बोले मुरादाबाद : जीएसटी के बोझ में दबी बर्तनों की खनक
Moradabad News - मुरादाबाद में पीतल के बर्तन व्यापारियों को जीएसटी की उच्च दरों और मूलभूत सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। व्यापारी 18% जीएसटी पर रोष व्यक्त कर रहे हैं, जबकि सुरक्षा और शौचालय जैसी सुविधाओं की...
मुरादाबाद में यूं तो पीतल का कारोबार ही मुख्य है। इसके साथ ही पीतल नगरी में बर्तनों का भी बड़ा काम है। जहां घर-घर में पीतल का काम होता है। वहीं बर्तन बाजार में पीतल से लेकर स्टील की वैरायटी के बर्तन हैं। कांसे पीतल के डिनर सेट हों या आकर्षक कटलरी, सब इसका हिस्सा है। यहां के बर्तनों की चमक मुरादाबाद समेत पूरे यूपी और विदेश तक लोगों पर प्रभाव छोड़ती है। शहर में अमरोहा गेट और मंडी चौक में बर्तनों की अधिक दुकानें हैं। इसीलिए इस क्षेत्र का नाम बर्तन बाजार ही पड़ गया है। यहां के व्यापारी भी जीएसटी की विसंगतियों से लेकर मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं। बाजार में पार्किंग के अलावा शौचालय नहीं होना भी कम पीड़ादायक नहीं है। करोड़ों का राजस्व देने के बाद भी सुविधा के नाम पर शून्य होना, इनकी चिंता का सबब बना हुआ है। बताते हैं कि वे अपनी परेशानियों को हल कराने के लिए स्थानीय प्रशासन से लेकर प्रदेश और राज्य सरकार तक दरवाजा खटखटा चुके हैं। सुनवाई कहीं नहीं हुई। व्यापारियों की पेंशन का मामला भी लंबित है। सुरक्षा के नाम पर भी कहीं सुनवाई नहीं है।
बर्तन व्यापारियों की पीड़ा है कि एक डिनर सेट पर 18 प्रतिशत की जीएसटी है। उसके अंदर की कटलरी पर 12 प्रतिशत की जीएसटी है। जबकि डिनर सेट में कटलरी मात्र 50 से 100 ग्राम होती है और इसी कटलरी के कारण डिनर सेट पर 18 प्रतिशत जीएसटी है। उधर, गोल्डी, चम्मच, गिलास, प्लेट चक्के के बने होते हैं। गोल्डी, चम्मच आदि पर 18 प्रतिशत और प्लेट, पतीली आदि पर 12 प्रतिशत जीएसटी है। इस तरह कच्चे माल पर 18 प्रतिशत और तैयार माल पर 12 प्रतिशत जीएसटी है। पूजा के आइटम कर मुक्त थे। अब इन पर भी 12 और 18 प्रतिशत जीएसटी लगा दी गई है। ग्राहक जीएसटी देने से बचते हैं। इसका सीधा प्रभाव व्यापारी पर पड़ता है। जीएसटी की विसंगति को खत्म किया जाना चाहिए। इससे काफी हद तक समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है।
सचल दल वाले करते परेशान : सचल दल की सक्रियता भी कारोबारियों को परेशान करती है। इनका मानना है कि 50 हजार तक के माल पर ई-बिल रिकॉर्ड की आवश्यकता नहीं है। मगर सचल दल रास्ते में पार्टी को रोक कर ई-बिल मांगता है। न होने पर शोषण किया जाता है। यह दल रेलवे स्टेशन से लेकर रास्ते में सामान आने से रोक लेते हैं। फिनिशिंग के लिए जो कोरा माल एक कारीगर के घर से दूसरे कारीगर के घर रिक्शा से भेजा जाता है। उसे रास्ते में पुलिस और विभागीय कर्मचारी रोक कर ई-बिल मांगते हैं। इन पर बिल होता नहीं तो इन्हें परेशान किया जाता है। जो कारीगर भट्टियां जलाकर बर्तनों की ढलाई करते हैं। प्रदूषण विभाग उनकी भट्टियां बंद करा देता है। बर्तन व्यापारियों का कहना है कि जीएसटी का शिकंजा केवल छोटे व्यापारियों पर ही रहता है। इससे व्यापारियों को दिक्कत होती है। उनकी मांग है कि बर्तनों की खरीद-बिक्री पर जीएसटी की दर कम करके सरकार उन्हें राहत दे तो कारोबार में और बढ़ोतरी होगी। साथ ही ग्राहकों को भी राहत मिलेगी।
बर्तन कारीगर गला रहे शरीर, बीमारियों से घिरे
मुरादाबाद। जिन पीतल के बर्तनों की चमक देख हम खुश होते हैं, देश के कोने-कोने के साथ विदेश में भी इस चमक की धूम है। इन्हें हमारी कारीगर जान की बाजी लगाकर बनाते हैं। तमाम बीमारियां उन्हें घेर लेती हैं, इलाज की समुचित व्यवस्था तक नहीं है। जिस भट्टी में सिल्ली गलाकर बर्तनों को आकार दिया जाता है, उसे गलाते समय जहरीली गैस निकलती है। भट्टियों का तापमान भी 100 डिग्री से अधिक होता है। कारीगर गर्मी में भी यहीं बैठकर इन्हें बनाते हैं। बर्तनों की छिलाई के समय भी धूल उड़कर इनकी सांस में जाती है। बर्तनों को तेजाब में डालकर मशीनों में वफ लगाकर साफ किया जाता है। केमिकल युक्त मसाला लगाकर चमकाया जाता है। इसका काला गर्द भी सांस के साथ फेफड़ों तक पहुंच जाता है। यही वजह है कि इनके अधिकांश कारीगर जल्द ही संक्रामक रोगों की चपेट में आ जाते हैं। मगर इनका पर्याप्त उपचार न मिलने से इन्हें परेशानी होती है। इससे बचाव के लिए कड़ी व्यवस्था होनी चाहिए।
जाम, पार्किंग की समस्या भी गंभीर
बाजार में हर समय लगने वाला जाम, पार्किंग का अभाव, शौचालय की कमी और पीने के पानी का इंतजाम न होने से व्यापारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि करोड़ों का राजस्व देने के बाद वे परेशानहैं। बाजार में सार्वजनिक शौचालय और बनाए जाने चाहिए। पार्किंग की व्यवस्था और जाम से निजात दिलाया जाए।
बर्तन व्यापारियों को भी है पेंशन की दरकार
मुरादाबाद। व्यापारियों को पेंशन की दरकार है। पेंशन न होने की कसक भी बनी हुई है। वे कहते हैं कि सरकारी कर्मचारी के रिटायर्ड होने पर पहले दिन से पेंशन शुरू हो जाती है। व्यापारी अगर 80 वर्ष की आयु में भी काम नहीं करेगा तो आमदनी शून्य रह जाती है। मंगल बाजार में बिना जीएसटी आदि के बाहर के व्यापारी हजारों की बिक्री कर चले जाते हैं। इनसे किसी भी कर के बारे में नहीं पूछा जाता जबकि सरकार को राजस्व की हानि होती है। हमारी एक बोरी कच्चे माल पर भी कार्रवाई की तलवार लटकी रहती है। यह समस्या भी इन्हें आहत करती है। इससे इन्हें राहत मिलनी चाहिए।
सुझाव
1. जीएसटी की विसंगतियों को दूर किया जाए। इनमें एक समानता हो। तो राहत मिलेगी।
2. सचल दल एक फर्म से दूसरी फर्म जाते माल को नहीं रोके तो व्यापारियों की दिक्कत कम होगी।
3. बर्तन बाजार में पीने के पानी का इंतजाम कराया जाए। इससे ग्राहकों को परेशनी नहीं होगी।
4. बाजार में जाम नहीं लग पाए, इसके लिए कड़ी व्यवस्था की जानी चाहिए।
5. पूजा एवं आरती के लिए खरीद जाने वाले बर्तन जीएसटी से मुक्त रहें। तो आसानी होगी।
शिकायतें
1. जीएसटी में बहुत ज्यादा विसंगतियां होने से ज्यादा कर चुकाना होता है।
2. सचल दल की ओर से व्यापारी ज्यादा परेशानी झेलते हैं, ई-बिल मांगे जाते हैं।
3. बर्तन बाजार में जाम और पार्किंग की समस्या का निदान नहीं हो सका।
4. बाजार में सार्वजनिक शौचालय नहीं होने से ग्राहकों को भी परेशानी होती है।
5. व्यापारियों की सुरक्षा के इंतजाम नहीं होने से भी उन्हें समस्या होती है।
सरकारी कर्मचारी को रिटायर्डमेंट के पहले दिन से पेंशन मिलती है। व्यापारी किसी भी उम्र में घर बैठ जाए तो उसकी आमदनी शुन्य हो जाती है। हमारी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
-अजय अग्रवाल, व्यापारी नेता
बाजार में पीने का पानी, शुलभ शौचालय की कमी है। व्यापारियों एवं बाहर से आने वाले ग्राहकों को भटकना पड़ता है। इसकी मांग नगर निगम और प्रशासन से भी की गई। मगर कोई सुनाई नहीं हुई।
-अंबरीष अग्रवाल
बर्तन बाजार में गंदगी के अंबार लगे रहते हैं। सुबह दुकान खोलने आओं तो दुकानों के आगे कूड़े के ढेर लगे मिलते हैं। इससे कारण ग्राहक अब बर्तन बाजार में आने से कतराने लगा है।
-विपिन गुप्ता
जीएसटी की विसंगतियों से व्यापारी आहत हैं। एक तो यह पहले से ही अधिक हैं। उनमें भी असमानता है। ग्राहक जीएसटी देना नहीं चाहता। ऐसे में व्यापारी को अपनी जेब से ही भरना पड़ता है।
-अरविंद अग्रवाल
पहले ही बाजार में मंदी का दौर है। कुछ माल तैयारी को एक से दूसरे कारखाने भेजते हैं तो रास्ते में पुलिस एवं विभागीय कर्मचारी बिल मांग कर कारीगरों को परेशान करते हैं।
-सुनील अग्रवाल
बाजार में जाम की समस्या भी प्रमुख है। अवैध ई-रिक्शाओं की भरमार है। सड़कें सकरी हैं। ऐसे में अधिक ई-रिक्शाएं आने से जाम लग जाता है। निकलना भी दूभर हो जाता है।
-अतुल अग्रवाल
पीतल के बर्तन बनाने में सबसे पहला काम बर्तन की ढलाई है। इनके लिए कोयले की भट्टियों की जरूरत है। प्रदूषण विभाग के अधिकारी बंद कराने पहुंच जाते हैं। जिससे काम बाधित होता है।
-अमित अग्रवाल
हम भी जीएसटी की विसंगतियों से आहत हैं। कहते हैं पहले ही काम कम है और जीएसटी की ऊंची दरों ने भी काम पर ब्रेक लगा दिया है। ग्राहक जीएसटी की मांग करते ही माल छोड़ कर चला जाता है।
-गोपाल अग्रवाल
रिक्शा और रिक्शाओं से पहले ही जाम रहता है। इस पर भी जामा मस्जिद-भोजपुर वाले पुल से आने वाले चार पहिया वाहन जाम को बढ़ा देते हैं। जिससे ग्राहक भी अब बाजार आने से बचने लगे हैं।
-नवीन गुप्ता
बिजली की दरें और पॉलिश की सामाग्री लगातार महंगा हो रही है। जबकि बाजार में स्पर्धा होने से तैयार माल के दाम घट रहे हैं। जिससे मुनाफा कम हो रहा है। लागत बढ़ रही है।
-राहुल कुमार
बर्तन व्यापारी पहले से हीसमस्याओं ने जूझ रहे हैं। सड़क बनाते समय खोदाई नहीं की गई। पुरानी सड़क पर ही डाबर-बजरी डाल दी। सड़क ऊंची हो गई। अब बारिश में दुकानों में पानी भर जाता है।
- मुदित अग्रवाल
पीतल के बर्तन बनाने में छिलाई, पॉलिश, फिनिशिंग आदि सभी काम में बिजली का उपयोग होता है। इन सभी में व्यवसायिक दरें ली जाती हैं। दरें कम होनी चाहिए।
-सचिन पाठक
व्यापारियों की सुरक्षा के दावे बहुत होते हैं। मगर सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। उन्हें कैश लेकर चाहें बैंक जाना हो या घर, अपनी ही व्यवस्था से जाना होता है। सरकार को हमारी सुरक्षा के भी इंतजाम करने चाहिए। इससे व्यापारियों में सुरक्षा को लेकर विश्वास बढ़ेगा।
-आशीष गुप्ता
प्रशासन ने जाम से निजात दिलवाने के लिए ई-रिक्शा संचालन को जोन बना दिए हैं। मगर किस रास्ते पर किस जोन का वाहन चलेगा इसका पता नहीं। इसलिए सभी जोन के वाहन बाजार में आते हैं। इनसे जाम के हालात बने रहते हैं। व्यापार प्रभावित होता है।
-आशीष अग्रवाल
हमेशा पूजा के बर्तन, आरती आदि कर मुक्त रहे हैं। अब इन पर भी 12 से 18 प्रतिशत तक जीएसटी ली जाती है। इससे लोगों की आस्था पर भी चोट पहुंचती है। सरकार को यह जीएसटी हटानी चाहिए। इससे व्यापारियों के साथ लोगों को राहत मिलेगी।
-विनीत अग्रवाल
पीतल कारीगरों के लिए सरकार की ओर कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। इसलिए कारीगर इस काम को छोड़ते जा रहे हैं। इसके कारण कारीगरों की कमी है। इन्हें भी व्यापारियों की ओर से सुविधा दिलाई जाती है। इनके लिए सरकार को योजना लाने की जरूरत है।
-राघव अग्रवाल
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