मुजफ्फरनगर के शीतला मंदिर में अर्जुन के पुत्र ने की थी कड़ी तपस्या, लग गया है चार दिन का मेला
- मीरापुर-सिकंदरपुर रोड पर है शीतला माता (बबरेवाली) मंदिर। अर्जुन के बेटे बबरुवाहन के नाम पर इस मंदिर को बबरे वाली के नाम से जाना जाता है। हर साल होली के चार दिन बाद यहां विशाल मेला लगता है।

वैसे तो हर शहर और गांव में शीतला माता का मंदिर रहता है। लेकिन इनमें से कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जो चमत्कारिक हैं। हम आज आपको उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सिद्धपीठ शीतला माता (बबरेवाली) मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। मान्यता है कि महाभारत काल में यहां अर्जुन के पुत्र बबरुवाहन ने कड़ी तपस्या की थी। बबरुवाहन की तपस्या से खुश होकर शीतला माता ने साक्षात दर्शन दिए थे। हर साल होली के चार दिन बाद यहां विशाल मेले का आयोजन होता है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रसाद चढ़ाने आते हैं।
मीरापुर कस्बे से करीब तीन किमी की दूरी पर मीरापुर-सिकंदरपुर मार्ग पर शीतला माता (बबरे वाली) का मंदिर स्थापित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में अर्जुन और चित्रगंधा के पुत्र महावीर बबरुवाहन ने यहां तपस्या कर शीतला माता के साक्षात दर्शन किये थे। बबरुवाहन के नाम पर ही इस मंदिर को बबरे वाली के नाम से जाना जाता है। पिछले दशक तक मंदिर का जीर्णोद्धार और विकास महावीर प्रसाद शारदा के द्वारा कराया गया। उनके निधन के बाद उनके बेटे अनिरुद्ध शारदा इस काम में जुटे हैं।
शीतला सप्तमी और अष्टमी को चढ़ता है मुख्य प्रसाद
मंदिर समिति अब तक करीब 15 बीघा जमीन खरीदकर मंदिर के विकास व जीर्णोद्धार का काम बढ़ा रही है। मान्यता है कि इस मंदिर में माता के दर्शन से चेचक, खसरा जैसी भयंकर बीमारियां खुद ठीक हो जाती हैं। शीतला माता रोगों से बच्चों की रक्षा करती है। रोग के ठीक होने पर रोगी को यहां के जल का छींटा लगाया जाता है। भक्त माता रानी के चमत्कार का अनुभव साझा करते रहते हैं। नवदंपति द्वारा यहां दर्शन करने से उनका दांपत्य जीवन सुखमय होता है।
इस साल 18 मार्च (चतुर्थी) से मेला लग गया है। बुधवार 19 मार्च (पंचमी) को मीरापुर से झंडा यात्रा मंदिर पहुंचेगी और ध्वज स्थापना के साथ ही मेले का विधिवत शुभारंभ हो जाएगा। मंदिर प्रबंधन समिति के महामंत्री अनिरुद्ध शारदा के आवास से ध्वज यात्रा शुरू होगी। इस बार मेले के दौरान शीतला सप्तमी 20 मार्च, अष्टमी 21 मार्च और 22 मार्च को मुख्य प्रसाद चढ़ाया जाएगा। दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए तीन दिन प्रसाद चढ़ाने की व्यवस्था की गई है। 23 मार्च को ब्रह्मभोज और भंडारे का आयोजन होगा। 24 मार्च को मेले का समापन हो जाएगा।
मंदिर समिति के महामंत्री अनिरुद्ध बताते हैं कि श्रद्धालु नवजात बच्चों के साथ आते हैं और उनके मुंडन कराकर माता रानी को उनके बाल समर्पित करते हैं। नवविवाहित जोड़े माता के दरबार में माथा टेकते हैं और मुराद मांगते हैं।