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बोले मुरादाबाद : तहसील स्तर तक मिलें मछली पालन के लिए पट्टे तो मछुआरों की कम हों मुश्किलें

Moradabad News - मुरादाबाद जिले में मछुआ समाज के लोग मत्स्य पालन पर निर्भर हैं, लेकिन उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जलाशयों का सिकुड़ना, प्रदूषण, और नई सरकारी नीतियों के कारण इनकी आय प्रभावित हो रही है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुरादाबादSun, 16 March 2025 07:01 PM
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बोले मुरादाबाद : तहसील स्तर तक मिलें मछली पालन के लिए पट्टे तो मछुआरों की कम हों मुश्किलें

जलवायु आधारित क्षेत्रों में रहने वाले मछुआ समाज के लोग अपनी आजीविका के लिए मत्स्य पालन पर निर्भर हैं। हालांकि, इस समाज के सामने कई तरह की समस्याएं और चुनौतियां हैं जो उनके जीवनयापन को प्रभावित करती हैं। इन समस्याओं में जलाशयों का सिकुड़ना, पर्यावरणीय परिवर्तन, नदियों में प्रदूषण और कानूनी अड़चनें प्रमुख हैं। आधुनिक तकनीक और बाजार तक सीमित पहुंच भी उनकी आय को प्रभावित करती है। इस समाज के लोग न केवल मछली पकड़ने की पारंपरिक विधियों पर निर्भर हैं, बल्कि सीमित संसाधन होने और प्राकृतिक आपदाओं के कारण उनकी समस्याएं और भी गंभीर होती जा रही हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए समग्र विकास और सहायक नीतियों की आवश्यकता है, ताकि मछुआ समाज का जीवन स्तर बेहतर हो सके और उनकी आजीविका सुरक्षित रहे। मछुआरों का कहना है कि जिले में सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर पहुंचाया जाए तो उन्हें मत्स्य पालन करने में सहूलियत हो सकती है। इसके लिए अधिकारियों को गंभीर होने की जरूरत है।

मुरादाबाद जिले में बिन्न, मल्लाह, कश्यप, केवट और मछुआरों की संख्या तीन लाख से अधिक है। लेकिन, इन्हें सरकार की नई मत्स्य पालन नीति से संतोष नहीं है। अधिकतर वर्ष 2016 के पहले की स्थिति यानी उसी नियम को लागू करना चाहते हैं। सरकार की ओर से तालाबों के पट्टे पाने वाले मछुआरों की मांग है कि दो हेक्टेयर तक के तालाबों को सुंदर बनाया जाए। इन्हें व्यवस्थित करने और उनके सुंदरीकरण का प्रबंध हो। सरकार द्वारा तालाब के लगान में कमी की जाए। अभी मत्स्य विभाग एक हेक्टेयर के क्षेत्रफल वाले तालाब की जमानत के तौर पर 10,000 रुपये का लगान वसूलता है। इससे छोटे और मझले मछुआरे सहमत नहीं हैं। विभिन्न बैठकों और आंदोलन में मछुआरा समुदाय के लोग इस बात की मांग कर चुके हैं कि एक हेक्टेयर के तालाब को अधिकतम 5,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से नीलाम किया जाए।

मत्स्य पालन से जुड़े लोगों का मानना है कि वर्ष 2016 से पहले तक नीति अच्छी थी। तब मछुआरों को तहसील स्तर तक के पट्टे मिल जाते थे। लेकिन, अभी यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई। अब राज्य सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों को मछुआरा समुदाय को प्राथमिकता के आधार पर देने का आदेश जारी किया है। इस आधार पर पट्टे हो रहे हैं। इसके बाद मत्स्य पालन में एससी, ओबीसी और अन्य जातियों के लोगों को मौका मिल रहा है। जबकि, मछली पालन से जुड़े मछुआरा समुदाय के लोग पुरानी व्यवस्था को बहाल करना चाहते हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि पहले हमारे समुदाय के लोगों को बड़े स्तर पर भी पट्टे मिल जाते थे। नई व्यवस्था में अन्य समुदाय के लोग, ताकतवर, पूंजीपति और कारोबारी बड़े पट्टे पर काबिज हो जा रहे हैं। इससे उनका हक मारा जा रहा है। वे इस हक को दोबारा देने की मांग उठा रहे हैं।

सरकारों से मिल रही आर्थिक मदद: गौड़

मुरादाबाद। मछुआरों के लिए सरकार की एक बेहद महत्वपूर्ण योजना संचालित है। दरअसल, जुलाई, अगस्त और सितंबर में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लग जाता है। इस कारण मछली पालन पर निर्भर रहने वाले पिछड़े मछुआरों के लिए आजीविका पर संकट आ जाता है। लेकिन, अब इन सक्रिय मछुआरों को भी चिंता नहीं करनी है। बल्कि इनकी चिंता सरकार करेगी। ज्येष्ठ मत्स्य निरीक्षक राजकुमार गौड़ का कहना है कि योग्य मछुआरों को विभागीय पोर्टल पर आवेदन कर करना है। इस योजना के अन्तर्गत एक नई परियोजना भी इस वित्तीय वर्ष से संचालित की जा रही है। इन मछुआरों को सरकार आर्थिक सहायता देगी। मछली पालन पर आश्रित सक्रिय पिछड़े मछुआरे जुलाई, अगस्त और सितंबर में मछली पकड़ने के प्रतिबंध यानी रोक के दौरान इनको आजीविका और पोषण संबंधी आर्थिक सहायता सरकार दे रही है। इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार 1500 रुपये और केंद्र सरकार 1500 रुपये दे रही है।

मछली पालन क्षेत्र में आई है कमी

मुरादाबाद। मछली पालक बताते हैं कि शहरीकरण , औद्योगिकीकरण और जनसंख्या वृद्धि के मछली पालन में कमी आई है। साथ ही धान की फसल के खेतों में मछली पालन का चलन नहीं है। इससे जलीय कृषि के लिए स्थान कम हो रहा है। इसके अलावा अप्रत्याशित मानसून जल स्तर में उतार-चढ़ाव पैदा करके मत्स्य पालन को प्रभावित करता है। कुछ मौसम के दौरान मछली उत्पादन में कमी आती है । खराब विपणन , भंडारण और परिवहन सुविधाएं मछली के कुशल वितरण और बिक्री को रोकती हैं, जिससे क्षेत्र की वृद्धि और लाभप्रदता सीमित हो जाती है। सीमित अनुसंधान और कमजोर विस्तार सेवाएं मत्स्य उद्योग के भीतर नई प्रौद्योगिकियों और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने में बाधा डालती हैं। इसके लिए प्रयास करने होंगे।

बाजार में मछली की अच्छी है मांग

जनपद में नगर और उप नगर स्तर पर मछली बिक्री के लिए बाजार हैं। जबकि स्थानीय स्तर पर भी नियमित मछलियों की बिक्री होती है। जहां तक मछली की कीमत की बात है तो यह 200 से 500 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रही है। लोग मछली की कीमत को लेकर जरूर सवाल उठाते हैं।

मत्स्य सम्पदा योजना मछली पालन के उन्नयन का आधार

मुरादाबाद। राष्ट्रीय मत्स्य पालन नीति सतत विकास, संसाधन संरक्षण, तथा मछली उत्पादन में सुधार और सामुदायिक कल्याण पर केंद्रित है। राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड का प्रयास मछली उत्पादन और आजीविका को बढ़ावा देने के लिए जलीय कृषि, बुनियादी ढांचे के उन्नयन और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना है। जबकि, प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का कार्य बुनियादी ढांचे, कल्याण और फसलोपरांत प्रबंधन में लक्षित समर्थन के साथ भारत को मछली हब में बदलना है। मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि मत्स्य पालन अवसंरचना में सुधार के लिए 2 साल की मोहलत सहित 12 वर्षों के लिए 3 प्रतिशत प्रति वर्ष की ब्याज सहायता प्रदान करता है। मछुआरों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड से मछुआरों और मछली किसानों को कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए आसान ऋण प्रदान करजा है, जिससे इस क्षेत्र में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है। यह सही है कि मत्स्य पालन क्षेत्र में चुनौतियां कम नहीं हैं। जैसे अपर्याप्त वित्तीय सहायता, सीमित उत्पादकता और आधुनिक मछली पकड़ने की प्रथाओंके कारण मछुआरों को उन्नत उपकरण प्राप्त करने में कठिनाइयां हैं। उधर, नदियों, झीलों और तटीय क्षेत्रों जैसे जल निकायों में प्रदूषण जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और मत्स्य पालन की स्थिरता को खतरा पहुंचता है। एक अध्ययन में यह पता चा है कि शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण मछली पालन के लिए उपयोग किए जाने वाले धान के खेतों में कमी आई है, जिससे जलीय कृषि के लिए स्थान कम हो रहा है। क्योंकि मानसून की अनिश्चितता, जल स्तर में उतार-चढ़ाव पैदा करके अंतर्देशीय मत्स्य पालन को प्रभावित करता है। कुछ मौसमों के दौरान मछली उत्पादन में कमी आती है।

-डॉ.दीपक मेंदिरत्ता, एमडी एग्री क्लीनिक-एग्री बिजिनेस सेंटर मनोहरपुर

बायोफ्लोक तकनीक हो रही है लोकप्रिय

मुरादाबाद। जिले में जलीय कृषि उद्योग में बायोफ्लोक तकनीक लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। मुरादाबाद शहर दिल्ली जैसे प्रमुख राज्य से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, जो इसे जलीय कृषि विकास के लिए उपयुक्त स्थान बनाता है। मछली और समुद्री खाद्य की बढ़ती मांग के साथ, उत्तर प्रदेश राज्य में जलीय कृषि एक आवश्यक क्षेत्र बन गया है। बायोफ्लोक तकनीक जलीय कृषि की एक टिकाऊ और लाभदायक विधि साबित हुई है और मुरादाबाद के कई किसानों ने इस तकनीक को अपनाया है। मुरादाबाद में बायोफ्लोक तकनीक का सामाजिक प्रभाव सकारात्मक रहा है। इस तकनीक को अपनाने से क्षेत्र के कई लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं। मछली और समुद्री खाद्य उत्पादन में भी वृद्धि हुई है, जिससे स्थानीय आबादी को पोषण का स्रोत मिला है।

नदियों में से मछली पकड़कर बेचते हैं लोग, होती है आय

मुरादाबाद शहर क्षेत्र के पास से होकर गांवों के बीच गुजर रहीं रामगंगा और गागन नदी में बड़ी मात्रा में मछली पकड़ी जाती हैं। खादर क्षेत्र में बरसात के दौरान इन नदियों में काफी मछली आती हैं। दिन-दिन भर लोग नदियों में मछली पकड़ने में जुटे रहते हैं। साथ ही मछुआ समाज के लोग नदियों में से मछली पकड़कर बेचते हैं। यह उनकी आय जरिया बनता है।

मछली पालन: विभाग का यह है दावा

विभागीय रिकार्ड में जनपद में 4500 मछुआरों को विभाग ने आजीविका दिया है। इनके लिए तालाबों के पट्टे, निजी तालाब का निर्माण, बाइक, तीन पहिया वाहन, चारपहिया वाहन, पिकअप आदि की व्यवस्था की गई है। चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 52 हेक्टेयर क्षेत्रफल के तालाबों का पट्टा हो चुका है। अब तक इस समुदाय के 78 लोग तालाबों के पट्टे पाए हैं। विभाग की रिकॉर्ड देखें तो हर साल औसतन एक हेक्टेयर में 50 क्विंटल मछली का उत्पादन हो रहा है।

प्रमुख समस्याएं

अब गांव के तालाबों के लिए ही मछुआरा समुदाय को वरीयता दी जा रही है। पहले तहसील स्तर तक मिलने वाली वरीयता से रोक हटे।

मछुआरा समुदाय के लोगों को तकनीकी स्तर पर काम करने की सहूलियतें नहीं मिल रहीं हैं। मछली पालन में परंपरागत तरीका अपनाया जाता है।

विभाग की ओर से एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के तालाब की सालाना किराएदारी यानी लगान 10 हजार रुपये रखा गया है। यह धनराशि अधिक है।

निजी तालाब बनाने के लिए सरकार की ओर से फंड का प्रबंध नहीं है। ऐसे में परंपरागत रूप से मछली का पालन करने वालों पर सरकार नहीं सोच रही है।

प्रमुख सुझाव

मछुआ समुदाय के लोगों की माली हालत में सुधार के लिए सरकार को विशेष सहायता करनी होगी। यह समाज की मुख्यधारा से अभी नहीं जुड़ा है।

गांवों के तालाब और मछली पालन के केंद्र को विभाग की ओर से दुरुस्त कराना चाहिए। पुराने तालाब की मरम्मत में लोग परेशान होते हैं।

मछली पालन में मछुआरा समुदाय के अलावा अन्य लोगों को मौका नहीं मिलना चाहिए। समुदाय के विकास के लिए केवल इन्हें मौका मिले।

समाज के विकास के लिए बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य का अगल से प्रबंध होना चाहिए। संगठन के लोग इस बात की मांग सरकार से कर रहे हैं।

हमारी भी सुनें

जिले में मछली की अच्छी खपत है। यहां नदियों और तालाबों में मछली उत्पादन ठीक होता है, लेकिन इसके लिए मछुआ समाज के लोगों को तालाबों के पट्टे लेने के लिए अधिकारियों के पास चक्कर लगाने पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है। ताकि मछुआरों को राहत मिल सके।

-गजेंद्र सिंह ढिल्लो

मुरादाबाद जिले में कई नदियों में मछली पकड़ी जाती है। साथ ही गांव-देहत में स्थित तालाबों में मछली पालन किया जाता है। मछली उत्पादन में काफी लागत आ रही है। क्योंकि तालाबों के पट्टे आवंटित करने के दौरान काफी रुपये लिए जा रहे हैं। इस धनराशि को कम किया जाए।

-ओमित देओल

मछली पालकों को संरक्षण देने के लिए सरकारों ने काफी प्रयास किए हैं। कई योजनाएं संचालित हैं, लेकिन इन्हें धरातल पर उतारने के लिए विभागों के अफसर गंभीर हैं। इससे मछुआ समाज के लोगों को योजनाओं का लाभ कम मिल रहा है। अधिकारी प्रयास तेज करें तो इसमें सुधार हो सकता है।

-अब्दुल रहीम

सरकार की ओर से मछली पालन के लिए योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। अभी केंद्र सरकार की योजना की किसान और मछली पालक लाभ पा रहे हैं। राज्य सरकार की ओर से भी मत्स्य पालन की योजनाएं मिलनी चाहिए। इससे मछुआ समाज के लोगों को लाभ मिलेगा।

-राजवती

गांवों के तालाबों को विभाग की ओर से ठीक किया जाना चाहिए। गांवों के तालाबों पर अतिक्रमण है और विभाग की ओर मछुआ समुदाय और समिति को पट्टा जारी कर दिया जा रहा है। यह नियम संगत नहीं है। इस प्रक्रिया में सुधार किए जाने चाहिए।

-छोटी कश्यप

मछली पालन और बिक्री बड़ी चुनौती का कार्य है। शहर में मछली बिक्री के केंद्र या बाजार की व्यवस्था की जानी चाहिए। नगर निगम की ओर से भी मछली बिक्री के लिए कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। सड़कों के किनारे मछली बेचने पर अधिकारियों से कार्रवाई का डर रहता है।

-नन्हें हुसैन

हम लोग गुजर-बसर के लिए मछली बेचने का कार्य करते हैं। सरकार की ओर से स्ट्रीट वेंडर की योजना चली है लेकिन मछली बेचने वालों को सरकार की योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए अधिकारियों को गंभीरता से प्रयास करना पड़ेगा।

-भागीरथी कश्यप

मछली पालन के काम में मछुआ समुदाय के लोगों को वरीयता मिलनी चाहिए। इस समाज और समुदाय के लिए अब सरकारों की ओर से कारगर प्रयास नहीं किए गए। अब सरकारों ने वादाखिलाफी की है। साथ ही अधिकारी भी प्रयास नहीं कर रहे हैं।

-शिवम कश्यप

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