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बोले मुरादाबाद : जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए रेलवे के ट्रैकमैन

Moradabad News - भारतीय रेलवे के ट्रैकमैन यात्रियों की सुरक्षा के लिए निरंतर काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सुविधाओं और प्रोन्नति के अवसरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। ओडिसा में हुए रेल हादसे के बाद सुरक्षा पर जोर...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुरादाबादFri, 21 Feb 2025 07:38 PM
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बोले मुरादाबाद : जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए रेलवे के ट्रैकमैन

ट्रैकमैन यात्रियों के सुरक्षित और आरामदायक सफर के लिए अनवरत ड्यूटी कर रहे हैं, इसके बाद भी रेलवे में ये वर्ग सर्वाधिक उपेक्षित है। हर साल मालगाड़ियों और सवारी गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है। इससे ट्रैकमैन का कार्य भी बढ़ता है, लेकिन इनके पास प्रोन्नति के कम मौके हैं। संरक्षा का सबसे बड़ा जिम्मा संभालने वाले ये रेलकर्मी जोखिम से जूझते हैं। आराम के लिए बनी गैंगहट में भी सुविधाएं नहीं हैं। इसके अलावा भी अन्य बुनियादी सुविधाओं से ये महरूम हैं। इन्हें मलाल है कि किसी को इनकी फिक्र नहीं। ओडिसा के बालासोर में 2023 में हुए रेल हादसे के बाद से रेलवे में लगाातर संरक्षा पर जोर है। लेकिन भारतीय रेलवे की बुनियाद ट्रैक मैंटेनर खुद ही समस्याओं से जूझ रहे हंै। भीषण गर्मी हो, कड़ाके की ठंड या फिर बारिश। रेलवे पटरियों की मरम्मत करते नारंगी रंग की जैकेट पहने रेल कर्मचारी दिख जाएंगे। रेलवे की रीढ़ इन ट्रैकमैन के सामने कई समस्याएं हैं। इन्हें लगातार 12-12 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है। कार्यस्थल से लेकर आवास तक इन्हें आराम नहीं मिल पाता है। कार्यस्थल पर विश्राम के लिए बने गैंगहट में भी सुविधाएं नदारद हैं। तो रेल आवासों की स्थिति दयनीय है। रेल मंडल में क्षमता से कम ट्रैकमैन होने से इन्हें काम का दबाव भी झेलना पड़ता है। इसके बाद भी ट्रैकमैन के लिए प्रोन्नति की संभावनाएं बेहद कम हैं। 1800 ग्रेड-पे पर भर्ती होने वाले ट्रैकमैन की लंबी कार्यावधि 2800 ग्रेड-पे तक सिमट कर रह जाती है। ट्रैकमैन बताते हंै कि बेहतर नौकरी की तलाश में जूझ रहे कई डिप्लोमा व डिग्रीधारी होने के बाद भी रेलवे में इस पद के लिए आवेदन करना पड़ा। 8-10 साल में उनकी श्रेणी में भी बदलाव किया जाना चाहिए।

मंडल में 14 सौ ट्रैकमैन पर है जिम्मा: मुरादाबाद रेल मंडल में स्वीकृति से कम ट्रैकमैन हंै। यह स्थिति काफी समय से बनी हुई है। इस समय मंडल में 61 सौ पदों के सापेक्ष 47 सौ ट्रैकमैन काम कर रहे हैं। ट्रेनों की बढ़ती संख्या के बाद भी ट्रैकमैन पर संरक्षा की जिम्मेदारी बढ़ी हुई है। रेलवे में नियम है कि हर 12 घंटे की डयूटी के बाद आराम मिलना चाहिए। लेकिन कर्मचारी कम होने से चाहकर भी इनको अवकाश नहीं मिल पाता। दूसरे कार्यस्थल पर सुविधाएं न होने से काम के लिए इन पर मानसिक तनाव रहता है। ट्रैकमैन के साथ रेल संगठनों के नेता भी उनकी डयूटी ऑवर्स को लेकर आवाज उठा चुके हंै। नियम है कि रेलवे में जिन गेटों पर टीवीयू 50 हजार से अधिक है। वहां ट्रैकमैन की डयूटी नियमानुसार 8 घंटे होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। ट्रैकमैन बताते हैं कि अधिक काम की वजह से वे परिवार के साथ कम समय बिता पाते हैं। लेकिन जिम्मेदारी अधिक होने से तनाव भी रहता है।

वित्तीय मंजूरी में ही फंस गया ट्रैकमैन का भविष्य

मुरादाबाद। ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा का कहना है कि रेल पटरी सुधारने के लिए मेहनत करने वाले रेलवे के ट्रैकमैन की स्थिति सुधार की कोशिशें लगातार चल रही हंै। इसकी कैजुएल लेबर से

शुरुआत हुई। टेंपरेरी स्टेट्स दिलाने के साथ ही अन्य सुविधाएं दिलाने के प्रयास हो रहे हैं। रेल संगठन ने स्ट्रेक्चरिंग सुधार पर जोर दिया। ग्रेड पे 18 सौ से 28 ग्रेड पे स्ट्रक्चर लागू हुआ। ग्रेड को चार स्ट्रक्चर रखे गए। महामंत्री का कहना है कि जोखिम के काम के दौरान होने वाले हादसे से बचाव के लिए विचार विमर्श हुआ। हादसे से बचने के लिए रात में पेट्रोलिंग के लिए रेलकर्मियों को टॉर्च लगे हेलमेट मुहैया कराया गए। ट्रैकमैन की वर्किंग व लिविंग स्थिति में सुधार के लिए प्रयास हुए हैं। काम के दौरान घर से बाहर रहने वाले कर्मियों के लिए फील्ड हॉस्टल का प्रस्ताव रखा गया है। फील्ड हॉस्टल के लिए सीआरबी से मंजूरी के बावजूद वित्त मंत्रालय में यह प्रस्ताव अटका हुआ है। इस प्रस्ताव में रेल कर्मियों के बच्चों का रहन सहन, शिक्षा समेत अन्य सुविधाओं पर जोर दिया गया है।

वेतन स्ट्रक्चर में बदलाव की जरूरत

मुरादाबाद। जान जोखिम में डालकर रेल में अप्रिय घटना को रोकने वाले ट्रैकमैन के वेतन की संरचना में व्यापक बदलाव की जरूरत है। इसमें वृद्धि की अरसे से मांग उठ रही है। अभी रेलवे कर्मी 28 सौ ग्रेड पे तक पहुंच पाते हंै। वे 4200 ग्रेड पे मांग रहे हैं। लेकिन यह मांग कब पूरी होगी, इस बारे में रेलवे के अधिकारी भी नीतिगत मामला बताकर चुप हो जाते हैं। रेलवे में सबसे कठिन काम होने के बावजूद वेतन कम है। रेल पटरियों के रखरखाव की अहम संरक्षा प्रणाली से जुड़े ट्रैकमैन को दोहरी परेशानी से जूझना पड़ता है। हर समय लाइन पर खड़े रहकर गाड़ियों को सुरक्षित बनाने वाले ट्रैकमैन की हालत को पुरसाहाल नहीं है। नौकरी आठ घंटे की है। लेकिन लगातार 12 घंटे की डयूटी कर रहे हंै। रेलवे मे तीन घंटे के रेस्ट का प्रावधान है। लेकिन धरातल की बात करें तो यह स्थिति अलग है। मंडल में करीब 14 सौ ट्रैकमैन हैं। एक गैंग में 10 कर्मचारी होने चाहिए। मगर गैंग में आठ कर्मचारी ही काम कर रहे हैं। उसपर भी 200 अधिक ट्रैकमैन अफसरों के घर व दफ्तरों में काम रहे हैं। इन पर रेल अधिकारियों की खास कृपा है। एक गैग में छह कर्मचारियों पर दस ट्रैकमैनों का वर्क लोड है। काम के बोझ से वे पहले ही दबे हैं।

बारिश में टपकते हैं महकमे के क्वार्टर

संरक्षा जैसे महत्वपूर्ण पद का दायित्व संभाले ट्रैकमैन का जीवन मुश्किलों से भरा है। रेलवे के क्वार्टर और कार्यस्थल पर वे खुद असुरक्षित हंै। ट्रैकमैन की दिनचर्या सुबह 6.30 बजे रेल पटरी से शुरू होती है और पूरे दिन के बाद शाम 6-7 और कभी 8 बजे तक काम करना पड़ता है। घर में भी उन्हें आराम नहीं मिल पाता है। रेलवे से मिले क्वार्टरों की हालत खस्ता है। कहीं फर्श टूटा। टॉयलेट खराब। छत भी जर्जर। बारिश के दिनों में घरों में पानी भर जाता है। ट्रैकमैन का कहना है कि कई बार बारिश के दौरान घरों में करंट आ गया। इससे रेल ट्रैक हो या घर, दोनों जगहों पर जोखिम ही है।

कार्यस्थल पर नहीं मिलता आराम, मैन पॉवर की कमी

मुरादाबाद। रेलवे में रोजाना लाखों लोगों की जान बचाने का जिम्मा संभाले ट्रैकमैन की असल जिंदगी दुश्वारियों से भरी हुई है। रेल ट्रैक पर काम के दौरान 11:30 से 3:00 बजे तक साढ़े तीन घंटे की अवधि है। कर्मचारी को आराम के लिए गैंगहट्स हैं। लेकिन वहां सुविधाओं का अभाव है। टूटे फर्श, पीने के लिए पानी की कमी है। लाइट न होना। पहले रेललाइन के किनारे पेड़ होने से ट्रैकमैन गर्मी के दिनों में आराम कर लेते थे। लेकिन अब ओएचई लाइनों की वजह से पेड़ों को काट दिया है। रेल ट्रैक पर काम करते समय तपिश झेलने के बाद राहत पाने को अब ट्रैकमैन के लिए पेड़ों की छांव नहीं है। कड़ाके की ठंड में जहां रेल पटरियां चटकती हैं,ये लोग भारी रेल पटरी को पकड़कर ठीक करने में जुटते हैं। बड़ी समस्या यह है कि 52 किलोग्राम के भार वाली 13 मीटर लंबी पटरी उठाने के लिए कर्मचारी कम होते हैं। एक पटरी के लिए 8 ट्रैकमैन होने चाहिए। लेकिन मेन पॉवर कम होने से चार-चार ट्रैकमैन को कई बार इसे उठाकर चलना पड़ता है।

सुझाव

1. समय-समय पर कोटे के जरिये ट्रैकमैन से जेई,एसएसई बनने के मौके मिलने चाहिए

2. संरक्षा के प्रति काउंसिलिंग कर दुर्घटनाएं रोकी सकती हैं।

3. एलडीसी टू ओपन टू ऑल की नीति लागू होनी चाहिए।

शिकायतें

1. पहले ग्रेजुएट व प्रतिभा के आधार पर कोटा के साथ ही वरिष्ठता पर प्रोन्नति होती थी।

2. अब टैलेंटेड कोटे के तहत प्रोन्नति पर रोक लगा दी गई है।

3. ट्रैकमैन की संख्या कम होने से भी दुर्घटनाएं बढ़ीं। पूरी संख्या हो।

जिम्मेदार बोले

रेलवे में ट्रैकमैन की समस्याओं को लेकर रेल प्रशासन हमेशा गंभीर रहा है। समय समय पर सेफ्टी टूल की मॉनीटरिंग होती है। नियमानुसार इंजीनियरिंग विभाग इसका रखरखाव करता है। हर सीजन में सेफ्टी जैकेट, शूज मुहैया कराए जाते हैं। ट्रैकमैन को 8-10 साल बाद जेई, एसएसई और एईएन बनने के अवसर हंै। गैंगहट व रेल आवासों के सुधार के नियम बने हुए हैं।

-आदित्य गुप्ता, सीनियर डीसीएम मुरादाबाद।

ट्रैकमैन का काम कठिन है जबकि सुविधाएं कम हंै। रेल पथ ठीक करने में जुटे ट्रैकमैन के लिए गैंगहट्स में भी सुविधाएं नहीं हैं। पानी, बाथरूम व फर्श तक नहीं है।

-राजपाल सिंह, ट्रैकमैन मैट।

सुबह से शाम तक काम के दौरान तीन घंटे का लंच आवर्स निर्धारित है। लेकिन गैंगहट्स पर सुविधाएं न होना खलता है। सुरक्षा के लिए शूज में दिक्कत होती है। पानी की बोतल की व्यवस्था नहीं है।

-नंद किशोर।

पूर्व में अशिक्षित गैंगमैन होने से कार्य करते थे। 2011-12 से आरआरसी से भर्ती ट्रैकमैन शिक्षित एवं अधिकारों के प्रति जागरूक हैं। योग्यता के आधार पर वह योजनाएं बनाता है।

-सुनील शर्मा ,पूर्व एसएसई।

अधिकतर ट्रैकमैन पढ़े लिखे हैं। विभागीय परीक्षा कराकर उनको भविष्य संवारने के लिए प्रोन्नति की राह प्रशस्त करनी चाहिए।

-उत्तम सिंह, ट्रैकमैन।

काम के घंटे निर्धारित होने चाहिए। यदि 12 घंटे काम करें तो नियमानुसार आराम भी मिले। कई बार आराम नहीं मिलने से काम के दौरान हादसे का खतरा रहता है।

-सतीश कुमार।

ट्रैकमैन से 12 घंटे काम लिया जा रहा है। जबकि बोर्ड की गाइड लाइन के अनुसार 50 हजार टीवीयू वाले गेटों पर ट्रैकमैन की 8 घंटे ड्यूटी आवर्स होने चाहिए।

-मनोज शर्मा, मंडल अध्यक्ष।

रेलवे में संरक्षा का जिम्मा संभाले ट्रैकमैन के लिए सुविधाओं का अभाव है। ग्रेजुएट के बावजूद प्रमोशन के अवसर कम हैं। 18 सौ ग्रेड पे से भर्ती ट्रैकमैन 28 सौ तक आते आते जिंदगी गुजार लेता है।

-शलभ सिंह, मंडल सचिव उरमू।

कई बार टूल न होने का असर काम पर पड़ता है। काम न होने पर चार्जशीट का दंश भी झेलना पड़ता है। इसके लिए रेलवे में बड़े स्तर से मॉनीटरिंग और सेफ्टी पर काउंसिलिंग की जरुरत है।

-दीपक।

रेलपथ के रखरखाव का कार्य अत्यंत जटिल और खतरे से भरा हुआ है। ट्रैकमैन पूरी नौकरी में हरदम लोहे से संघर्ष करके रेल यात्रा को सुगम बनाते हंै।

-विनोद, रेलकर्मी।

रेल ट्रैक पर काम करते हुए जोखिम है। सेफ्टी जैकेट, शूज आदि न होने से दिक्कत होती है। हर बार लाइन पर ट्रेन के आने से खतरा बना रहता है।

-अजय, ट्रैकमैन।

कर्मचारियों को कार्यस्थल पर गैंगहट्स व रेल आवासों को सुधारने की ओर ध्यान देना चाहिए। ताकि ट्रैक व घर पर कर्मचारी काम के बाद आराम कर सकें।

-रजा हुसैन।

सेना के जवान की तरह ट्रैकमैन की भी जिंदगी दांव पर रहती है। रेलवे में जान गंवाने वालों में सर्वाधिक ट्रैकमैन ही हंै। रेलवे को ट्रैकमैन के प्रमोशन पर ध्यान देना चाहिए।

-राजेश चौबे, मंडल मंत्री नरमू मुरादाबाद।

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