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ईरानी बेटी फाइजा ने दस दिन में सीख ली हिन्दी, पूछती है-आप कैसे हैं ?

ईरान की फाइजा ने अपने प्यार के लिए देश और मजहब छोड़कर भारत में नई जिंदगी शुरू की। ससुराल में 10 दिन बिताने के बाद वह नई संस्कृति और भाषा को अपनाने की कोशिश कर रही है। फाइजा के पति दिवाकर ने भी इरानी...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुरादाबादWed, 14 Aug 2024 04:35 PM
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अपने प्यार के लिए मजहब और यहां तक कि देश तक को छोड़ चुकी ईरान की फाइजा को ससुराल में करीब 10 दिन हो चले हैं। हथेलियों पर सुर्ख मेहंदी, मैरून सूट और होठों पर ढेर सारी मुस्कान...देखकर ऐसा ही लगता है जैसे वह हमेशा से भारत की ही मिट्टी में रची-बसी है। फाइजा बुधवार को अपने यू-ट्यूबर पति दिवाकर के साथ लाकड़ी फाजलपुर स्थित हिन्दुस्तान दफ्तर पहुंचीं। फाइजा के लिए बीते 10 दिन कुछ न कुछ नया सिखाने वाले रहे। एक अलग देश, अलग संस्कृति से आने के बाद भी वह सब कुछ अपनाने की कोशिश कर रही है। ससुराल में अब भी मिलने आने वालों का क्रम नहीं टूटा है। विदेशी बहू देखने के लिए दूर-दूर से रिश्तेदार पहुंच रहे हैं। सब कुछ नया होने के कारण फाइजा को भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। इतने दिनों में ही काम भर की हिन्दी भी सीख डाली। नए लोगों से मिलने पर खूब सोच-सोचकर पूछती है.. आप कैसे हैं... मेरा नाम फाइजा है..... आपने खाना खा लिया... और फिर खुद ही मुस्कुरा पड़ती है....। बीच-बीच में दिवाकर से धीरे से पूछती है....‘इज माई सेंटेंस करेक्ट?

फाइजा भारत आकर खुश है। ससुराल में मिल रहे प्यार, रिश्तेदारों की गर्मजोशी, संस्कृति और खान-पान पर रीझी हुई है। वह कहती है कि हिन्दी की बेसिक चीजें सीख रही है ताकि परिवार के लोगों को दिक्कत न हो। हालांकि मां-पिता की बात निकले तो लाख मुस्कुराने के बाद भी नम आंखें उसके मोह की चुगली कर ही देते हैं। तीन बहनों में सबसे बड़ी फाइजा के लिए दिवाकर के साथ शादी करके भारत आने का फैसला काफी बड़ा था।

दिवाकर कहते हैं कि फाइजा यहां जब तक पूरी तरह से घुलमिल नहीं जाती तब तक वही उसके लिए पति के साथ ही मां-पिता की भूमिका में भी है। फेसबुक पर हुई दोस्ती के दौरान दिवाकर ने काफी फारसी भी सीख ली है। वह इरान की संस्कृति को भी करीब से समझने लगे हैं। उन्होंने दो मुल्कों के साथ ही दो मजहबों के बीच सेतु का काम किया है। शायद यही कारण है कि बेहद सख्त होने के बाद भी पिता ने इस अनूठी प्रेम कहानी पर अपनी मुहर लगा दी। पहले इरान में रिश्तेदारों के बीच और अब मुरादाबाद में वे हिन्दू रीति-रिवाज से सात जन्मों के लिए एक दूसरे के हो चुके हैं। फाइजा दिवाकर के साथ एक अच्छे भविष्य का ताना बाना बुन रही है। वह अब कभी-कभी दिवाकर के वीडियोज में भी देखने लगी है... नमस्ते से स्वागत करती है और ओम नमो नारायण, से विदा लेती है।

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