सामान लेने झांसी और कानपुर की कैंटीन में जाना पड़ता है। ऐसी तमाम परेशानियों से जूझ रहे हैं पूर्व सैनिक। जालौन के पूर्व सैनिकों की पीड़ा सुनने के लिए कोई प्लेटफार्म नहीं है। यहां न तो कोई हेल्प डेस्क है और न ही अफसर। चिकित्सा, कैंटीन और भूमि विवादों से परेशान हैं। जालौन के 6000 पूर्व सैनिकों ने अपनी आधी उम्र देश की रक्षा के लिए कुर्बान कर दी और जब वापस घर लौटे तो उन्हें अपनी जमीन पर दूसरों का कब्जा मिला। इसके अलावा चिकित्सा सुविधा और कैंटीन से सामान लेने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। पूर्व सैनिक जिला संरक्षक अखिलेश नगाइच ने बताया कि सेवा काल के दौरान जो पूर्व सैनिकों को गन लाइसेंस बनवाए गए थे अब उनका दोबारा वेरिफिकेशन हो रहा है, इसके लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। सूबेदार उदयपाल ने बताया कि घर वापसी पर अपनों से ही जमीन छुड़ाने की जंग लड़ रहे हैं। जमीन को कब्जा मुक्त कराने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैैं। जिले में आईएलएसएच का पूर्व सैनिकों के लिए अस्पताल किराए की बिल्डिंग में चल रहा है, इसमें न तो स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और न ही जरूरी दवाएं। ऐसी ही तमाम समस्याओं से परेशान जिले के पूर्व सैनिकों ने आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से अपनी समस्याओं और सुझावों पर चर्चा की।

पूर्व सैनिक रविंद्र सिंह राठौर ने बताया कि हमारी सबसे बड़ी समस्या चिकित्सा की है। पूर्व सैनिकों के लिए उरई मुख्यालय पर ईसीएचएस की स्थापना की गई है जबकि माधौगढ़, रामपुरा, कदौरा, कैलिया और नदीगांव की मुख्यालय से 50 से 60 किमी की दूरी है। बीमार होने पर यहां पर आना संभव नहीं हो पाता है। इमरजेंसी होती है तो पास के प्राइवेट डॉक्टर के यहां जाना पड़ता है। ईसीएचएस की तरफ से यहां कोई अधिकृत नर्सिंगहोम भी नहीं है, जहां मुफ्त में इलाज कराया जा सके। जिस वजह से अधिकतर पूर्व सैनिकों और उनके घर वालों को परेशान होना पड़ता है। इसके अलावा जनपद के नेशनल हाईवे पर दो टोल प्लाजा आटा और एट में पड़ते हैं जहां पूर्व सैनिकों से भी टैक्स लिया जाता है। ज्यादा जानकारी जुटाने पर टोलकर्मी अभद्रता करने पर उतारू हो जाते हैं, ऐसे में परिवार के साथ जा रहे पूर्व सैनिक पर्ची कटाकर आगे निकल जाते हैं।

कैंटीन से सामान लेने झांसी या कानपुर जाना पड़ता : जिले में सीएसडी कैंटीन नहीं है। जिससे पूर्व सैनिकों को महंगा सामान खरीदने को मजबूर होना पड़ता है। अभी सामान खरीदने कानपुर, झांसी और ग्वालियर की कैंटीनों में जाना पड़ता है, इसलिए जालौन में एक कैंटीन की व्यवस्था की जाए।

कारगिल शहीद सरमन सिंह के नाम पर नहीं खुला स्कूल : कारगिल युद्ध में शहीद हुए रामपुरा विकासखंड के बिल्होड़ के के सिपाही सरमन सिंह सेंगर के परिवार वालों ने अपनी ही भूमि पर उनकी प्रतिमा बनाकर उसका अनावरण किया था और शहीद के नाम पर एक स्कूल खोलने की मांग को लेकर परिवार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पूर्व सैनिक बलराम ने कहा कि जो भी सैनिक कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे उनके परिवार वालों को आर्थिक सहायता मिले और जमीन भी मुहैया कराई जाए। जहां पर उनकी प्रतिमा बनाई जा सके। इसके लिए वह कई बार मुख्यालय तक चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। मथुरा प्रसाद ने कहा कि जनपद में जो भी पार्क और सड़कें बनाई जा रहीं हैं उन सड़कों और पार्कों के नाम पूर्व सैनिकों के नाम पर रखे जाएं।

बोले-पूर्व सैनिक

रिटायरमेंट के बाद जब घर आते हैं तो पता चलता है कि भूमि विवाद हमारा इंतजार कर रहा है।

- रविंद्र सिंह

दूसरे राज्यों में रिटायर्ड जवानों के लिए कई सुविधाएं हैं। प्रदेश में भी सरकार विचार करे।

- अमरपाल

केंद्रीय विद्यालय की सुविधा हमारे बच्चों को मिलती है, लेकिन दाखिले के लिए दौड़ लगानी पड़ती है।

- अखिलेश नगाइच

पूर्व सैनिकों के लिए जिले में कैंटीन की सुविधा नहीं है, सामान लेने झांसी जाना पड़ता है।

- दिनेश कुमार

पूर्व सैनिकों के लिए सार्वजनिक कार्यक्रम की जगह नहीं है। घर और होटल में बैठक करते हैं।

- राघवेंद्र सिंह

जिले के पूर्व सैनिक सालों से एक कार्यालय की मांग कर रहे हैं आज तक पूरी नहीं की गई।

- उदय पाल सिंह

सर्विस के बाद घर आने पर अच्छी योग्यता होने के बाद भी हमे सिर्फ गार्ड की नौकरी मिलती है।

-मथुरा प्रसाद

जिला प्रशासन पूर्व सैनिकों के लिए बैठक और कार्यक्रम के लिए एक जगह उपलब्ध करवाए।

- डीपी त्रिपाठी

देश के लिए शहीद होने वालों को भी हाजीपुर में सम्मान नहीं मिल रहा है। बॉर्डर से ज्यादा खतरा तो घर पर महसूस होता है।

- वीरपाल

ऐसी भूमि का आवंटन जिला प्रशासन करे जहां एक ही जगह सभी तरह की सुविधा मिल सकें।

- बलराम

जिले में छह हजार से अधिक पूर्व सैनिक हैं, लेकिन सुविधा के नाम उन्हें कुछ भी नहीं मिल पाता है।

- कमलेश कुमार

परेशानी में किसी विभाग या थाना और कोतवाली जाएं तो जल्द सुनवाई हो और समाधान किया जाए।

-मोहम्मद रियाजुल

सुझाव

1. राजकीय आयोजनों में पूर्व सैनिकों को आमंत्रित किया जाना चाहिए।

2. पूर्व सैनिकों के भूमि विवादों का प्राथमिकता के आधार पर निपटारा किया जाए। हेल्प डेस्क थानों में जल्द बनवाएं।

3. रोजगार से जुड़ी योजनाओं में पूर्व सैनिकों को प्राथमिकता मिले। राज्य सरकार और जिला प्रशासन को पूर्व सैनिकों की मांगों पर विचार करना चाहिए।

4. सैनिक बंधु की बैठक में रखी जाने वाली समस्याओं के निवारण का समय तय हो।

शिकायतें

1. अन्य जिलों की तरह जालौन के सभी थानों में पूर्व सैनिकों के लिए कोई हेल्प डेस्क नहीं है। यहां भी थानों में हेल्प डेस्क बननी चाहिए।

2. पूर्व सैनिकों को शस्त्र अनुज्ञप्ति प्राथमिकता के आधार पर नहीं मिल रहे।

3. नौकरी और अन्य योजनाओं में पूर्व सैनिकों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है।

4. आर्मी कैटीन न होने के कारण कानपुर-झांसी जाना पड़ता है। जहां आने जाने में खर्च ज्यादा हो रहा है।

बोले जिम्मेदार

उनके संज्ञान में पूर्व सैनिकों के किसी भी लटके हुए मामले की शिकायत नहीं है। अगर कहीं पर भी ऐसा मामला है तो वह उसको जल्द निपटारा करवाएंगे, पुलिसकर्मियों को कड़ी हिदायत है कि पूर्व सैनिकों के किसी भी मामले में लापरवाही न बरती जाए और अगर वह थाने कोतवाली आते हैं तो पूरे सम्मान के साथ उनकी बात को सुना जाए। कहीं भी कोई शिकायत आती है तो संबंधित पुलिसकर्मी पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

-डॉ दुर्गेश कुमार, एसपी

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