बोले उरई : डूब रही ‘कागज की कश्ती..कोई तो बचा ले
Orai News - उरई के कालपी का कागज उद्योग 900 साल पुराना है, लेकिन अब यह संकट में है। बिजली की बढ़ती कीमतें, जीएसटी और मजदूरों का पलायन इस उद्योग को कमजोर कर रहे हैं। कई फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं और कुछ ने गेस्ट...
उरई। एक दौर था जब कालपी का कागज उद्योग मशहूर था, कारोबारी पूरी सप्लाई नहीं कर पाते थे। 900 साल हो गए इस व्यापार को। सोचा नहीं होगा कि इतना पुराना उद्योग कभी दम तोड़ देगा। कभी यहां छोटी-बड़ी 200 कागज फैक्ट्रियां हुआ करती थीं जो अब 40 से 50 के बीच सिमट गई हैं। बिजली की बढ़ती कीमतों, जीएसटी और मजदूरों के पलायन ने उद्योग की कमर तोड़ दी है। सीमेंट की चादर में इस्तेमाल होने वाले कागज की शीट से 80 फीसदी व्यापार चल रहा है। रोना महामारी ने कहर क्या बरपाया, कागज उद्योग की कमर टूट गई। 50 में आधा दर्जन फैक्ट्रियां विवाह घर और गेस्ट हाउस में तब्दील हो गईं। जहां कागज की तमाम वैरायटी तैयार होती थीं, कच्चे-पक्के माल की आवाजाही रहती थी, वहां पर अब शहनाइयां बज रही हैं, कहीं-कहीं राजनीतिक कार्यक्रम भी आयोजित हो रहे हैं। चंद फैक्ट्री संचालक इस बात से खुश हैं कि चलो व्यापार किसी रूप में चलने लगा। कागज कारोबारी मनीष पुरवार ने कहा अब सिर्फ सीमेंट की चादर में इस्तेमाल होने वाले कागज की शीट ही इस व्यापार को जिंदा किए हुए है। उन्होंने कहा कि कागज की कश्ती डूब रही है कोई तो इसे बचा ले। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से कागज व्यापारियों ने अपनी समस्याएं बताईं।
10 साल पहले कालपी में 150 हाथ कागज इकाइयां संचालित होती थीं। सुविधाएं न मिलने पर उप्र ग्रामोद्योग मंडल की रामगंज स्थित हाथ कागज इकाई बंद हो गई। राजकीय हाथ कागज प्रशिक्षण एवं उत्पादन केंद्र कागजीपुरा कालपी भी एक दशक पहले ताले में कैद हो गया। प्र्राइवेट इकाइयों की हालत भी बद से बदतर है। कागज उद्यमी नरेंद्र तिवारी ने बताया कि वर्ष 2010 तक बिजली की कीमतें काफी कम थीं। उस वक्त 4 रुपये पर यूनिट के हिसाब से बिल आता था और इस समय नौ और 10 रुपये के आसपास पर यूनिट से बिल आता है। इसके अलावा कई चार्ज भी फैक्ट्री मालिकों को अलग से देने पड़ते हैं। वहीं कागज उद्यमी हाजी सलीम ने बताया, 2010 तक जिस कागज की बिक्री 26 रुपये किलो तक होती थी उसकी कीमत घटकर 14 रुपये किलो आ गई है जबकि खर्च दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं। साथ ही पूर्व कागज उद्यमी मनोज चतुर्वेदी ने बताया कि वर्ष 1990 तक कालपी के कागज उद्योग को बढ़ाने में उत्तर प्रदेश खादी ग्रामोद्योग भी काफी सक्रिय रहा था। जो सरकारी विभागों से वहां इस्तेमाल होने वाले फाइल कवर, लिफाफे और अन्य चीजों के आर्डर व्यापारियों को देता था और पेमेंट भी खादी ग्रामोद्योग देता था।
इन व्यापारियों ने बदली राह: कागज उद्यमी खुर्शीद अहमद, रमेश, रामलखन, अभिषेक गुप्ता, सर्वेश, जहूर अहमद, कन्हैया गुप्ता, फहमुद्दीन, संदीप ने कागज फैक्ट्रियों में गेस्ट हाउस और विवाह घर बना लिया है।
ओडीओपी भी नहीं दे पाया हाथ कागज को संजीवनी : कालपी का हाथ कागज उद्योग अत्यंत प्राचीन हस्तकला का जीता-जागता उदाहरण है। इसीलिए बौद्धिक संपदा विभाग, भारत सरकार ने इसे जीआई टैग देकर सम्मानित किया था। सरकार की एक जिला एक उत्पाद योजना का भी कागज उद्योग को कोई फायदा नहीं मिल पाया। यही नहीं, मुख्यमंत्री ने कालपी के कागज उद्योग की समस्या का निराकरण करने की घोषणा की थी। इसके बाद भी कालपी के हाथ कागज उद्योग को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थीं वह मिल नहीं पा रही हैं। हाथ कागज का उतना प्रचार प्रसार भी सरकार की ओर से नहीं किया जा रहा है। जबकि यह कारोबार कालपी में सैकड़ों वर्ष पुराना है। यह जगह कागजियों का मोहल्ला कागजीपुरा के नाम से प्रसिद्ध है।
मैटेरियल और महंगी बिजली मिलने से बिक्री का संकट : हाथ कागज उद्योग चाइना पेपर और अन्य मिलों का पेपर कम दाम में मिल जाने के कारण दम तोड़ रहा है। यह उद्योग अपने उत्पादित माल की बिक्री तक को तरस रहा है। बड़ी-बड़ी पेपर मिलों में आधुनिक मशीनें आ जाने के कारण उनकी लागत कम हो जाती है, वहीं हाथ कागज उद्योग में श्रमिकों की संख्या अधिक होने और रॉ मैटेरियल संग बिजली की दर महंगी हो जाने से प्रभाव पड़ा है। उत्पादन लागत अधिक हो जाने के कारण बिक्री का संकट उत्पन्न हो गया है। अगर केंद्र और राज्य सरकार कालपी के हाथ कागज उद्योग को प्रोत्साहन और सुविधाएं दे तो एक बार फिर इसे पुनर्जीवित किया जा सकता है। इसमें सबसे बड़ी समस्या बिक्री की है, इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।
बोले कागज व्यापारी
कागज उद्योग की समस्या खत्म हो तो यह कारोबार पूरे भारत में परचम फहरा सकता है और 10000 श्रमिकों को रोजगार दे सकता है।
- नरेंद्र तिवारी
पांच से10 साल पहले लगभग दो दर्जन देशों में कालपी का हाथ कागज जाता था जिससे भारी मात्रा में विदेशी पूंजी भी आती थी।
- विवेक कुमार
जब हम टैक्स सरकार को देते हैं तो बुनियादी सुविधाएं भी हर हाल में मिलनी चाहिए, सरकार हमारी बुनियादी सुविधाओं को पूरा करे।
- मनीष पुरवार
देर रात काम निपटाने के बाद जब घर जाते हैं तो सुरक्षा व्यवस्था में कमी दिखती है। इसलिए यहां रात के समय में पुलिस बल होना जरूरी है।
- सौरभ कुमार
फैक्ट्री क्षेत्र में लाइट की कमी है। रात में अंधेरा रहता है। इसलिए कागज फैक्ट्री क्षेत्र में पर्याप्त लाइट की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- गोविंद
फैक्ट्री क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं। ज्यादातर समय फैक्ट्री में गुजरता है, इसलिए आसपास स्वास्थ्य सुविधाएं होनी जरूरी हैं।
- राशिद
सुझाव
1. कागज उद्योग को पुनर्जीवित के लिए सबसे पहला कदम बिजली की कीमतों को कम किया जाए।
2. इस उद्योग को जीएसटी में छूट दी जाए, जिससे हाथ कागज के कारोबार को बढ़ावा मिल सके।
3. कागज उद्योग से जुड़े लोगों को बुनियादी सुविधाएं दी जाएं
4. लंबी दूरी की ट्रेनों में जो लिफाफा दिया जाता है उसमें कालपी का कागज रखा जाए।
5. प्रदेश के सरकारी ऑफिसों में कालपी के कागज की सप्लाई की जाए।
6.हस्तनिर्मित कागज उद्योग पर जीएसटी की दरें 12% से कम की जानी चाहिए।
7.कालपी के हाथ कागज उद्योग क्षेत्र की सड़कें और बुनियादी सुविधाएं दुरुस्त की जानी चाहिए।
शिकायतें
1.हस्तनिर्मित कागज उद्योग से उत्पादित कागज की बिक्री के लिए सरकार द्वारा कोई बाजार उपलब्ध नहीं कराया गया।
2.हस्तनिर्मित कागज उद्योगों द्वारा उत्पादित कागज सरकारी दफ्तरों में प्रयोग नहीं लिया जा रहा है।
3.ओडीओपी में शामिल होने के बाद इन उद्योगों को सिर्फ 25% अनुदान पर बैंकों द्वारा ऋण उपलब्ध कराया गया।
4.भारत सरकार द्वारा हस्तनिर्मित कागज उद्योग पर जीएसटी की दरें 12% से लेकर 18% तक कर देने से यह उद्योग बुरी तरह से बर्बाद हो गए हैं।
5.सरकार की घोषणा के बावजूद रेलवे स्टेशन व बस अड्डे अथवा बड़े-बड़े हवाई अड्डों पर स्टॉल नहीं लग पाए हैं।
6.यहां की ध्वस्त बिजली आपूर्ति भी कागज फैक्ट्रियों के बंद होने का प्रमुख कारण है।
कागज उद्योग के लिए उठा रहे आवाज
लगातार शासन स्तर पर कालपी के हाथ कागज उद्योग को बढ़ावा देने की मांग उठा रहे हैं। जल्द ही शासन स्तर पर इस बारे में अच्छा फैसला लिया जाएगा। साथ ही फैक्ट्री क्षेत्र में जो समस्याएं हैं उनको दूर कराई जाएंगी। इसके बाद हाथ कागज उद्योग को पंख लगेंगे, जिस व्यापारी को कोई समस्या है तो वह हमसे खुद बात कर सकता है।
- विनोद चतुर्वेदी, कालपी विधायक
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