बोले मेरठ... मेडिकल कॉलेज को चाहिए विकास की बूस्टर डोज
Meerut News - लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में से एक है। यहां सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक का निर्माण किया गया है, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी के कारण यह सुविधा...
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में से एक लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज हजारों मरीजों को रोजाना स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है। लगातार बढ़ती आबादी और चिकित्सा जरूरतों को देखते हुए यहां एम्स और पीजीआई की तर्ज पर करोड़ों की लागत से सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक बनाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य था कि मरीजों को अत्याधुनिक सुविधाएं मिल सकें। हालांकि, विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी के चलते यह सुविधा पूरी तरह कारगर नहीं हो पा रही है। कई महत्वपूर्ण विभाग या तो खुले ही नहीं या फिर डॉक्टरों के अभाव में निष्क्रिय हैं, जिससे हर दिन सैकड़ों मरीज निराश होकर लौटने को मजबूर हैं। ऐसे में मेडिकल कॉलेज को और बेहतर डॉक्टर और सुविधाएं मिल जाएं तो बात बन जाए।
लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज, क्षेत्र के हजारों लोगों को विभिन्न चिकित्सा सेवाएं प्रदान करता है। यहां रोज हजारों मरीजों का इलाज होता है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, मेडिकल में मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। ऐसे में मेडिकल कॉलेज को और भी बेहतरीन सुविधाओं की दरकार है। मेडिकल में पीजीआई और एम्स की तरह इलाज मिले, इसके लिए 150 करोड़ रुपये से सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक का निर्माण किया गया। कहा गया कि इसमें जटिल बीमारियों की एम्स और पीजीआई की तर्ज पर इलाज की सुविधा मिलेगी। इसमें न्यूरोसर्जन, न्यूरोफिजिशियन, कॉर्डियोलॉजी, कार्डियक सर्जन और नेफ्रो और बर्न स्पेशलिस्ट समेत कई विभागों की ओपीडी शुरू की गई। लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी से यहां विशेष इलाज का सपना साकार नहीं हो पा रहा है। हाल यह है कि यूरोलॉजी और गैस्ट्रोलॉजी का तो आज तक विभाग ही नहीं खुल सका, जबकि कार्डियोथेरेसिक विभाग पूरी तरह खाली पड़ा है। बाकी विभाग भी संविदा चिकित्सकों के भरोसे संचालित हो रहे हैं। विशेष इलाज की उम्मीद में हर दिन यहां आने वाले सैकड़ों मरीज डॉक्टरों की कमी के कारण निराश होकर लौट जाते हैं। मेडिकल अस्पताल में दशकों बाद भी हड्डी, आंख, नाक-कान के मरीजों का ही इलाज होता है।
यह है हाल
प्लास्टिक सर्जरी में बस तीन संविदा चिकित्सक हैं। कॉर्डियोलॉजी में कोई स्थायी चिकित्सक नहीं है। यहां तीन संविदा चिकित्सक हैं। न्यूरोलॉजी में भी कोई स्थायी चिकित्सक नहीं है। यहां दो पद खाली हैं, दो पर संविदा पर चिकित्सक तैनात हैं। न्यूरोसर्जरी में विभागाध्यक्ष डॉ. अखिल प्रकाश स्थायी हैं, बाकी तीन चिकित्सक संविदा पर हैं। पीडियाट्रिक में विभागाध्यक्ष डॉ. गौरव गुप्ता नियमित और अन्य संविदा चिकित्सक हैं। बाकी दो पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। रेडियोथेरेपी विभाग में भी कोई स्थायी चिकित्सक नहीं है, यह भी संविदा चिकित्सकों के भरोसे है। टीबी एंड चेस्ट विभाग को भी विभागाध्यक्ष डॉ. संतोष मित्तल अकेले चला रहे हैं। डर्मेटोलॉजी विभाग में मात्र तीन संविदा चिकित्सक हैं। रेडियोलॉजी में छह के सापेक्ष मात्र दो चिकित्सकों की तैनाती है।
मेडिकल कॉलेज का हाल
पद स्वीकृत तैनाती रिक्त
नेफ्रोलॉजी 04 01 03
कॉर्डियोलॉजी 04 03 01
कार्डियोथेरेसिक 04 00 04
न्यूरोलॉजी 04 02 02
न्यूरोसर्जरी 04 04 00
पीडियाट्रिक 04 02 02
प्लास्टिक सर्जरी 04 03 01
इंडोकायनोलॉजी 04 01 03
रेडियोथेरेपी 04 01 03
रेडियोलॉजी 04 02 02
टीबी एंड चेस्ट 04 01 03
डर्मटालॉजिस्ट 04 03 01
ऑर्थो 04 04 00
समस्याओं से जूझते हैं मरीज
मेडिकल कॉलेज को बेहतरीन बनाने के प्रयासों के बावजूद मरीजों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दिसंबर 2024 में एक मरीज को स्ट्रेचर नहीं मिलने के कारण उसकी हालत बिगड़ गई थी और नर्स के द्वारा मोबाइल की रोशनी में उसकी जांच की गई थी। वहीं नवंबर 2020 में ऑक्सीजन की कमी के कारण एक मरीज की एंबुलेंस में ही मौत हो गई थी। जिसको लेकर डॉक्टरों ने मास्क, ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटिलेटर की कमी होना बताया था।
इनका कहना है।
विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के विषय पर कई बार शासन को लिखा जा चुका है। उपलब्ध चिकित्सकों में बेहतर इलाज की सुविधा दी जा रही है। मेडिकल कॉलेज को स्वशासी संस्था बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। स्वशासी संस्था बनने से चिकित्सकों की कमी के साथ ही बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। -डॉ. आरसी गुप्ता, प्राचार्य
मेडिकल कॉलेज के पास करोड़ों रुपये से बना सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक है। स्वशासी संस्थान का दर्जा मिल जाए तो मरीजों के हित में इसका और बेहतर उपयोग हो सकता है। साथ ही रिसर्च और एकेडमिक कार्यों में भी तेजी आएगी। इससे मरीजों और नए डॉक्टरों दोनों को फायदा होगा। -डॉ. अखिल प्रकाश, विभागाध्यक्ष न्यूरोसर्जरी
नेफ्रोलॉजी विभाग में दो नई मशीनें स्थापित की गई हैं, जो विशेष रूप से हेपेटाइटिस के मरीजों के लिए हैं। इसके अलावा भर्ती मरीजों को वेंटिलेटर और डायलिसिस की सुविधा भी मिलती है। लेकिन मरीजों की संख्या को देखते हुए यह सुविधाएं सीमित हैं। स्वशासी संस्थान बनने से इन सुविधाओं का और विस्तार हो सकेगा। -डॉ. निधि गुप्ता, विभागाध्यक्ष गुर्दा रोग
एलएलआरएम में मेरठ के अलावा आसपास के जिलों और उत्तराखंड के लगभग दस लाख से ज्यादा मरीजों को हर साल इलाज मिलता है। हजारों की संख्या में विभिन्न बीमारियों के ऑपरेशन होते हैं। कॉलेज ने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार किया। लेकिन मरीजों की संख्या को देखते हुए अभी और सुविधाओं की आवश्यकता है। -डॉ. अरविंद कुमार, मीडिया प्रभारी
मरीजों के लिए नई व्यवस्थाएं की जा रही हैं। मशीनरी से लेकर नई इमारत तक बनाई जा रही है। स्वशासी संस्थान न होने के कारण कॉलेज को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई बीमारियों में आवश्यक सुविधाओं की कमी के कारण मरीजों को दिल्ली या अन्य बड़े शहरों के अस्पतालों में रेफर करना पड़ता है। स्वशासी संस्थान बनने से यह समस्या समाप्त हो जाएगी। -डॉ. धीरज बालियान, सीएमएस
लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज अपनी सीमाओं के बावजूद निरंतर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और विस्तार के लिए प्रयासरत है। कुछ विशेष चिकित्सा सुविधाओं की दरकार है, जिसके लिए कॉलेज प्रशासन की ओर से लगातार शासन से मांग की जा रही है। उपलब्ध सुविधाओं में प्रभावी ढंग से मरीजों की सेवा की जा रही है। -डॉ. ज्ञानेश्वर टांक, विभागाध्यक्ष आर्थो
बयां किया दर्द
मैं यहां बागपत से आया हूं और कार्डियक के डॉक्टर को दिखाना है। मरीजों की भीड़ बहुत रहती है, हालांकि पहले से बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन अभी और सुधार की जरूरत है। - यशदेव, बागपत रोड
मवीखुर्द से आया हूं, मेडिकल कॉलेज में ही मेरे हार्ट में स्टंट डले हैं। जो बाहर ज्यादा पैसों में डलते यहां कम पैसों में डल गए। अगर कुछ और सुविधाएं मिलें तो कोई बाहर नहीं जाएगा। - राजेंद्र सिंह, मवीखुर्द
मैं नोएडा से अपने पिता के साथ आया हूं, उनके हार्ट में स्टंट डले हैं। यहां डॉक्टर अच्छे हैं, दूसरे जिलों से आने वाले मरीजों की संख्या भी काफी बढ़ गई है। थोड़ा और बेहतर हो जाए तो बड़े अस्पतालों को टक्कर दे सकता है। - राजकुमार, नोएडा
मैं जाकिर कॉलोनी में रहता हूं और यहां न्यूरो के डॉक्टर को दिखाने आया हुआ हूं। अब पहले से बेहतर व्यवस्था है, लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या के अनुसार और सुविधाओं की जरूरत है। - मोहम्मद आजाद, जाकिर कॉलोनी
मेरे बेटे के सिर में चोट लग गई थी, उसे दिखाने के लिए आया हूं। भीड़ के कारण थोड़ी समस्या होती है, लेकिन अब पहले से बेहतर सुविधा मिल रही है, अच्छा इलाज भी मिल रहा है। - नईम, औरंगाबाद
गाजियाबाद से अपनी पत्नी को लेकर आया हूं, उसकी दवाई लेनी है। भीड़ बहुत रहती है, लेकिन फिलहाल ठीक इलाज मिलता है। मरीजों के लिए थोड़ी बहुत और सुविधा हो जाएं तो बहुत अच्छा हो। - दीपचंद, गाजियाबाद
समस्या
-मरीजों को पर्याप्त इलाज नहीं मिल पाता।
-चिकित्सकों की नियुक्ति में लंबा समय लगता है।
-शोध और अकादमिक कार्य नहीं हो पाते
-जरूरी कार्यों के लिए समय से बजट नहीं मिल पाता।
-तबादले के डर से चिकित्सक आना नहीं चाहते।
समाधान
-मरीजों को एम्स और पीजीआई जैसा इलाज मिल सकेगा।
-संस्थान अपने स्तर से डॉक्टरों की नियुक्ति कर सकेगा।
-तबादला नहीं होगा तो चिकित्सक भी आने से हिचकेंगे नहीं।
-शोध और शैक्षणिक कार्यों को बढ़ावा मिलेगा।
-जरूरी कार्यों के लिए बजट का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
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