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साहब! उत्पाती बंदर सुरक्षा के लिए बने खतरा, छुटकारा दिलाइए

Mau News - मऊ में लोग बंदरों के आतंक से परेशान हैं। बंदर घरों में घुसकर सामान को नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा बन गए हैं। कई परिवार अपने घरों में सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहे हैं। नगर...

Newswrap हिन्दुस्तान, मऊSat, 1 Feb 2025 12:37 AM
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साहब! उत्पाती बंदर सुरक्षा के लिए बने खतरा, छुटकारा दिलाइए

मऊ। शहर समेत ग्रामीण क्षेत्र के कई इलाकों में लोग बंदरों के आतंक से परेशान हैं। बंदर न केवल घरों में घुसकर सामान को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि लोगों की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन गए हैं। बंदरों की आक्रामकता लोगों में डर और चिंता पैदा कर रही है। मौका पाते ही बंदर घर में घुसकर खाने-पीने की चीजें उठाकर ले जाते हैं और महंगे सामान को क्षतिग्रस्त कर देते हैं। कई परिवार अपने घरों में सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहे हैं और लगातार चिंता में रहते हैं। अब वे इस समस्या से निजात चाहते हैं। जनपद में मऊ नगर पालिका, दोहरीघाट, मधुबन, अमिला, घोसी, मुहम्मदाबाद गोहना, चिरैयाकोट सहित अन्य नगर पंचायतों के मोहल्लों में बंदरों को लेकर समस्या गंभीर होती जा रही है। वहीं, शहर में बंदरों का उत्पात मानों आम बात हो गई है। लोग अपने घरों की खिड़कियों और दरवाजों को मजबूती से बंद रखने को विवश हैं, ताकि इन बंदरों का प्रवेश रोका जा सके। वन विभाग, नगर पंचायत, नगर पालिका इस समस्या के समाधान को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रही है। बंदरों को पकड़ने और उन्हें जंगल में छोड़ने के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। देखा जाए तो शहरीकरण और वनों की कटाई के चलते बंदरों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है, जिससे वे बस्तियों में आने को मजबूर हो रहे हैं। जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। मऊ शहर में निजामुद्दीनपुरा, सहादतपुरा, मुंशीपुरा और न जाने कितनी कॉलोनियों में बंदरों का जमावड़ा है। आए दिन बच्चे और महिलाओं को बंदर अपना शिकार बनाते हैं। निजामुद्दीनपुरा मोहल्ले में लोगों का कहना है कि बंदरों ने जीना मुश्किल कर दिया है। लोगों ने अपने घरों की सुरक्षा के लिए जाली, तार और अन्य व्यवस्थाएं की हुईं हैं। कुछ परिवार तो मजबूरन अपने घरों में ही कैद जैसी स्थिति में रह रहे हैं, क्योंकि बंदरों के अचानक हमले का डर उन्हें बाहर निकलने ही नहीं देता है। नगर पालिका में भी कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन वे वन विभाग पर टाल देते हैं। दोनों विभाग एक-दूसरे पर टालते रहते हैं, लेकिन समाधान कोई नहीं करता।

बंदरों के नुकसान करने से बढ़ जाते हैं खर्चे

मऊ। उत्पाती बंदरों के आये दिन सामान आदि को नुकसान पहुंचाने के कारण लोगों के खर्चे भी बढ़ जाते हैं। कई परिवारों को अपने घरों में ताले लगाने और खिड़कियों पर जाली लगाने के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। अगर जरा सा भी घर खुला रह गया तो समझो बंदर अंदर घुस जाते हैं। फिर तो उनका तांडव शुरू हो जाता है। घरों पर लोहे की जाली और दीवारों पर कांच तक लगवाना पड़ रहा है।

खाने पीने के सामान भरी प्लास्टिक पर रहती है निगाह

मऊ। बंदरों के आतंक से परेशान लोगों का कहना है कि यदि किसी दुकान से प्लास्टिक में सामान लेकर आते हैं, तो उसे भी नहीं छोड़ते हैं। घात लगाए बंद पीछे से प्लास्टिक भरे सामान को छिनकर भाग जाते हैं और उनका नुकसान कर देते हैं। वहीं डंडा, गुर्देल और नकली बंदूक से उन्हें डराने की कोशिश की जाती है तो बंदर डरने के बजाय हमला कर देते हैं। दिन में तो छोड़ दीजिए, रात में भी रास्तों पर बंदर घात लगाए बैठे रहते हैं। कोई खाने-पीने की चीज लेकर जाता है तो उसके पीछे पड़ जाते हैं।

घरों के किचन को बनाते हैं निशाना

मऊ। सुबह होने के साथ ही बंदरों की धमाचौकड़ी शुरू हो जाती है। मौका देखकर बंदर घरों में खाने-पीने के सामान के लिए किचन को ही निशाना बनाते हैं। मौके देखते ही वे किचन में घुसकर खाने पीने के सामान को तितर-बितर कर देते हैं। अगर उनको भगाने की कोशिश करने पर वे काटने को आते हैं। ऐसी स्थिति में मोहल्ले के लोग ना घर के बाहर बैठ पाते हैं और ना ही अपनी छतों पर धूप सेंक पाते हैं। कपड़े छत पर सुखाते हैं तो उनको भी खराब कर देते हैं। महंगे-महंगे कपड़े दातों से काट देते हैं। इन बंदरों ने तो जीना मुश्किल कर दिया है।

उत्पानी बंदरों को पकड़ने की किया मांग

मऊ । मुहम्मदाबाद गोहना कस्बा समेत विभिन्न मोहल्ला एवं विजय स्तंभ, चौक, सैदपुर, भूलीपुर आदि मोहल्लों में बंदरों के आतंक से लोग आजिज आ चुके हैं। आए दिन बंदरों के उत्पात एवं काटने से जहां लोग परेशान हैं। वहीं सुबह से ही विभिन्न छतों पर बंदरों की धमाचौकड़ी कपड़ों को फाड़ देना, सामानों को नष्ट कर देना, टाटा स्काई डीटीएच के सामान को तोड़ देना, फेंकने के साथ ही लोगों को काट भी ले रहे है। मोहल्लेवासियों ने इन बंदरों को पकड़ने की मांग की है।

लोगों की शिकायतें

- खाद्य सामग्री और अन्य सामान उठाकर ले जाते हैं।

- घरेलू सामान के साथ कपड़े को नष्ट कर देते हैं।

- खिड़कियों और दरवाजों के साथ फर्नीचर तोड़ देते हैं।

- महिलाओं, बच्चों और वृद्धों पर अधिक हमला करते हैं।

- भगाने के लिए डंडा दिखाने पर हमला भी कर देते हैं।

- उत्पाती बंदरों के कारण चिंता और डर का माहौल

लोगों ने सुझाया उपाय...

- बंदरों को दूर रखने के लिए आधुनिक तकनीकें अपनाएं।

- वन विभाग और नगर निकाय को मिलकर काम करना होगा।

- बंदरों के लिए प्राकृतिक आवास की पुनस्र्थापना की जाए।

- बच्चों और बुजुर्गों को बचाव के लिए इंतजाम किए जाएं।

- बंदरों को भगाने के लिए धमाके वाली गन रखनी चाहिए।

- विशेष बाड़ और रोकथाम के उपाय किए जाने चाहिए।

बोले मोहल्लेवासी

बंदरों का इतना आतंक है कि रास्ते में जाते समय महिलाओं और बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं। इनसे बचने के चक्कर में कई बार बच्चों के साथ ही महिलाओं को चोट भी लग जाती है।

-अखिलेश मद्धेशिया।

हम तो डर के मारे दरवाजे बंद रखते हैं। बंदर अंदर घुस जाता है तो निकालना मुश्किल हो जाता है। डंडा दिखाने पर काटने के लिए दौड़ाता है। इसके ओर नगर पालिका को ध्यान देना चाहिए।

-सुनील कुमार।

बंदरों के कारण घरों के बाहर बैठना भी बंद हो गया है। बंदरों की समस्या को लेकर कई बार नगर पालिका में शिकायत दर्ज कराई गई। लेकिन अबतक कार्रवाई नहीं हुई।

-रवि गुप्ता।

आये दिन उत्पाती बंदर छतों पर रखी पानी की टंकियों के ढक्कन तोड़ देते हैं। वहीं कनेक्शन के लिए लगी प्लास्टिक की पाइप को भी हिलाकर तोड़ देते हैं, जिससे पानी गिरने लगता है और मरम्मत करवानी पड़ती है।

-दुष्यंत मौर्य।

बंदर कई बार बड़ा नुकसान कर देते हैं। छत के ऊपर सूख रहे कपड़ों को फाड़ देते हैं या कहीं लेकर चले जाते हैं। साथ ही गमला गिरा देते हैं, जिससे लोगों के घायल होने का डर बना रहता है।

-मनौती देवी।

जब हम खाना बनाती हैं तो बंदर पता नहीं कहां से आ जाते हैं। कई बार उनकी घुड़की सुनकर डर जाती हूं। कई बार तो गुथा हुआ आटा ही लेकर भाग लाते हैं, जिससे हम सबको परेशान होना पड़ता है।

-चंद्रावती देवी।

समाधान के लिए पालिका प्रशासन गंभीर

समस्या के समाधान को लेकर नगर पालिका प्रशासन पूरी तरह से गंभीर है। पालिका प्रशासन की तरफ से समय-समय पर कवायद भी किया जाता है। वन विभाग द्वारा उपलब्ध संसाधन की मदद से बंदरों को अन्यंत्र छोड़ने की कवायद जल्द शुरू की जाएगी, जिससे आम नागरिकों को समस्याओं का सामना न करना पड़े।

-दिनेश कुमार, ईओ, नगर पालिका

प्रतिदिन तीन से चार पीड़ित पहुंचते हैं अस्पताल

जिला अस्पताल में औसतन प्रतिदिन तीन से चार की संख्या में बंदर काटने से पीड़ित मरीज आते हैं, जिन्हें जिला अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा इंजेक्शन के साथ अन्य दवाएं उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही साथ उन्हें अन्य चिकित्सकीय सलाह भी प्रदान किया जाता है।

-डॉ. सीपी आर्या, चिकित्साधिकारी, जिला अस्पताल।

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