सिमटने लगी गोंठा के गुड़ की खुशबू
Mau News - मऊ के गुड़ मंडी में अब पहले जैसी चहल-पहल नहीं रही। गन्ने की खेती कम होने और उद्योग पर ध्यान न देने के कारण गुड़ का कारोबार खतरे में है। इससे जुड़े लोगों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है ताकि उनकी...

मऊ। कभी अपने निराले स्वाद और सोंधी महक के लिए प्रसिद्ध पूर्वाचल की एकमात्र मऊ जनपद के गोंठा में स्थित गुड़ मंडी में अब वो चहल-पहल नहीं रही। न तो वहां अब बाहर के बड़े व्यापारी आते हैं और न ही दिखता है ट्रकों का रेला। समय के साथ यहां के गुड़ की खुशबू की सीमा घटती जा रही, जबकि स्वाद का जादू आज भी बदस्तूर कायम है। यह हाल गन्ना बोआई का क्षेत्रफल कम होने के कारण और इस कुटीर उद्योग पर ध्यान न देना है। इससे न सिर्फ गुड़-क्रशर उद्योग सिमटने लगा है, बल्कि इस उद्यम से जुड़े लोगों का रोजगार भी छिन रहा है। परिवार चलाने में चुनौतियां आने से लोग परंपरागत कारोबार से पलायन करने लगे हैं। 'हिन्दुस्तान' से बातचीत के दौरान क्रशर उद्योग से जुड़े लोगों का दर्द छलक पड़ा। उन्होंने क्रशर उद्योग को बचाने के लिए कदम उठाने की सरकार से गुहार लगाई है।
आज से चार दशक पूर्व की बात करें तो पूरे पूर्वाचल में मऊ जनपद के गोंठा सबसे बड़ी गुड़ की मंडी के रूप में ख्यातिलब्ध था। लगभग 20 हजार से अधिक लोग गुड़ (भेली) उद्योग से जुड़े थे और उनकी आजीविका इसी पर टिकी थी। वहीं, नवंबर से लेकर मार्च माह तक चारों तरह मध्य रात्रि से ही गन्ना पेराई के लिए क्रशर चालू जो जाते थे, जो दोपहर तक चलते थे। इसके बाद गन्ने के रस को बड़े कराहे में डालकर आग के सहारे गुड़ बनाने की प्रक्रिया शुरू होती थी। यहां का बना गुड़ (भेली) स्वाद और सुगंध में सबसे आला और निराला माना जाता है। यहां प्रदेश के विभिन्न जनपदों ही नहीं, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, राजस्थान आदि राज्यों के व्यापारी आते थे। यही नहीं मोटल तथागत में रुकने वाले विदेशी पर्यटक भी इसका स्वाद एक बार चख लेने के बाद इसे अपने देश ले जाना नहीं भूलते थे, मगर अब वो बात नहीं रही। वहीं, घोसी में चीनी मिल खुलने के बाद क्षेत्र के गन्ना उत्पादकों की रुचि गुड़ बनाने में कम होती गई और इसी के साथ यहां की मंडी में व्यापारियों की भीड़ घटती गई। बाद में घोसी मिल से होने वाले गन्ना के भुगतान ने ऐसी परिस्थिति बनाई कि किसानों ने गन्ना की बोआई ही कम कर दी।
एक तरफ जहां गन्ने का रकबा लगातार घटता जा रहा है। वहीं, गोंठा मंडी परिसर में गुड़ व्यापारियों के लिए कोई सुविधा नहीं है, उन्हें भूमि पर बैठकर गुड़ बेचना पड़ता है। वर्तमान समय एकतरफ जहां क्रशर (कोल्हू) की बंद पड़े हैं, वहीं गिने-चुने लोग ही अब गुड़ बनाने का काम करते हैं। आज हालत ये है कि कभी पूर्वांचल की समृद्ध मंडियों में शुमार रही गोंठा की गुड़ मंडी एक छोटी सी बाजार से ज्यादा अहमियत नहीं रखती। वहीं, इस उद्योग से जुड़े लोगों ने 'हिन्दुस्तान' से बातचीत में कहा कि सरकार को उनके लिए भी पहल करनी चाहिए। गुड़ उद्योग को भी बढ़ावा देने के लिए कदम उठाना चाहिए, ताकि हमारी भी आजीविका बची रहे। अब तो अत्याधुनिक मशीनें भी आ चुकी हैं, जिससे प्रदूषण भी न के बराबर रह गया है। मशीनों की खरीद पर अनुदान दें या फिर रियायती दर पर ऋण सुविधा उपलब्ध कराएं तो ये उद्योग फिर से जीवित हो उठेंगे।
दोहरीघाट क्षेत्र रहा है गुड़ उद्योग का हब
मऊ। जनपद का दोहरीघाट क्षेत्र किसी समय में गुड़ उद्योग का हब रहा है। यहां से प्रतिदिन दूसरे शहरों को गुड़ की खेप जाती थी। लगभग 400 के करीब क्रशर चलते थे। इन पर उद्यमी परिवार के सदस्यों के अलावा अन्य लोगों की भी आजीविका टिकी थी। एक क्रशर मशीन पर कम से कम पांच से 10 लोगों की आवश्यकता होती थी। कोई गन्ने की पेराई करता था तो कोई चूल्हे में ईंधन झोंकता था। किसी पर सीरा पकाने की जिम्मेदारी थी तो कोई गन्ने के अवशेष को सुखाकर उसे जलावन के लिए तैयार करता था। फिर इसे गोंठा मंडी में बेचने के लिए भेजा जाता था, जिससे लोगों को अच्छी खासी आय हो जाती थी।
विलुप्त होने के कगार पर गुड़ बनाने की कला
मऊ। गुड़ बनाने की कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। बहुत कम गांवों में अब गन्ने से गुड बनाया जाता है, जबकि आज से 20 वर्ष साल पहले तक सभी गांव में गुड़ बनाया जाता था। क्रशरों से उठती सोंधी महक दूर-दूर तक सुवासित करती थी। गुड़ की बिक्री से किसानों की अच्छी आमदनी होती थी। हर गांव में गुड़ की क्वालिटी देखने वाले चार-पांच लोग होते थे, लेकिन वर्तमान समय में नई पीढ़ी के लोग अच्छा बनाने की विधि पूरी तरह भूल चुके हैं। गन्ने की खेती कम होने के साथ गुड़ बनाने का काम भी बंद होते चला जा रहा है।
विदेशी पर्यटकों के न आने से भी पड़ रहा असर
मऊ। गोंठा गांव में बनने वाले सुगंधित गुड़ की मिठास के दीवाने भारतीय ही नहीं, बल्कि विदेशी भी हैं। भगवान बुद्ध की उपदेशस्थली होने से गोंठा गांव में हर साल जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, बैंकाक, म्यांमार, कंबोडिया और सिंगापुर से बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी आते थे। विदेशी सैलानियों के बीच सुगंधित गुड़ की जबरदस्त मांग थी। एक आंकड़े के अनुसार पहले हर साल 20 हजार से अधिक विदेशी पर्यटक आते थे। पिछले चार साल से इनकी संख्या घटने से जहां पर्यटन को नुकसान हो रहा है। वहीं, गुड़ कारोबारियों को भी लाखों का झटका लगा है।
100 से 200 रुपये किलो में मिलती है गुड़
मऊ। गोंठा गांव स्थित कृषि मंडी में सप्ताह में दो दिन गुरुवार एवं रविवार को गुड़ की मंडी लगती है। विदेशी सैलानियों का आगमन नहीं होने से बिक्री प्रभावित है। वर्तमान समय में भेली (गुड़) की कीमत 100 से 200 रुपये प्रति किलोग्राम है। गोंठा का सुगंधित गुड़ खरीदने मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, राजस्थान सहित कई राज्यों के व्यापारी यहां आते हैं।
कांच की गोली की तरह चमक
मऊ। भेली (गुड़) उत्पादक जय नारायण और अरुण कुमार ने बताया कि मऊ की सुगंधित गुड़ का स्वाद और इसकी सुगंध लाजवाब है। कांच की गोली के समान चमकती, चिकनी साफ और मात्र 5-10 ग्राम वजन की होती है। क्षेत्र के बसारथपुर, फरसरा, सियरहीं, सरंगुआ, हरिपरा, पोखरापार, अपडडिय़ा, बिशुनपुरा, डंगियापार, कुरंगा, नगरीपार, शक्करपुर, छपरा, रेवरी नरहरपुर, गोंफा, मुहम्मदपुर, महाबलचक, पिड़सुई और बसियाराम आदि गांवों में कई परिवार इसे विशेष विधि से बनाते हैं।
शिकायतें
- गुड़ उद्योग खत्म होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। कई गांवों में क्रशर पहले से बंद हैं। इसे बढ़ावा देने का किसी ने प्रयास नहीं किया।
- अन्य उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार मदद कर रही है, लेकिन क्रशर चलाने के लिए किसी तरह के अनुदान की व्यवस्था नहीं की गई है।
- गुड़ की डिमांड आज भी पहले की तरह ही है। एक-एक कर क्रशर बंद होने के कारण अब बाहर के लोग यहां के गुड़ की डिमांड नहीं करते हैं।
- गोंठा मंडी परिसर में गुड़(भेली) बेचने के लिए भूमि पर बैठना पड़ता है।
- उद्योग बंद होने के बाद परिवार की आजीविका चला पाना अब कठिन हो गया है। इससे जुड़े लोग पलायन करने को विवश हैं।
सुझाव
- जिस तरह सरकार अन्य उद्योग को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है, उसी तरह गुड़ उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए सार्थक प्रयास की जरूरत है।
- अत्याधुनिक ब्वॉयलर आदि मशीनें की खरीद पर सरकार द्वारा अनुदान की व्यवस्था की जाए।
- क्रशर चलाने के लिए रियायती दर पर बैंकों से ऋण मुहैया कराया जाए तो अच्छी मशीनें लग सकती हैं। इससे प्रदूषण भी नहीं होगा।
- पहले की तरह फिर कुटीर उद्योग के रूप में गुड़ बनाने का काम शुरू कराया जाए तो यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा और पलायन भी रुकेगा।
- गोंठा मंडी परिसर में सुविधाएं बढ़ाई जाएं और गुड़ (भेली) बिक्री के लिए चबूतरे का निर्माण हो।
हमारी भी सुनें
गुड़ की डिमांड आज भी पहले की तरह ही है। सरकार का ध्यान अगर हम पर भी जाए तो निश्चित रूप से गुड़ उद्योग एक बार फिर बेहतर तरीके से शुरू हो जाएगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
- श्रीधर राय।
गुड़ उद्योग हमारी आजीविका का सबसे बेहतर जरिया रहा है। बच्चों की परवरिश और शादी-विवाह करने में भी पहले कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन सरकार की तरफ से उपेक्षा होने से यह उद्योग बंद होता गया।
- रामाश्रय यादव।
पहले बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती थी, लेकिन अब नाममात्र रह गया है। इस कारण भी लोग अब गुड़ (भेली) नहीं बना रहे हैं। अगर सरकार इस उद्योग पर ध्यान दे तो यह गांव में ही लोगों को रोजगार उपलब्ध हो जाएगा।
- ज्ञानिश शुक्ल।
गुड़ (भेली) बनाने में काफी मेहनत लगता है। लोग मेहनत से भाग रहे हैं। दूसरी तरफ गन्ने की खेती में पूरे एक साल का समय चला जाता है। यह भी इस उद्योग के बंद होने का मुख्य कारण है।
- संजय राय।
गुड़ (भेली) उत्पादक किसानों की संख्या एवं गन्ने का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। इसके चलते मंडी में गुड़ एवं भेली की आवक काफी कम हो गई है। गुड़ उद्योग को बढ़ावा मिले तो फिर एक बार इस क्षेत्र में गुड़ उद्योग में क्रांति आ सकती है।
- हरेराम विश्वकर्मा।
जिस तरह से सरकार अन्य फसलों कि खेती पर सब्सिडी दे रही है, उसी तरह गन्ना की खेती पर सब्सिडी दी जाए तो गन्ना कि खेती में बढ़ोतरी होगी। किसानों की स्थिति बेहतर होगी। गन्ने की खेती से आर्थिक विकास भी होगा।
- बृजेश यादव।
दिलाया जा रहा ऋण
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना और मुख्यमंत्री युवा कल्याण योजना के माध्यम से युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऋण मुहैया कराने का पूरा प्रयास किया जाता है। आवेदन करने वाले पात्रों का जिलास्तरीय समिति के माध्यम से चयन कर बैंकों से ऋण भी दिलाया जाता है, ताकि युवा स्वयं उद्योग स्थापित कर अन्य लोगों को भी रोजगार मुहैया करा सकें। रही बात गुड़ उद्योग की तो उससे जुड़े लोग भी इन योजनाओं के तहत आवेदन कर सकते हैं।
राजेश रोमन, उपायुक्त, उद्योग विभाग, मऊ।
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