बोले मुरादाबाद : सुविधा-सुरक्षा मिले तो और चमके दस्तकारी
Moradabad News - मुरादाबाद की पीतल नगरी में ढाई लाख से अधिक दस्तकार हैं जो महंगाई और सरकारी योजनाओं की कमी से परेशान हैं। उत्पादों की लागत बढ़ गई है जबकि युवा इस पेशे से दूर हो रहे हैं। दस्तकारों ने स्वास्थ्य, सुरक्षा...
करीब पंद्रह हजार करोड़ का सालाना निर्यात करने वाली पीतल नगरी मुरादाबाद की रीढ़ यहां के ढाई लाख से ज्यादा आर्टीजन हैं। महंगाई और विभागीय योजनाओं का सही लाभ उन तक नहीं पहुंचता है। पीतल की सिल्ली के दाम दस साल में 250 से 600 रुपये हो गए। ऐसे मे दस्तकार परेशान हैं। अब नई पीढ़ी इससे दूर हो गई है। जो पहले से काम करते आ रहे उनमें से तमाम ई रिक्शा चलाने लगे तो कुछ आर्टीजन नेपाल, श्रीलंका, सऊदी अरब का रुख कर गए। दस्तकारों को सुविधाओं के साथ सेहत और सुरक्षा भी चाहिए। निर्यात में बड़ी भागीदारी रखने वाले दस्तकारों का अब इस कारीगरी से मोह भंग होने लगा है। उन्होंने कहा कि चाइना सस्ते उत्पाद बेचता है इससे मुरादाबाद के पीतल बाजार पर असर पड़ता है। हस्तशिल्प के कार्यों में दस्तकारों को घरेलू बिजली के इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। चालीस लाख से कम के सालाना टर्न ओवर में जीएसटी अनिवार्य नहीं है। इसके बाद भी मेले में डिस्प्ले के लिए उत्पाद ले जाने वालों से जीएसटी वाले बिल मांगते हैं। नहीं दिखाने पर जुर्माना डालते हैं। पुराने हेल्थ कार्ड बंद कर दिए। आयुष्मान कार्ड मिले भी तो उसमें ओपीडी की सुविधा नहीं है।
बायर से आर्डर मिलने के बाद एक निर्यातक मैन्युफैक्चरर को जो आर्डर देता है उसे पीतल मजदूर दस्तकारों से तैयार करवाया जाता है। एक आइटम कई हाथों से गुजरने के बाद इस लायक बनता है कि उसे विदेश निर्यात किया जाए। डिजाइन, सांचा तैयार करने ढलाई से लेकर, वेल्डिंग, छिलाई, घिसाई, उलचाई जैसे तमाम कार्यों में मुरादाबाद के करीब ढाई लाख दस्तकार लगे हैं। इन कार्यों में बिजली, कोयला, एलपीजी और आक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ती है। बिजली का बिल पहले 500 आता था वह तीन हजार हो गया। घरेलू बिजली से काम करने की अनुमति नहीं है। कोयला महंगा है। पीतल की सिल्ली महंगी है। लोन उन्हीं को मिलता है जो पहुंच वाले हैं। पीतल मजदूर की फाइल पास होना मुश्किल हो जाता है। किलो के हिसाब से अथवा पीस के हिसाब से वह आर्डर तैयार करके देते हैं पर महंगाई के चलते उनके उत्पाद की लागत बढ़ जाती है और मुनाफा घट जाता है। मजदूरी निकलना मुश्किल हो जाता है। सुबह से शाम तक काम करने वाले इन्ग्रीविंग करने वाले एक बुजुर्ग दस्तकार बताते हैं पांच सौ रुपये कमाना एक दिन में मुश्किल हो जाता है। यहां के आर्टीजन इतने कुशल हैं कि उनकी बाहर तक मांग है इसके चलते कुछ लोग नेपाल, श्रीलंका और बंग्लादेश भी गए हैं। वहीं कुछ ई रिक्शा चलाने लगे। नई पीढ़ी तो इस कार्य में उतरना ही नहीं चाहती। मेटल हैंडीक्राफ्ट सर्विस सेंटर में उत्पादों की टेस्टिंग होती है स्किल्ड प्रोग्राम भी होते हैं पर असली दस्कारों को कभी ट्रेनिंग नहीं मिलती। आर्टीजनों की मांग है कि मुरादाबाद में प्रतिभा को निखारने के लिए एक नेशनल टेक्निकल इंस्टीट्यूट बनाया जाए जिससे उन्हें दक्षता का प्रमाण पत्र भी मिल सके। एक जिला एक उत्पाद में राहत बढ़ा कर 35 प्रतिशत की जाए इसे व्यापक स्तर पर आर्टीजनों तक लाभ दिया जाए। कुछ आर्टीजनों ने कहा कि रूस यूक्रेन, इजराइल फलिस्तीन की जंग से भी कारोबार पर असर पड़ा है। आर्टीजनों का कहना है कि उनकी समस्याओं का समाधान होना चाहिए।
दस से अधिक हाथों से गुजरकर बनता है एक नायाब उत्पाद
मुरादाबाद। निर्यात नगरी के दस्तकारों का हुनर अपने आप में अजूबा है। बेहद बारीकी के इन कामों में महारथ रखने वाले प्रशिक्षण और संरक्षण के अभाव में दिन ब दिन कम होते जा रहे हैं। एक नायाब उत्पाद पूरी तरह से तैयार होने में 10 से अधिक हाथों से गुजरता है। वरिष्ठ दस्तकारों की चिंता है कि यदि इस दिशा में सही कदम न उठाया गया तो ये महारत मुश्किल में पड़ सकती है।
मुरादाबाद में ढाई लाख दस्तकार अलग-अलग तरह के काम में माहिर हैं। किसी को सांचे बनाने का काम बहुत अच्छे से आता है तो किसी को उलचाई में महारत है। कारखानेदार को निर्यातक से जब एक्सपोर्ट आइटम का आर्डर मिलता है तो उसका डिजाइन दिखाया जाता है उसका मास्टर (सांचा) मोम से तैयार किया जाता है। जैसे यदि किसी सजावटी आइटम के लिए दिल का आकार तैयार किया जाना है तो पहले उसका सांचा बनेगा। इसके बाद ढलाई में सिल्ली पिघला कर उस सांचे में ढाल कर एक आकार तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद उस उत्पाद की जरूरत के अनुसार छिलाई के लिए, घिसाई के लिए, वेल्डिंग के लिए अलग-अलग हुनरमंदों के पास भेजा जाता है। किसी प्रोडक्ट में धातु का कोई हिस्सा जुड़ना हो तो उसे वेल्डिंग के लिए अलग भेजा जाता है। छिलाई-घिसाई तो लगभग सभी उत्पादों में होता है। किसी भी पॉट, सजावटी आइटम, मटका आदि में इन्ग्रेविंग (उलचाई) का काम होता है तो उसमें भी काफी वक्त लगता है। इस काम में तमाम बुजुर्ग और अनुभवी दस्तकार अपनी कड़ी मेहनत से इसे तैयार करते हैं। दस्तकार वजन के हिसाब से अथवा पीस के हिसाब से दाम तय करता है और मैन्युफैक्चरर को आर्डर डिलीवर कर देता है। फिनिशिंग करवाने का काम एक्सपोर्टर का होता है वही उसे पैक करवा कर दूसरे देशों में आर्डर भेजता है। इस तरह बड़ी मशक्कत के बाद उत्पाद तैयार होते हैं। माल अलग अलग स्थानों पर तैयार होता है इनमें बिजली, कोयला से लेकर तमाम तरह के खर्च आते हैं। महंगाई इतनी है कि कोयला भी महंगा, बिजली भी महंगी और लेबर को उतना ही मेहनताना मिल रहा है इससे लिए फायदा कम होता है यही माल अगर कम लागत में तैयार हो तो ज्यादा फायदा मिल सकता है।
पीएम मोदी जर्मनी ले गए थे मुरादाबाद का मटका तो एकाएक बढ़ गई मांग
मुरादाबाद के शिल्पगुरु पद्म श्री दिलशाद हुसैन द्वारा तैयार एक मटका यूपी में के मेले में स्टाल में लगाया गया। उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतना पसंद किया कि वह उसे अपने साथ जर्मनी ले गए। वहां के गर्वनर को उन्होंने वह मटका तोहफे में दिया। पद्मश्री दिलशाद हुसैन बताते हैं कि तब से उनके मटके की मांग बढ़ गई है। ब्रास के मटके में बारीक इन्ग्रेविंग की जाती है जिसमें काफी वक्त लगता है। इसकी काफी अच्छी कीमत भी मिलती है। उन्होंने कहा कि मैं शुक्रगुजार हूं प्रधानमंत्री का जिन्होंने हमारी कला को जर्मनी तक खुद पहुंचाया।
तमाम देश मुरादाबाद की कारीगरी के मुरीद
मुरादाबाद। मुरादाबाद के आर्टीजन अपने अनुभव और हुनर में इतने कुशल हैं कि उनकी कारीगरी के तमाम देश मुरीद हैं। उन्हें अगर और स्किल्ड किया जाए। सुविधाएं दी जाएं। स्वास्थ्य की समस्याओं का समाधान हो तो और निखरें। बहरीन से दुबई, कतर, यूएसए, यूरोप, इंग्लैंड, अफ्रीका कोई ऐसा देश नहीं हैं जहां उनके तैयार आइटम नहीं पहुंचते हैं। निर्यातकों के द्वारा आर्डर पर वह उन्हें माल तैयार कर भेजे हैं।
मुरादाबाद के कई मोहल्लों की दस्तकारों से पहचान
मुरादाबाद के पीरजादा से लेकर कई मोहल्ले दस्तकारों की पहचान बन चुके हैं। पीरजादा में उलचाई से लेकर छिलाई, समेत तमाम कार्य होते हैं। इसी तरह पक्का बाग, चक्कर की मिलक, दौलत बाग समेत कई मोहल्ले घर घर दस्तकारी के लिए पहचाने जाते हैं। इसमें एक बड़ी आबादी निवास करती है जिसकी रोजी रोटी ही इसी पर निर्भर करती है। पक्का बाग में एक खुला एरिया है उसे तो लोग आर्टीजन चौक के नाम से जानते हैं।
पीतल के साथ एल्युमिनियम और स्टील का भी उपयोग
दस्तकार पीतल के साथ एल्युमिनियम और स्टील का भी उपयोग उत्पादों में मांग के अनुसार करते हैं। इसमें सजावटी सामान और दैनिक उपयोग के समा्न प्रमुख हैं। पूजा के दीपक से लेकर खेलों के आयोजन, सांस्सकृतिक, सामाजिक और राजनीतिक मंचों पर वितरित की जाने वाली ट्राफिया भी शामिल हैं। इसमें प्रमुख रूप से इन दिनों पीतल कारीगर कैंडल स्टैंड. किचेन वेयर, बाथरूम में इस्तेमाल होने वाला सामान, फ्लावर बेस, सजावटी सामान, गार्डन वेयर तैयार कर रहे हैं। ड्राइंग रूम से दफ्तर तक सजाने में तमाम लोग यहां के उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं।
पूजा आइटमों पर जीएसटी खत्म करने की मांग पुरानी
मुरादाबाद। पूजा के आइटमों पर भी जीएसटी लगने से पूजा के आइटम जैसे आरती, दीपक, घंटी जैसी तमाम चीजों का कारोबार हल्का पड़ गया है। मुरादाबाद से बंग्लुरू, केरल, गुजरात, पंजाब, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश समेत तमाम राज्यों में माल जाता है। पूजा आइटमों पर इसकी लागत ज्यादा होने से बाजार पर असर पड़ा है पूजा आइटमों से जीएसटी हटाने की मांग दस्तकार करते हैं।
उलचाई में मिले ढेरों अवॉर्ड अन्य की झोली खाली
मुरादाबाद। मुरादाबाद में यूं तो दो पद्मश्री, दस नेशनल अवार्डी और तीस राज्य अवार्डी हैं पर ज्यादातर अवार्ड उलचाई विधा के माहिर दस्कारों को मिले हैं। यह अवार्ड अगर अन्य कार्य करने वाले दस्तकारों को मिलने लगें तो खालीपन खत्म हो।
कारखानेदार नोमान मंसूरी कहते हैं कि इससे सभी दस्तकारों की हौसला अफजाई होगी। असली काम शुरू होता है मास्टर बनाने से यानी जब सांचा तैयार होता है। इसके बाद जो भी कार्य उत्पाद पर किए जाते हैं सभी पर कड़ी मेहनत और महारथ की जरूरत होती है। ऐसे दस्तकारों के काम को भी पहचान मिले तो अच्छा होगा। वहीं आजम अंसारी कहते हैं कि सबसे पहले चालीस लाख तक कारोबार पर जीएसटी न लगाने की जो व्यवस्था है उसका पूरी तरह अनुपालन हो जिससे कारोबारियों को समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े। इसके साथ ही एसईजेड को कस्टम के अधिकार क्षेत्र से बाहर किया जाए इसका असर यह होगा कि पीतल दस्तकारों को सहूलियत होगी। उन्हें वहां भी अवसर मिले। आर्टीजन पार्क और शिल्प ग्राम जैसे कान्सेप्ट को भी धरातल पर उतारने की बात तमाम दस्तकारों ने कहीं।
दस्तकारों के प्रमुख कार्य
-सांचा तैयार करना
-सिल्ली से नए शेप में ढलाई
-वेल्डिंग से उत्पादों को जोड़ना
-घिसाई से उत्पाद को संवारना
-चूड़ी कटाई से आइटम निखारना
-इन्ग्रेविंग (उलचाई) से नक्काशी बनाना
बोले दस्तकार
अवार्ड से हौसला बढ़ा है। सरकार ने कई सुविधाएं दी तो हैं पर अभी भी दस्तकारों को दरकार है कि उन्हें ज्यादा प्लेटफार्म मिलें।
-दिलशाद हुसैन, पद्मश्री व शिल्प गुरु
डिस्प्ले के लिए अपने उत्पाद ले जाने वालों को जीएसटी अफसर न रोकें। एमएचएसपी में ट्रेनिंग प्रोग्राम में असली दस्तकारों को ट्रेंड कर उनको प्रमाण पत्र दिए जाएं।
-नोमान मंसूरी, हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष
पीतल की सिल्ली के दाम कम होने चाहिए। इससे दस्तकार को ज्यादा लाभ होगा। बिजली सस्ती हो। हेल्थ कार्ड में रुटीन चेकअप की सुविधा भी दिलाई जाए।
-हाफिज हबीब उर रहमान, पीतल दस्तकार
ओडीओपी योजना को और व्यापक करें। मुरादाबाद में नेशनल टेक्निकल इंस्टीट्यूट बनाया जाए। एसईजेड को कस्टम से मुक्त किया जाए।
-आजम अंसारी, ब्रास कारखानेदार एसोसिएशन के अध्यक्ष
मंहगाई की वजह से माल तैयार करने में कीमत ज्यादा आती है। जब तक चीन की तरह कच्चा माल सस्ता नहीं होगा दस्तकारों को लाभ नहीं मिलेगा।
-महबूब आलम अंसारी, दस्तकार
दस्तकारों के हुनर को निखारने के लिए उन्हें लगातार स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग मिले। लगातार काम मिले ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।
-रईस अहमद, कारखानेदार
काम मंदा चल रहा है इसकी वजह मंहगाई है। ऐसी स्थिति बन जाती है सरकार को दस्तकारों की समस्याओं को सुलझाने को इस बारे में सोचना चाहिए तभी समाधान होगा।
-नदीम, दस्कार (वेल्डर)
आर्टीजन काम करने को बैठा है पर जब उसे लगता है कि जितना काम कर रहा उतनी मजदूरी नहीं मिलती है तो उसकी तरक्की कैसे हो सकती।
-साजिद, पीतल दस्तकार
ब्रास आइटम तैयार करने में कई प्रक्रिया होती हैं इसमें बिजली भी लगती है कोयला भी लगता है। इन सब में महंगाई की वजह से उत्पादों की लागत ज्यादा हो गई है इसे कम किया जाना चाहिए।
-मोहम्मद मोबीन, दस्तकार
छिलाई के दौरान मेरे हाथ में गंभीर चोट आई। रॉड पड़ी है। इसके बाद से काम करना मुश्किल हो गया। इलाज की बेहतर व्यवस्था नहीं है। आर्टीजनों के स्वास्थ्य के लिए सहूलियतें और बढ़ाई जाएं।
-जहीर, छिलाई कारीगर
हमारे स्वास्थ्य को लेकर समस्या रहती है। ऐसी गारंटी होनी चाहिए कि किसी को भी मुफ्त इलाज की सहूलियत मिले। इसके अलावा काम की गारंटी मिले।
-जहीर आलम मंसूरी, दस्तकार
सुझाव
1.जीएसटी 40 लाख तक के कारोबारियों से न ली जाए, डिस्प्ले के उत्पादों में बिल न मांगा जाए
2.घरेलू बिजली से ही हस्तशिल्प कार्यों को करने की अनुमति मिले जिससे लागत में कमी आए
3.पीतल की सिल्ली के दाम तीन सौ के आसपास और एल्युमिनियम सिल्ली 100 में मिले
4.आयुष्मान कार्ड धारकों को ओपीडी की भी सुविधा मिले या अलग से हेल्थ कार्ड बनें
5.नई पीढ़ी के प्रशिक्षण के लिए एमएचएससी के माध्यम से ट्रेनिंग भी दिलाई जाए
6.मुरादाबाद में नेशनल टेक्निकल इंस्टीट्यूट की स्थापना की जाए जिससे दक्षता प्रमाणित हो
7.आर्टीजन पार्क बना कर दस्तकारों के लिए प्रोडक्ट डिस्प्ले के लिए स्थान मिले।
8.आर्टीजनों को पेंशन अथवा मनरेगा की तरह रोजगार की गारंटी का इंतजाम किया जाए।
शिकायतें
1.डिस्प्ले के लिए प्रोडक्ट ले जाने पर जीएसटी वाले बिल मांगते हैं
2.घरेलू बिजली से हैंडीक्राफ्ट कार्य करने की अनुमति नहीं मिलती
3.आयुष्मान में ओपीडी की व्यवस्था नहीं इसमें सिर्फ गंभीर रोगों में इलाज
4.बैंकों से लोन की फाइल पास नहीं होतीं, रसूखदारों को फायदा
5.आर्टीजनों के लिए कोई ऐसा प्लेटफार्म नहीं जहां उनको पहचान मिले
6.पीतल की सिल्ली के दाम 600 रुपए किलो होने से लागत महंगी हो चुकी
7.एल्युमिनियम की सिल्ली 250 रुपए किलो जो पहले 100 किलो थी
8.चीन में कच्चा माल सस्ता तभी इंटरनेशनल बाजार में मुकाबला नहीं कर पाते।
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