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बोले मेरठ : कैसे चले गाड़ी, काम के घंटे तय न वेतन की गारंटी

Meerut News - यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले ड्राइवर और परिचालकों की स्थिति बहुत कठिन है। संविदा कर्मियों के पास स्थायी रोजगार की कोई गारंटी नहीं है। उनकी हाजिरी का कोई रजिस्टर नहीं होता और अगर बस नहीं...

Newswrap हिन्दुस्तान, मेरठMon, 5 May 2025 11:30 AM
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बोले मेरठ : कैसे चले गाड़ी, काम के घंटे तय न वेतन की गारंटी

यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले ड्राइवर और परिचालकों की खुद की मंजिल आसान नहीं होती। यात्रियों को सलामती के साथ उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाले ड्राइवर और कंडक्टर खुद समस्याओं से जूझते नजर आते हैं। संविदा कर्मियों की बात करें तो उनकी हाजिरी का कोई रजिस्टर नहीं है, अगर बस नहीं चली तो पैसा भी नहीं मिलता। वहीं आउटसोर्स वालों की कहानी तो और भी दयनीय है, उनको मिलने वाली सेलरी में वे अपना खर्चा भी नहीं चला पा रहे हैं। व्यवस्था में सुधार की आस लिए सड़कों पर दौड़ते ये लोग खुद के लिए बेहतर व्यवस्था चाहते हैं।

हर सुबह जब हम बस में सवार होकर अपने गंतव्य की ओर निकलते हैं, शायद ही हम उन चेहरों को गौर से देख पाते हैं, जो हमारी यात्रा को सुरक्षित और समय पर पूरा कराने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए होते हैं। वे ड्राइवर और कंडक्टर, जो न सिर्फ हमें हमारी मंजिल तक पहुंचाते हैं, बल्कि हर रोज अपनी जान हथेली पर लेकर सड़कों पर उतरते हैं। लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि इनकी खुद की मंजिल कितनी कठिन और धुंधली है? उत्तर प्रदेश परिवहन निगम मेरठ डिपो में करीब 1200 संविदा चालक और परिचालक कार्यरत हैं। इनमें से कई कर्मचारी 2001 से संविदा पर काम कर रहे हैं, लेकिन आज तक नियमित नहीं किए गए। उनके लिए न तो स्थायी रोजगार की गारंटी है और न ही कोई निश्चित भविष्य। वहीं 400 के लगभग आउटसोर्स कर्मचारी हैं। ये वे लोग हैं जो हमारे सफर को आसान बनाते हैं, लेकिन खुद एक अनिश्चित, असुरक्षित और संघर्षपूर्ण जीवन जी रहे हैं। रोडवेज कर्मी राहुल सिंह, रईसुद्दीन, दीपक कुमार और वीरेंद्र शर्मा का कहना है कि संविदा कर्मी ड्राइवर और कंडक्टर दिन-रात गाड़ी चलाते हैं और उनके लिए वेतन के नाम कोई खास व्यवस्था नहीं है। संविदा कर्मियों की बात करें तो उनकी हाजिरी का कोई रजिस्टर नहीं है, जिसमें वो साइन करते हों। उनकी हाजिरी तभी मानी जाती है जब वे बस में सवार हों और सवारी ले जाएं, भले ही वह सुबह आकर रोडवेज में बैठ जाए, उससे कोई लेना देना नहीं है। संविदा कर्मचारी और आउटसोर्स कर्मचारी दोनों ही मिलकर खुद के लिए नियमित व्यवस्था चाहते हैं, ताकि उनके परिवार की रोजी रोटी चलती रहे। किलोमीटर तय करता है वेतन अनिल कुमार, योगेंद्र कुमार, यशपाल सिंह और दिनेश कुमार का कहना है कि संविदाकर्मी को 2.08 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से मिलता है। वहीं आउटसोर्स कर्मचारी को 1.89 रुपये प्रति किलोमीटर दिया जाता है। सभी आउटसोर्स कर्मचारी ठेकेदारों द्वारा लगाए जाते हैं। आउटसोर्स कर्मचारी को सेलरी भी ठेकेदार द्वारा दी जाती है। सबसे बड़ी समस्या इनके लिए यह है कि अगर बस चलती है तो पैसे बनते हैं, अगर नहीं चलेगी तो सेलरी भी नहीं बनती। वहीं संविदा कर्मी और आउटसोर्स वालों को 2-3 महीने में पैसा दिया जाता है। गाड़ी नहीं चली तो पैसे भी नहीं प्रमोद कुमार, राघवेंद्र, आशुतोष कुमार और संदीप संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उनकी हाजिरी का कोई निश्चित रजिस्टर या प्रणाली नहीं है। वे रोज़ाना सुबह रिपोर्ट करते हैं, लेकिन जब तक बस नहीं चलती, उनकी हाजिरी दर्ज नहीं मानी जाती। और अगर बस नहीं चली, तो उस दिन की तनख्वाह भी नहीं मिलती। उनका वेतन इस बात पर निर्भर करता है कि उन्होंने कितने किलोमीटर बस चलाई। यानी अगर किसी कारणवश गाड़ी खड़ी रह गई, तो उस दिन उनके घर का चूल्हा भी ठंडा रह सकता है। रोजाना 1060 किलोमीटर तक चलवाई जा रही है बस मेरठ रोडवेज डिपो, यहां से रोजाना दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, देहरादून, सहारनपुर, मुजफ्फरगनर सहित कई और शहरों के लिए बसों का संचालन होता है। रोडवेज कर्मचारियों का कहना है कि उनसे रोजाना 1060 किमी गाड़ी चलवाई जा रही है। इस हिसाब से एक चालक लगातार दो दिन और दो रात गाड़ी चला रहा है। इससे ना सिर्फ यात्रियों की सुरक्षा खतरे में हैं बल्कि सड़क पर चलने वाले लोगों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। यहां कम पहुंच रहे आवेदक रोडवेजकर्मी अतुल कुमार, राजकुमार, पारस कुमार और धर्मपाल सिंह का कहना है कि हालात इतने खराब हो चुके हैं कि प्रत्येक मंगलवार को संविदा वाले ड्राइवरों की भर्ती डिपो से ही होती है, लेकिन आजकल कोई भर्ती के लिए नहीं आ रहा है। बहुत से लोग बस चालन के बदले नियमों के कारण नौकरी भी छोड़ रहे हैं। वहीं आउट सोर्स वाले कर्मचारियों की बात करें तो उनको ठेकेदार द्वारा परमानेंट का झांसा दिया जाता है। नौकरी करते हैं तो हालात ये होते हैं कि उनकी सेलरी में खुद का खर्चा भी नहीं चलता। जो लोग पहले से इस नौकरी में हैं, वे भी कठोर नियमों और असुरक्षा के चलते इसे छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। 80 फीसदी कर्मचारी संविदा और आउटसोर्स पर रोडवेज कर्मचारियों का कहना है अब तो टेक्निकल स्टाफ भी आउटसोर्स पर भर्ती किए जा रहे हैं। जिनको सेलरी के नाम पर 6-7 हजार रुपये ही मिलते हैं। यह न्यूनतम सेलरी से भी कम है। देखा जाए तो पूरे विभाग में अब केवल बीस फीसदी ही परमानेंट कर्मचारी रह गए हैं। अस्सी फीसदी कर्मचारी संविदा और आउट सोर्स पर रखे जा रहे हैं। संविदा कर्मियों और परिवार के लोगों को पास तो मिल जाता है, साथ ही पांच लाख रुपये का बीमा मिल जाता है। लेकिन आउटसोर्स वालों को यह भी नहीं मिलता। आउटसोर्सिंग की कड़वी सच्चाई रोडवेज कर्मियों का कहना है कि संविदा कर्मियों से भी बदतर स्थिति में हैं आउटसोर्स कर्मचारी। असलियत यह है कि उन्हें इतनी कम तनख्वाह मिलती है कि निजी खर्चे भी पूरे नहीं कर पाते। वे न तो अधिकार मांग सकते हैं और न ही आवाज उठा सकते हैं। ये ड्राइवर और परिचालक दिन-रात मेहनत करते हैं, तेज गर्मी हो या घना कोहरा, उनकी बसें चलती रहती हैं। वे हजारों लोगों को उनके काम, घर और जरूरी स्थानों तक पहुंचाते हैं, लेकिन जब बात उनके अपने जीवन की आती है तो कोई सुनवाई नहीं होती। सुझाव n तकनीकी व संचालन से संबंधित रिक्त पद भरे जाएं n आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को भी मिले बीमा का लाभ n संयुक्त चेकिंग के नाम पर अवैध वसूली नहीं होनी चाहिए n परिवहन निगम में संविदा परिचालकों की भर्ती की जाए n कर्मचारियों के वेतन में विसंगतियों को दूर किया जाए शिकायतें n तकनीकी व संचालन से संबंधित बहुत सारे पद रिक्त हैं n आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को नहीं मिलता सुरक्षा बीमा n संयुक्त चेकिंग के नाम पर अवैध वसूली होती है n परिवहन निगम में संविदा परिचालकों की भारी कमी है n संचालन व तकनीकी कर्मचारियों के वेतन में विसंगतियां बयां किया दर्द रोडवेज डिपो में चालक और परिचालक में 20 प्रतिशत ही सरकारी हैं बाकि सब संविदा पर हैं या आउटसोर्सिंग से रखे गए हैं। -राहुल सिंह, रोडवेज कर्मचारी चालक से लगातार दो दिन और दो रात गाड़ी चलवाई जा रही है, साथ में कोई दूसरा ड्राइवर भी नहीं भेजा जा रहा है। -रईसुद्दीन, रोडवेज कर्मचारी रात दिन ड्राइवर और परिचालकों ने कुंभ में ड्यूटी की, सवारियों को लाना और ले जाना किया, इसके बाद भी सेलरी बहुत कम मिली। -दीपक कुमार हर रास्ते पर डग्गामार बसें खड़ी रहती हैं, जिनमें यात्री रोडवेज समझकर सवार हो जाते हैं, इससे विभाग को राजस्व की हानि हो रही है। -वीरेंद्र शर्मा संविदा और आउटसोर्स कर्मचारी ड्यूटी पर नहीं आता है तो अनुपस्थिति दर्ज हो जाती है, और उस दिन का पैसा भी नहीं मिलता है। -अनिल कुमार न्यूनतम मजदूरी से भी कम पैसा मिलता, रोडवेज में अस्सी फीसदी कर्मचारी संविदा और आउटसोर्स पर हैं। -योगेंद्र कुमार 48 घंटे लगातार बस चलाना भारी पड़ रहा है, आदेश हैं कि एक हजार किलोमीटर से ऊपर ही चलानी है, कम रही तो पैसे कट जाते हैं। -यशपाल सिंह संविदा कर्मियों को दुर्घटना बीमा का लाभ मिलता है, परिवार को निशुल्क सफर का पास भी मिलता है, आउटसोर्स के लिए यह नहीं है। -दिनेश कुमार गाड़ी कभी कभार कम चल जाती है तो दिक्कत हो जाती है, ईंधन ज्यादा खर्च हो जाता है तो भी हिसाब देना पड़ता है, सबका हिसाब तय है। -अतुल कुमार डिपो द्वारा निर्धारित दूरी को पूरा करने में तय मात्रा से अधिक फ्यूल लग जाता है तो उसकी जिम्मेदारी ड्राइवर की होती है, पैसे कटते हैं। -राजकुमार टाइम टेबल को लेकर समस्या रहती है, थोड़ी सी देर होने पर दूसरी बस का नंबर लग जाता है, फिर अपने नंबर के लिए जद्दोजहद होती है। -पारस कुमार आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का हाल बुरा है ना तो उन्हें दुर्घटना बीमा का लाभ मिलता है और ना ही परिवार को निशुल्क सफर के लिए पास। -धर्मपाल सिंह

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