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बोले मेरठ : ट्रेन के आते ही टूट पड़ती है भीड़, जनरल बोगी में चढ़ना भी दूभर

Meerut News - मेरठ में जनरल कोच में सफर करने वाले यात्रियों की स्थिति बेहद खराब है। भीड़-भाड़, धक्कामुक्की और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण यात्रा करना कठिन हो जाता है। महिलाएं और बुजुर्ग खासकर परेशान होते हैं।...

Newswrap हिन्दुस्तान, मेरठFri, 7 March 2025 05:54 PM
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बोले मेरठ : ट्रेन के आते ही टूट पड़ती है भीड़, जनरल बोगी में चढ़ना भी दूभर

मेरठ। भारत की जीवन रेखा कही जाने वाली रेलगाड़ियां करोड़ों लोगों के सफर का एक अहम हिस्सा हैं। लेकिन इन रेलगाड़ियों के जनरल कोच में सफर करने वाले यात्रियों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। भीड़भाड़, धक्कामुक्की, बदहाल व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं की कमी, ये सब उस यात्री की नियति बन जाती है, जो मजबूरी में जनरल कोच में सफर करता है। यह हाल मेरठ के सिटी या कैंट स्टेशन से होकर जाने वाली ट्रेनों की ही नहीं, बल्कि सभी जगहों की है। जिसका दर्द यात्रियों की बातों में झलकता है। भारत की पहचान उसकी विविधता और विशाल जनसंख्या से होती है, जहां रेलगाड़ियां आम आदमी के सफर का सबसे सस्ता और महत्वपूर्ण साधन हैं। लेकिन जब बात जनरल कोच की आती है, तो यह सफर किसी संघर्ष से कम नहीं होता। जनरल डिब्बे में सफर करने वाले यात्रियों की परेशानियां आज भी अनसुनी हैं। ये वे लोग हैं, जो अपने परिवार की रोजी-रोटी के लिए दूर शहरों की ओर रुख करते हैं या मजबूरी में सफर करते हैं।

हिंदुस्तान बोले मेरठ की टीम ने सिटी रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के जनरल डिब्बों में सफर करने वाले यात्रियों की परेशानियों को जानने का प्रयास किया। जहां जनरल डब्बे में यात्रा करने वाले कुछ यात्रियों से संवाद किया। स्टेशन पर इंटर सिटी ट्रेन का इंतजार कर रहे पवन कुमार, सौरभ कुमार, वाजिद अली और रक्षित कुमार बताते हैं कि जनरल डिब्बे की हालत बहुत खराब रहती है। इसमें लोगों को खड़ा होने की जगह भी नहीं मिलती, लेकिन मजबूरी में यात्रा करनी पड़ती है। कई यात्री ऐसे होते हैं, जो आर्थिक मजबूरी के कारण जनरल टिकट ही खरीद सकते हैं। लेकिन टिकट मिल जाने के बावजूद उनकी परेशानी खत्म नहीं होती। प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने से पहले ही जनरल डिब्बे के बाहर भीड़ लग जाती है। जैसे ही ट्रेन आती है, लोग जान हथेली पर रखकर धक्कामुक्की करते हुए डिब्बे में घुसने की जद्दोजहद करने लगते हैं। कई बार तो महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे इस अफरा-तफरी में चोटिल भी हो जाते हैं।

भीड़भाड़ का नरक जैसा माहौल

मेरठ में लिसाड़ी रोड के रहने वाले शाबिर सैफी जम्मू जाने के लिए ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। वहीं पास में खड़े रजनीश कुमार को भी ट्रेन का इंतजार था, इनका कहना है कि जनरल डिब्बे में सीट मिलना किसी लॉटरी लगने से कम नहीं होता। अधिकतर यात्रियों को खड़े-खड़े ही सफर करना पड़ता है। गर्मी के दिनों में यह सफर और भी मुश्किल हो जाता है। ट्रेन में लगे पंखों की हवा भीड़ के कारण सभी यात्रियों तक नहीं पहुंच पाती, खिड़कियों से आने वाली हवा भी भीड़ के कारण महसूस नहीं होती। इंसानी सांसों की गर्मी और पसीने की गंध से डिब्बे का माहौल इतना भयंकर होता है कि सोच भी नहीं सकते।

महिलाओं और बुजुर्गों की दयनीय स्थिति

सरधना के रहने वाले मोनू कुमार, मुनेश देवी और हरियाणा के रजत शर्मा का कहना है कि जनरल कोच में महिलाओं और बुजुर्गों की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय होती है। सीटें न मिलने पर बुजुर्ग घंटों खड़े रहने को मजबूर होते हैं। महिलाएं भी सीट ना मिलने के कारण खड़े होकर यात्रा करने को मजबूर होती हैं। कई बार तो जनरल डिब्बे में महिलाओं से खराब व्यवहार और छेड़छाड़ जैसी घटना भी हो जाती है। जनरल डिब्बे में सफर करना ऐसा है मानों युद्ध में जा रहे हों। इन डिब्बों में सफर करने वाला ही दिक्कतों को महसूस कर सकता है।

सफर से पहले ही संघर्ष की शुरुआत

हिंदुस्तान की टीम रेलवे स्टेशन पर खड़े यात्रियों की दुविधा का जायजा ले रही थी, तभी स्टेशन पर इंटरसिटी ट्रेन आई। मानों लोगों की स्थिरता में एकदम गति आ गई। खचाखच भरे जनरल डिब्बे में लोग घुसने की जद्दोजहद में लग गए। एक दूसरे को धक्कामुक्की करते हुए कुछ यात्री डिब्बे में चले गए, लेकिन कुछ महिलाएं अंदर प्रवेश नहीं कर पाईं। ट्रेन चलने लगी और उसमें चढ़ने की आपाधापी में एक बुजुर्ग महिला गिरते-गिरते बची, उसे लोगों ने समझाया कि पीछे से दूसरी ट्रेन आ रही है, उसमें बैठ जाना। यात्रियों का कहना था कि सभी को अपने घर जाना है, समय से पहुंचने के लिए ऐसा रोज की कहानी है।

टिकट के बावजूद समस्या कम नहीं

जनरल डिब्बे की सबसे बड़ी समस्या यह है कि पहले यात्रियों को टिकट खरीदने के लिए जूझना पड़ता है, फिर सफर के लिए डिब्बे में प्रवेश की जद्दोजहद। इसके बाद भी परेशानी कम नहीं होती। यात्री को अंदर प्रवेश मिल जाए तो सीट के लिए जूझना पड़ता है। भले ही उसके पास टिकट क्यों ना हो। यहां जिसके पास सीट है वह खुद को राजा समझता है। लोगों का कहना है कि जनरल डिब्बे में सफर करने वाला आम आदमी समस्याओं को बखूबी महसूस करता है। यात्रियों का कहना है कि रिजर्वेशन कोच में सफर करने वालों के लिए तमाम सुविधाएं हैं, लेकिन जनरल डिब्बे के यात्रियों को बुनियादी सुविधाओं तक से वंचित रखा जाता है।

जनरल कोच की दयनीय स्थिति

भारतीय रेलवे में जनरल कोच हमेशा से भीड़भाड़ और अव्यवस्था का शिकार रहा है। इस डिब्बे में सफर करने वाले अधिकतर यात्री मजदूर, किसान, छात्र और गरीब तबके के लोग होते हैं। टिकट खरीदने के बावजूद इन्हें बैठने की जगह नहीं मिलती। एक-एक कोच में सैकड़ों लोग भरे रहते हैं, जहां सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है।

शौचालय और गंदगी की समस्या

रेवले स्टेशन पर अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए खड़े यात्रियों का कहना है कि जनरल डिब्बे में शौचालय की हालत बहुत खराब होती है। भीड़ से निकलकर वहां तक कोई पहुंच जाए तो गंदगी ही नजर आती है। बदबू से भरा शौचालय, पानी की समस्या और गंदगी जनरल डिब्बे में आम होती है। लोगों को कहना है कि डिब्बों में जानवरों की तरह सफर करने का मलाल होता है, लेकिन यह लोगों की मजबूरी भी है। क्योंकि उनको अपनी मंजिल तक पहुंचना होता है।

बढ़ाए जाएं कोच

लोगों का कहना है कि सरकार और रेलवे को चाहिए कि जनरल डिब्बों की संख्या बढ़ाई जाए और हर ट्रेन में पर्याप्त डिब्बे लगाए जाएं। महिलाओं, बुजुर्गों और विकलांग यात्रियों के लिए अलग कोच की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा, जनरल डिब्बे की साफ-सफाई और सुरक्षा व्यवस्था पर भी विशेष ध्यान दिया जाए।

ये भी हैं दिक्कतें

सिटी रेलवे स्टेशन और कैंट स्टेशन तक पहुंचने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शहर से स्टेशन तक जाने वाले रास्तों की बात करें तो अधिकतर ई-रिक्शा या वाहन जली कोठी के सामने से कैंट एरिया से होते हुए सिटी स्टेशन जाते हैं। वहीं कैंट स्टेशन के लिए बेगमपुल से आबू नाले के किनारे खड़े टेंपू जाते हैं। रात में पैसेंजर को अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कहीं सड़कें टूटी हैं तो कहीं गहरे गड्ढे यात्रियों के लिए बाधा बनते हैं। वहीं सिटी स्टेशन पर जाने वाले रास्ते पर कूड़ा और गंदगी का अंबार नजर आता है।

गर्व से कह सकें हम रेल यात्री हैं

लोगों का कहना है कि जनरल कोच में सफर करने वाला हर व्यक्ति देश की तरक्की में योगदान देता है। उसकी परेशानियों को नजरअंदाज ना किया जाए। जनरल डिब्बे में यात्रा करने वालों की आवाज सुनी जाए। रेलवे को चाहिए कि जनरल डिब्बों में यात्रा करने वाले यात्रियों के सम्मानजनक सफर का हक उन्हें लौटाए, ताकि कोई भी यात्री सफर के नाम से डरने के बजाय कह सके कि हम भारतीय रेल के यात्री हैं।

समस्या

- जनरल कोच में बैठने की सीट मिलना मुश्किल होता है

- ट्रेन के कोच में जनरल डिब्बों की संख्या कम होती है

- महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं

- जनरल डिब्बों में जगह-जगह गंदगी फैली रहती है

- इन डिब्बों में शौचालय की स्थिति बेहद खराब होती है

सुझाव

- जनरल डिब्बों की संख्या बढ़ाई जाए

- महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अलग कोच हो

- ऑनलाइन जनरल टिकट की भी बुकिंग हो

- हर जनरल डिब्बे में गार्ड और सफाई कर्मचारी हों

- इन डिब्बों में शौचालय की स्थिति सुधारी जाए

जनरल कोच में सफर करना आसान नहीं है। भीड़ ज्यादा होती है और लोगों को बैठने के लिए सीट नहीं मिलती। - पवन कुमार, मवाना

सभी ट्रेनों में जनरल कोच बढ़ाए जाएं, ताकि सफर आसान हो जाए। नहीं तो लोग खड़े होकर ही यात्रा करते रहेंगे। - सौरभ कुमार, मुजफ्फरनगर

जनरल डिब्बे में सीट मिलना उतना ही कठिन होता है जितना जंग में विजय पाना। लोग खड़े होकर यात्रा करते हैं। - वाजिद अली, मुजफ्फरनगर

गर्मी के दौरान तो लोग पसीने में नहा जाते हैं। भीड़ में पंखे की भी हवा नहीं लगती। बस घर पहुंचने की जल्दी रहती है। - रक्षित कुमार, सहारनपुर

जनरल डिब्बों में खड़े होने की जगह भी नहीं मिलती। लोग इन डिब्बों में मजबूरी में ही यात्रा करते हैं। - शाबिर सैफी, मेरठ लिसाड़ी रोड

पहले तो डिब्बों में चढ़ने के लिए लोगों को जद्दोजहद करनी पड़ती है, अंदर घुसने के बाद सीटों के लिए जूझना पड़ता है। - रजनीश कुमार, सहारनपुर

कई बार तो इन डिब्बों में चढ़ने के लिए इतनी मारामारी होती है कि लोग गिर जाते हैं, जिन्हें चोट भी लग जाती है। - मोनू कुमार, सरधना

महिलाओं और बुजुर्गों को समस्या का सामना करना पड़ता है, सीट ही नहीं मिलती, ज्यादातर को खड़ा होकर जाना पड़ता है। - मुनेश देवी, सरधना

सभी ट्रेनों में जनरल कोच बढ़ाए जाएं, ताकि लोगों को यात्रा करने में दिक्कत ना हो। टिकट तो जनरल वाले भी लेते हैं। - रजत शर्मा, हरियाणा

जनरल डिब्बों में साफ-सफाई की खास व्यवस्था नहीं होती। उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, कोच बढ़ाए जाने चाहिए। - नजर मोहम्मद, बरनावा

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