मिर्जापुर : विदेशों में पुल बनाने वाले विभाग को सूबे में नहीं मिल पा रहा काम
वीरेंद्र दुबे मिर्जापुर। राजकीय सेतु निगम को काम न मिलने से इंजीनियरों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। मशीनों के रखरखाव के लिए बजट की कमी से स्थिति खराब हो गई है। प्रोजेक्ट मैनेजर ने कार्यालय बंद करने...
वीरेंद्र दुबे मिर्जापुर। देश-विदेश में तमाम पुल बनाने वाला राजकीय सेतु निगम सूबे में ही ‘खाली है। काम न होने से इंजीनियरों को समय से वेतन नहीं मिल पा रहा है। मशीनों के रखरखाव का खर्च नहीं जुट पा रहा है। खस्ताहाल स्थिति से निराश प्रोजेक्ट मैनेजर आरएस उपाध्याय ने शासन को पत्र लिख कर मिर्जापुर कार्यालय बंद करने का अनुरोध किया है। दरअसल, पांच दशक पुराना राजकीय सेतु निगम गुणवत्ता (क्वालिटी) से कोई समझौता नहीं करना चाहता है। ऐसे में वह ऊंचा टेंडर देता है। इसका फायदा उठाकर निजी कंपनियां लो-टेंडर से उसका काम हथिया लेती हैं। सच्चाई यह है कि दोनों के काम में जमीन-आसमान का अंतर है।
प्रदेश सरकार ने सन् 1973 में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के बेहतर इंजीनियरों की टीम से राजकीय सेतु निगम बनाया। इसका काम नदियों पर पुल बनाना है। शुरू में सरकार ने इसे 50 लाख रुपए तक के पुल बनाने का काम दिया। कुशल और अनुभवी इंजीनियरों की देखरेख में गुणवत्तायुक्त काम ने शासन को प्रभावित किया। फल यह हुआ कि इसे 1500 करोड़ रुपये के पुल निर्माण का काम मिला। चार दशक तक इसके काम का डंका बजता रहा। देश ही नहीं, इसे ईरान, इराक, नेपाल, सऊदी अरब और चेकोस्लोवाकिया में पुल बनाने की जिम्मेदारी मिली। प्रोजेक्ट मैनेजर की मानें तो इंजीनियरों-कर्मचारियों के वेतन, मशीनों के रखरखाव और अन्य खर्चों के लिए शासन से स्वीकृत प्रोजेक्टों को मिलने वाले बजट पर निर्भर रहना पड़ता है।
बोझ बन चुकी हैं भारी-भरकम मशीनें
मिर्जापुर। पुल निर्माण की भारी-भरकम मशीनें राजकीय सेतु निगम के लिए बोझ बन चुकी हैं। इनके रखरखाव के लिए शासन से पर्याप्त बजट नहीं दे रहा है। काम न होने से ये जंग खा रही हैं। जेसीबी, क्रेन और अन्य मशीनें धीरे-धीरे खराब हो रही हैं।
रिवाइज बजट नहीं मिलने से अधर में लटका पुल निर्माण
मिर्जापुर। निर्माणाधीन पुलों के लिए रिवाइज बजट नहीं मिलना भी राजकीय सेतु निगम के लिए बड़ा संकट है। प्रोजेक्ट मैनेजर की मानें तो सोनभद्र की घोरावल तहसील में सोन नदी पर सिल्पी-कुड़ारी के बीच बन रहे पुल के लिए रिवाइज बजट 72 करोड़ रुपये का है। दो वर्ष से धन नहीं मिलने के कारण सारा काम लटका है। अभी एक पिलर और दो स्लैब बनाना बाकी है। बजट के लिए तत्कालीन राज्यसभा सांसद रामशकल भी शासन को पत्र लिख चुके हैं।
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