तन का मैल हटा गंगा की गोद में जाते हैं नागा साधु, ताकि गंदा न हो मां का आंचल
- सनातन धर्म की रक्षा के लिए जब नागाओं की फौज तैयार की गई तो उन्हें राष्ट्र के साथ ही गंगा और गाय की रक्षा का संकल्प लिया। यह परंपरा आज भी जारी है, अखाड़ों में नागा संन्यासी बनाने से पहले आज भी यह संकल्प दिलाया जाता है। इनके लिए गंगा और गाय मां के समान है।
Mahakumbh 2025: माता-पिता और खुद का पिंड दान कर संन्यासी बने नागा मां गंगा के प्रति अथाह श्रद्धा भाव रखते हैं। तन के मैल से मां गंगा का आंचल मैला न हो, इसका ध्यान रखते हुए नागा संन्यासी अमृत स्नान से पहले अपनी छावनी (मेला शिविर) में स्नान करते खुद को शुद्ध करते हैं। सनातन धर्म की रक्षा के लिए जब नागाओं की फौज तैयार की गई तो उन्हें राष्ट्र के साथ ही गंगा और गाय की रक्षा का संकल्प लिया। यह परंपरा आज भी जारी है, अखाड़ों में नागा संन्यासी बनाने से पूर्व आज भी यह संकल्प दिलाया जाता है। इनके लिए गंगा और गाय मां के समान है, इनके प्रति इनका वैसा ही भाव होता है जैसा जो जन्म देने वाली मां के प्रति किसी बच्चे का होता है। ऐसे में वो यह नहीं चाहते कि जब अमृत स्नान पर पुण्य की डुबकी लगाएं तो गंगा की गोद में कोई गंदगी जाए। जूना, आहवान, निरंजनी, आनंद, महानिर्वाणी, अटल अखाड़े के नागा संन्यासी स्नान के लिए निकलने से पहले स्नान करते हैं और फिर अखाड़े में फहराई गई धर्म ध्वजा के नीचे बैठकर शरीर पर भस्म मलते हैं, जिसे इनका भस्मी स्नान भी कहा जाता है।
भस्मी स्नान के पीछे वैज्ञानिक कारण
स्नान से पूर्व भस्मी स्नान (शरीर पर भभूत पोतने) की पीछे का इनका मकसद भी मां गंगा को स्वच्छ रखना ही होता है। इसका वैज्ञानिक कारण भी है। नागा जो भस्म शरीर पर लगाते हैं, उसमें तमाम ऐसे केमिकल होते हैं जो खराब वैक्टीरिया और जीवाणु को खत्म कर देते हैं। संतों का दावा है कि अमृत स्नान के बीओडी भी 10 फीसदी तक बढ़ जाता है।
यह होती है पूरी प्रक्रिया
रात दो बजे सभी अखाड़ों में पुकार होती है। पुकार के साथ ही शिविर में स्नान शुरू हो जाता है। इसके बाद सभी धर्म ध्वजा के नीचे आते हैं। इसमें अखाड़े के नागा संन्यासी के साथ वो साधु-संत भी शामिल होते हैं, जिन्हें इस महाकुम्भ में नागा बनाया जाना है। सबसे पहले अखाड़े के ईष्ट देव की की पूजा होती है, इसके बाद विधि विधान से भस्मी स्नान होता है।
अखाड़ों की बात
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने कहा कि गंगा हमारी मां है। इसे शुद्ध रखना हम सभी का धर्म है। नागा संन्यासी इस बात का संदेश जन-जन को देते हैं। इसमें भी भस्मी स्नान का विशेष महत्व होता है। शोध इस बात को साबित करते हैं कि यह भस्म जब गंगा जल में जाती है तो उसे और स्वच्छ करती है।
जूना अखाड़ा के संरक्षक और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरिगिरी ने कहा कि सभी नाग संन्यासी सुबह स्नान करते हैं। मैं खुद स्नान करके पहले भस्म लगाता हूं। गंगा हमारी मां है। नागा संन्यासी नहीं चाहते हैं कि उनके स्नान से मां गंगा का आंचल मैला हो।