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बोले मेरठ : ऑनलाइन सामान मंगवाने वाले इनका दर्द भी समझें

Meerut News - डिलीवरी बॉय की कहानी में कई मुश्किलें छिपी होती हैं। ये लोग दिन-रात काम करते हैं, लेकिन उन्हें स्थायी नौकरी और मेडिकल बीमा की गारंटी नहीं होती। कोई भी समस्या आने पर, कंपनी उनकी मदद नहीं करती। डिलीवरी...

Newswrap हिन्दुस्तान, मेरठWed, 19 March 2025 10:45 AM
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बोले मेरठ : ऑनलाइन सामान मंगवाने वाले इनका दर्द भी समझें

मेरठ। जब हम अपने मोबाइल पर खाना, कपड़े या कोई और सामान ऑर्डर करते हैं, तो हमें बस एक ऐप पर क्लिक करना होता है। हम आराम से बैठकर इंतज़ार करते हैं कि दरवाजे पर कोई घंटी बजाए बजे और हमें हमारा सामान मिल जाए लेकिन ऑर्डर डिलीवर के नोटिफिकेशन के पीछे एक ऐसी कहानी छिपी होती है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं, एक डिलीवरी बॉय की कहानी। जो जान हथेली पर लेकर हीरो की तरह हमारे सामान को समय पर पहुंचाता है, बस हमें ऑर्डर करना होता है, रात हो या दिन, समय पर सामान पहुंचाना इनका काम होता है। डिलीवरी बॉय की सुबह बहुत जल्दी होती है, लेकिन रात बहुत देर से खत्म होती है। चाहे बारिश हो, धूप हो या फिर ठिठुरती ठंड, हेलमेट और बैग लेकर निकलना पड़ता है। पेट्रोल के बढ़ते दाम, ट्रैफिक का दबाव और समय की पाबंदी के बीच, वो सिर्फ एक लक्ष्य लेकर चलते हैं। सामान को सही समय पर ग्राहक तक पहुंचाना। देखा जाए तो डिलीवरी बॉय के पास ना तो कोई स्थायी नौकरी की गारंटी होती है और ना ही मेडिकल बीमा। अगर रास्ते में एक्सीडेंट हो जाए, तो देखने वाला कोई नहीं होता। प्लेटफॉर्म्स और कंपनियां अक्सर उनकी समस्याओं से पल्ला झाड़ लेती हैं। अगर कोई ग्राहक बिना वजह लड़ाई करे, या फिर कोई सड़क पर धमका दे, तो सुनने वाला कोई नहीं होता। कई बार पुलिस भी आंखें मूंद लेती है।

शहर में ब्लिंकिट, जोमेटो, स्वीगी, केएफसी और कॉरियर की ना जानें कितनी कंपनियों के सैकड़ों डिलीवरी बॉय सड़कों पर दौड़ते नजर आते हैं। सुबह से लेकर रात तक लोगों के सामान को उनके घर तक पहुंचाते हैं। समय की पाबंदी और सामान खराब होने का डर इन्हें हमेशा रहता है। कई बार दिक्कतें ऑर्डर करने वाले की भी होती है। डिलीवरी बॉय विकेश कुमार, सचिन और प्रवीण कुमार का कहना है कि वह दिन में 14 से 16 घंटे नौकरी करते हैं। समय पर लोगों का सामान पहुंचाते हैं, अगर कभी कुछ दिक्कत हो जाए तो कंपनी वाले सुनते ही नहीं हैं। फोन तक नहीं उठाते, अगर शिकायत करो तो आईडी रख लेते हैं। अपनी आवाज भी उठाना यहां कई बार गुनाह होता है। सुनवाई तो यहां होती ही नहीं है।

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देरी की सजा, समय की मार

दीपक कुमार, विकास कुमार और विशाल का कहना है कि अगर डिलीवरी में थोड़ी भी देर हो जाए, तो उसका सीधा असर कमाई पर पड़ता है। ऐप पर लेट डिलीवरी दर्ज होते ही पैसे कट जाते हैं। चाहे ट्रैफिक में फंसे हों, रास्ता खराब हो या ग्राहक की गलती हो, ज़िम्मेदार सिर्फ एक इंसान होता है, डिलीवरी बॉय। कई बार घंटों तक कस्टमर का एड्रेस खोजने में निकल जाते हैं। लोकेशन पर पहुंचते हैं तो फोन नहीं उठाया जाता। जिससे समय तो बर्बाद होता ही है, दूसरे की डिलीवरी भी लेट हो जाती है।

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सामान टूटे या खराब हो जाए, दोषी डिलीवरी बॉय

रौनक कसाया, मोहम्मद इस्माईल और शिवम नायक का कहना है कि कभी-कभी सामान खुद ही खराब निकलता है या ट्रैवल के दौरान टूट जाता है, लेकिन ग्राहक और कंपनी दोनों की नजर में गलती डिलीवरी बॉय की होती है। कोई पूछता तक नहीं कि रास्ते में क्या हुआ, कैसे हुआ। उसे सिर्फ जवाब देना होता है, सजा भुगतनी होती है। लोकेशन कोडिंग में समस्या होती है, अगर एक भी ऑर्डर डिलीवर ना हो तो पैसे काट लिए जाते हैं। इस्माईल का कहना है कि उसका कोड बैग भी जमा करवा लिया गया, जबकि गलती उसकी नहीं थी।

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समय से पहले गए तो समस्या

कंकरखेड़ा में डिलीवरी करने वालों का कहना है कि शिफ्ट का समय भले ही फ्लेक्सिबल कहा जाता हो, लेकिन हकीकत ये है, कि रात 10 बजे से पहले छोड़ना मतलब उस दिन की मेहनत को डस्टबिन में डाल देना। अगर जल्दी चले गए, तो जो इंसेंटिव बनता है, वो भी कट जाता है। थकावट, भूख, और दर्द के बावजूद काम करना ही पड़ता है। सबसे ज्यादा दिक्कत ऑर्डर कैंसिलेशन में होती है, जब खाने का ऑर्डर डिलीवर नहीं होता तो उसे कैंसल करने में मशक्कत करनी पड़ती है।

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आवाज उठाई तो आईडी बंद

डिलीवरी बॉय के दिल का दर्द सामने आता है, जब वो बताते हैं कि एक तो बेरोजगारी ऊपर से कई समस्याएं उनको घेर लेती हैं। अगर कोई आवाज उठाए तो उसके लिए कंपनी दरवाजे बंद कर लेती है। आजकल तो ऐसा होने लगा है कि बेरोजगारी के चलते डिलीवरी बॉय अधिक हो गए हैं और ऑर्डर कम। जिस कारण कमाई पहले से कम हो गई है। फिक्स सेलरी तो होती नहीं है, जितना सामान डिलीवर करेंगे उतना ही पैसा मिलता है। कई बार डिलीवरी बहुत दूर होती है, पेट्रोल भी अधिक लगता है, लेकिन मिलता तय किया गया दाम ही है।

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लड़ाई, डर और परेशानी

डिलीवरी बॉय बताते हैं कि कई बार उनको ऐसी जगह जाना पड़ता है जहां झगड़े का डर होता है, या फिर गलियों में फंस जाते हैं, जहां न पुलिस मदद करती है, न लोग। अगर कोई ग्राहक नाराज़ हो जाए, गाली दे या मारपीट कर दे, तो शिकायत करने पर भी कोई समाधान नहीं होता। कंपनी के अधिकारी भी कहते हैं कि आपकी ज़िम्मेदारी है।

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समय की पाबंदी और ज़िम्मेदारी

हर सामान समय पर पहुंचाना ज़रूरी अगर लेट हुए तो रेटिंग गिरती है, इनकम घटती है। सामान टूट गया, खराब हो गया तो उसकी भरपाई भी डिलीवरी बॉय से होती है। दस बजे से पहले नौकरी छोड़ना मुमकिन नहीं, क्योंकि अगर समय से पहले काम बंद किया तो जो थोड़ा बहुत कमा रहे होते हैं, वो भी चला जाता है। रास्ते में कोई बात हो जाए तो कोई देखने वाला नहीं है।

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गर्मी में बढ़ जाती है दिक्कतें

डिलीवरी करने वालों का कहना है कि गर्मी में खाने का सामान डिलीवर करना कठिन होता है, क्योंकि इस दौरान आईसक्रीम, मक्खन या फिर गलने वाली चीजें खराब हो जाती हैं। अगर सही लोकेशन ना मिले और देर तक भटकना पड़े तो इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ता है। जो नुकसान होता है उससे भरपाई की जाती है, जबकि गलती उसकी नहीं होती।

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भूख लगे या प्यास डिलीवरी समय पर हो

डिलीवरी बॉय की मानों तो उसे भूख लगे या प्यास, इसकी जिम्मेदारी कंपनी की नहीं होती। उसे तो बस डिलीवरी समय पर देनी होती है। इसके लिए डिलीवरी बॉय को कब और कहां खाना या पीना है, उसकी जिम्मेदारी है। यह सब उसको ही मेंटेन करना होता है। कई बार तो डिलीवरी बॉय को रास्ते में रुककर ही कहीं खाना पड़ता है या फिर वेयर हाउस के बाहर ही बैठकर खाना खाते हैं। दौड़ते भागते सब काम करने होते हैं।

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समाज की नजर में अदृश्य

देखा जाए तो डिलीवरी बॉय हर गली, हर कॉलोनी, हर अपार्टमेंट का जाना-पहचाना चेहरा होता है, फिर भी उसकी पहचान कोई नहीं करता। ना उसकी मेहनत की कद्र होती है, ना उसकी पीड़ा की कोई सुनवाई। अगर कहीं सामान देर से पहुंचे, तो शिकायत तुरंत दर्ज हो जाती है, लेकिन कभी कोई थैंक यू बोलने की ज़रूरत महसूस नहीं करता। इन तमाम कठिनाइयों के बावजूद, डिलीवरी बॉय हर दिन, हर सुबह तैयार होता है। अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए, अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए, बीमार मां-बाप की दवा लाने के लिए। उसकी मजबूरी ही उसकी ताकत बन जाती है।

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समस्याएं

- काम के हिसाब से सेलरी होती है बहुत कम, समय ज्यादा

- एक्सीडेंट या दुर्घटना हो जाए तो नहीं मिलती कोई सहायता

- सामान टूट जाए, खराब हो जाए तो जिम्मेदार डिलीवरी बॉय

- कस्टमर नहीं उठाते फोन, एड्रेस खोजने में होती है दिक्कत

- समय पर सामान ना पहुंचे तो गिर जाती है रेटिंग

- जाम में फंसने और दुर्घटना पर पुलिस नहीं करती सहायता

सुझाव

- डिलीवरी के लिए समय निश्चित किया जाए

- सभी डिलीवरी बॉय का होना चाहिए इंश्योरेंस

- एक्सीडेंट या कोई दुर्घटना होने पर मिले सहायता

- कस्टमर भी समझे जिम्मेदारी, तुरंत उठाएं फोन

- जाम में फंसने और दुर्घटना पर पुलिस करे सहायता

- थोड़ी बहुत देरी होने पर ना हों नाराज, दें सही रेटिंग

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जितने घंटे हम काम करते है, उस हिसाब से कमाई बहुत कम होती है, अगर कोई दिक्कत हो जाए तो कोई पूछने वाला नहीं। - विवेक कुमार

14 से 16 घंटे नौकरी करते हैं, इस हिसाब से सेलरी नहीं मिलती है। वहीं दूरी के हिसाब से पूरा किराया भी नहीं मिलता है। - सचिन कुमार

कई बार कस्टमर का एड्रेस ही नहीं मिलता है, जो एड्रेस दिया होता है उसका कुछ अता-पता नहीं होता, बोर्ड लगा नहीं होता है। - प्रवीण कुमार

हम लोग घंटों खड़े रहते हैं, कस्टमर फोन नहीं उठाता है, सही लोकेशन की तलाश में भटकते रहते हैं, फिर भी दोषी हम ही होते हैं। - दीपक कुमार

ज्यादा दूरी होने पर पूरा पैसा नहीं मिलता है, अगर शिकायत की जाए तो उल्टा नौकरी से निकालने की मिलती है धमकी । - विकास राठौर

रास्ते में कोई दुर्घटना हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता, कंपनी के अधिकारी फोन तक भी नहीं उठाते हैं। - विशाल कुमार

ऑर्डर कैंसिलेशन में समय खराब होता है, डिलीवरी लेकर जाते हैं तो कस्टमर नहीं मिलता, फिर ऑर्डर कैंसिल करना पड़ता है। - रौनक कसाया

एक ऑर्डर के लिए मेरा कोड बैग भी जमा कर लिया है, लोकेशन कोडिंग में दिक्कत होती है, इसके बदले में पैसे भी काट लिए गए। - मोहम्मद ईमाइल

सुबह छह बजे से रात के दस बजे तक काम करना ही है, बेरोजगारी के कारण काम करना मजबूरी भी है, दिन हो या रात काम करना है। - शिवम नायक

अगर अपनी समस्या के लिए आवाज उठाते हैं तो आईडी बंद कर दी जाती है, सेलरी या रोज की कमाई पूरी नहीं मिल पाती है। - शौर्य राजपूत

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