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बोले मुरादाबादः कुलियों पर यात्रियों का बोझ भारी, कर्मचारी बनने की नहीं आई बारी

Moradabad News - मुरादाबाद के कुलियों की दास्तान बताती है कि कैसे वे रेलवे के आधुनिकरण के चलते आर्थिक संकट में हैं। ट्रॉली बैग और एस्केलेटर जैसी सुविधाओं ने उनके काम में कमी की है। कुलियों की शिकायतें हैं कि उनकी...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुरादाबादThu, 13 Feb 2025 06:42 PM
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बोले मुरादाबादः कुलियों पर यात्रियों का बोझ भारी, कर्मचारी बनने की नहीं आई बारी

हमने सफर के कितने ठिकाने देखे, बोझ में भी सपने सुहाने देखे, थके बदन के साथ घर लेकर गए खुशियां, अपने कंधों पर जिंदगी के जमाने देखे, इन लाइनों जैसी ही कुछ मुरादाबाद के कुलियों की दास्तान है। लेकिन, यात्रियों की मदद करने वाले इस वर्ग के जीवन में मुश्किलें आ रही हैं। वैसे तो इन्हें रेल से अलग नहीं किया जा सकता लेकिन, इनकी शिकायत रेल वाली सुविधा न मिलने को लेकर ही रहती है। ऐसा ही हिन्दुस्तान के साथ मुरादाबाद के कुलियों ने अपनी परेशानी और समस्या को साझा किया। देश में रेलवे के कुली सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहे है। उनके लिए दशकों से चला आ रहा सामान उठाने का काम अब बड़ी परेशानी का सबब बना हुआ है। नए दौर में शुरू हुए सामान उठाने को ट्राली बैग ने उनके पेशे को बड़ी चुनौती दी है। वहीं रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधा के लिए बने एस्केलेटर, लिफ्ट व अब सामान के साथ यात्री ले जाने को बेट्री कार ने उनकी आमदनी छीन ली। हालांकि, उनके इस दर्द को रेल प्रशासन से लेकर सरकार समझती है। रेलवे से भी उन्हें एक अदद बिल्ले से ज्यादा कुछ नहीं मिला। रेलवे में लाइसेंस पोर्टर माने जाने वाले कुलियों को अपने हमदर्द की आज भी तलाश है। आधुनिक दौर में आए बदलाव ने रेलवे स्टेशनों के कुलियों के सामने संकट पैदा किया है। अपने पिता से विरासत के तौर पर कुली का बिल्ला(बैच) मिला। इसी बिल्ले को बांह पर बांधकर रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले कुलियों के लिए मौजूदा जिंदगी किसी बोझ से कम नहीं है। वे यात्रियों का सामान उठाकर उसका भार जरूर कम करते हैं पर अपने बोझे को उठाने में उनके कंधे असहाय हैं। कुलियों का दर्द केवल इतना भर नहीं है। काम नहीं मिलता तो परिवार का पालन कैसे हो। स्कूल-कॉलेजों में बच्चों की फीस नहीं भर पाते। घर का राशन जुटाने के लिए भी कई बार उनके सामने कर्ज मांगने की नौबत आई है। बेबसी यह कि अपने घर में बड़े होने के नाते अपने परिवार का सहारा बनने की बजाय अब खुद उनपर बोझ बन गए हैं।

कुली शेड की हालत खस्ता, दीवारें जर्जर

अमृत भारत योजना के तहत स्टेशनों को संवारा जा रहा है। लाखों रुपये खर्च कर चेंबर व कार्यालय आलीशान बनाए जा रहे हैं। चेंबरों को नए सिरे से खूबसूरत व आकर्षण बनाने में रेलवे की बड़ी धनराशि खर्च हुई लेकिन, कुलियों के लिए स्टेशन पर एक अदद विश्रामालय जर्जर है। दीवारों पर सीलन है। रंगाई पुताई न होने से चूना झड़ रहा है। इन कुलियों के लिए सोने के लिए भी बेड या बिस्तर नहीं है। जमीन पर लेटकर थकान मिटाने के अलावा उनके पास विकल्प नहीं है। सफाई की भी मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। कुली बताते है कि कुली शेड में बैठने के लिए न सोफा है और लेटने को बेड। कपड़े या सामान रखने के लिए अल्मारी तक नहीं। जबकि कुली शेड की शिफ्टिंग के समय अल्मारी आदि का भरोसा दिलाया गया था। कुलियों ने अल्मारी न होने पर विकल्प तलाश लिया। गार्डों के पुराने बक्सों को यहां रखवाकर उसमें अपने कपड़े व जरूरी सामान रख लिया।

42 साल से यात्रियों का बोझ उठा रहे 65 साल के भगवान दास

65 साल के भगवान दास सबसे पुराने कुलियों में से एक है। भैंडा फरीदपुर गांव के भगवान दास 42 साल से रेलवे स्टेशन पर यात्रियों का सामान उठा रहे हैं। बुजुर्ग होने के बावजूद उनमें युवाओं जैसा जोश है। उनका कहना है कि पहले कुली को सामान लादने के एवज में मिलने वाले रुपयों से परिवार का गुजारा हो जाता था। अब कुली की कमाई इतनी नहीं है कि वह अपने घर की छत भी ठीक करा सकें। बारिश से घर बचाने के लिए पन्नी डाली गई है लेकिन, तेज बारिश होने से घर में पानी भर जाता है। भगवान दास कहते हैं कि अरसे से कुलियों के रेलवे में समायोजन की मांग की जा रही है पर दिन कब फिरेंगे,यह अभी तय नहीं है।

सामान उठाने के दौरान ट्रेन से कट गई एक टांग

मुरादाबाद। युवा कुली सोनू की हादसे में एक टांग कट गई। करीब एक साल पहले प्लेटफार्म पर नांगलडैम एक्सप्रेस ट्रेन आकर रुकी। इस दौरान अचानक पैर फिसलने से कुली ट्रेन के नीचे आ गया। एक पैर ट्रेन के नीचे आने से टांग कट गई। साथी कुली और यात्रियों की मदद से उसे रेलवे के अस्पताल ले जाया गया। लंबे समय तक इलाज के लिए उसे परिवार व कुलियों ने निजी अस्पताल में भर्ती कराया। कुली चन्द्रपाल, कुदरत अली का कहना है कि हालत गंभीर होने पर आपस में चंदा एकत्रित कर इलाज कराया। अब सोनू एक साल से अपने घर बिस्तर पर पड़ा है। परिवार जन उसकी देखभाल कर रहे हैं। इससे परिजन भी परेशान हैं।

सुझाव

1.कुलियों को ग्रुप डी में भर्ती कर उनका मान बढ़ाया जाए।

2.सामूहिक बीमा कराया जाए तो लाभ मिल सकता है।

3.रेल अस्पताल में पूरी तरह से इलाज की सुविधा मिले।

4.अल्मारी, सोफा, बेड की सुविधा।

5.कुलियों को विश्रामालय की बेहतर सुविधा मिले।

शिकायतें

1.कुली को रेलवे में समायोजन की मांग उठाई जा रही है।

2.ड्यूटी के दौरान कुली की मृत्यु पर बीमा मिले।

3.बीमार होने पर केवल ओपीडी की सुविधा मिलते है।

4.कुली शेड में भी अव्यवस्थाएं।

5.बिल्ला नंबर को आधार कार्ड से जोड़ने की उम्मीद है।

कुलियों के चेहरों पर छाई उदासी

रेलवे स्टेशनों की सूरत बदल रही है। लेकिन स्टेशन के कुलियों को अपनी किस्मत संवरने का इंतजार है। लाल रंग की वर्दी कुलियों की अब बस यही पहचान बची है। तन पर कपड़ा और सिर पर साफा बांधा पहने कुली यात्रियों का सामान उठाने की बाट जोहते हंै। पर दिन भर मेहनत के बाद भी मुश्किल से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना बड़ी चुनौती है। ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या तो बढ़ गई पर कुलियों की आमदनी घट गई। देश भर में रेलवे स्टेशन के लिए सबसे सुनहरा मौका 2008 में आया। तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव व बाद में राम विलास पासवान ने योजना के तहत कुलियों को ग्रुड डी में समायोजित किया। 2010 में कुलियों की भती की गई। मेडिकल में फिट कुलियों को रखा गया। तब मुरादाबाद में 62 कुलियों की भर्ती हुई। मंडल में अब 341 पुरुष और 5 कुली हैं। कुली पवन का कहना है कि कुलियों को ग्रुप डी में भर्ती की जाएं। बीमार होने पर वह ठीक से इलाज नहीं करा पाता।

कुदरत अली ने कुली बनने के लिए नौकरी छोड़ी

मुरादाबाद। रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले कुली कुदरत अली पाशा कभी रामपुर के दयावती मोदी स्कूल में नौकरी करते थे। 2008 में पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में उनके पिता रेलवे में ग्रुप डी में भर्ती हुए। पिता का बिल्ला नंबर एक आज भी कायम है। कुली संगठन की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रदर्शन रेलवे में समायोजन की मांग कर रहे हंै। कुदरत अली का कहना है कि जब रोटी के लाले हैं तब भी सरकार उनकी मांगों को लेकर पूरी तरह से मौन है। अपनी मांगों को लेकर 2014 में हाथरस में देश भर के कुलियों ने प्रदर्शन किया था।

कुली के लिए रोजी रोटी का जुगाड़ मुश्किल बन गया है। पहले काम था तो घर का गुजारा अच्छे ढंग से होता था लेकिन, अब हालात बदतर हो रहे हैं। कुलियों को अपने परिवार पालने में समस्या आ रही है।

-प्रहलाद सिंह

यात्रियों के पास ट्रॉली बैग का चलन बढ़ गया है। इससे यात्री अपना सामान खुद ट्रॉली बैग से लाने ले जाने लगे हैं। कुली के पास काम घट गया है। इससे हमारे सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।

-गुलाब सिंह

काम से घर का जीवन यापन मुश्किल है। दिन भर की मजदूरी से ज्यादा खर्च आने जाने में हो रहा है। गांव से स्टेशन तक आने जाने में किराया ज्यादा लग रहा है लेकिन कमाई इतनी नहीं हो रही है।

-अमरजीत

ट्रेनों में यात्री संख्या बढ़ने के बावजूद वर्षों से कुलियों के काम में गिरावट आई है। दिन भर काम की तलाश में बीत जाता है। स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंचने पर निराशा ही हाथ लगती है। ग्राहक नहीं मिलते हैं।

-अनुज कुमार

कोरोना काल के बाद से हालात ज्यादा बदतर हैं। रेलवे स्टेशन पर काम नहीं मिलने से आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। कमाई न होने से घर का खर्च उठाना मुश्किल हो गया है।

-पुरुषोतम

रेलवे में 2010 के बाद से कुलियों की भर्ती हुई। तब से उनकी भर्ती नहीं हुई। उस समय फिजिकल टेस्ट के 63 कुली भर्ती किए गए थे। अब इस काम से होने वाली आय से परिवार का खर्च उठाने में परेशानी आ रही है।

-जसवीर सिंह

स्टेशन पर न काम न कोई भविष्य। पिता की जगह 2019 में काम पर लगा था। अब बुजुर्ग मां, तीन बच्चों समेत परिवार के छह सदस्यों का पालन करने के लिए कुली के काम से खर्च उठाने में दिक्कत हो रही है।

-शिव दयाल

कुली बीमार हो जाए तो इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं है। सिर्फ ओपीडी में दिखाया जा सकता है। गंभीर बीमारी का इलाज निजी खर्च से कराना होगा। कुलियों के सामने तमाम समस्याएं आ रही हैं।

-श्यामेन्द्र

ट्रॉली बैग के अलावा स्टेशन पर लिफ्ट, एस्केलेटर से भी काम पर असर पड़ा है। रही सही कसर बैट्री कार ने पूरी कर दी। इससे अब हमें ज्यादा रोजगार नहीं मिल पाता है। अब परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

-मोहन लाल

रेलवे कर्मचारियों के लिए बने उम्मीद कार्ड कुलियों के भी बन जाए तो उन्हें अपनी बीमारी का इलाज कराने की समस्या दूर हो जाएगी। निशुल्क इलाज हो तो और बेहतर होगा। इससे उन्हें समस्या नहीं होगी।

-पवन

कुलियों के लिए आराम के लिए बने शेड भी पुराने और जर्जत हालत में हंै। स्टेशन पर न काम है और न ही रेलवे से सुविधाएं मिल रही हैं। इससे हमारा काम और मुश्किल होता जा रहा है।

-चन्द्रपाल सिंह

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