बोले मथुरा-बरसाने की लाठियों में भी है लड्डू जैसी मिठास
Mathura News - मथुरा की बरसाना में लठामार होली का त्योहार विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी को जीवित करता है, जहां गोपियां और गोप मिलकर होली खेलते हैं। इस परंपरा की शुरुआत नारायण भट्ट ने की...
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मथुरा। यूं तो पूरे देश में होली का त्योहार प्रचलित है, लेकिन ब्रज में होली की बात ही कुछ और है। ब्रज में भी बरसाना की होली द्वापरयुग में राधा-कृष्ण, ग्वालबाल व गोपियों के बीच हुई होली की यादें ताजा करती है। बरसाना और नंदगांव के बीच लठामार होली की यह डोर भी किसी परंपरा से कम नहीं। राधा-कृष्ण के रिश्तों के चलते इन दोनों गांवों की किसी भी जाति के लोगों के बीच आज तक वैवाहिक संबंध नहीं होते। बरसाने की होली में सिर्फ प्रेम पगी लाठियां ही नहीं बरसतीं, यहां पर लड्डूओं की बरसात भी होती है, जो अपने आप में अनुपम है। देश ही नहीं विदेशों से भी कृष्ण भक्त इस लठामार होली को देखने के लिए बरसाना पहुंचते हैं।
समय भले बदल गया हो, लेकिन बरसाने की विश्वविख्यात लठामार होली आज भी अपनी मर्यादा और परंपरा के लिए पहचानी जाती है। नारायण भट्ट ने 567 वर्ष पूर्व लठामार होली की इस परंपरा को शुरु किया था। इस होली को प्रारंभ कराने के पीछे जहां राधाकृष्ण व गोपियों के बीच प्रेमपगी होली को साकार करना था, वहीं मुगल अक्रांताओं से स्वयं की रक्षा करने के लिए ब्रजनारियों को लाठियों से सबल बनाना था। यह भी किंवदंति है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के अत्याचारों से बचाने के लिए ब्रज गोपियों के साथ छड़ी मार होली खेली थी, ताकि कंस के राक्षसों का ब्रज गोपियां लाठी चलाकर अपना बचाव कर सकें। कहा भी गया है कि अनुपम होली होत है लट्ठों की सरनाम, अबला-सबला सी लगै बरसाने की वाम...। तब से शुरु हुई बरसाने में लठामार होली की यह परंपरा आज दुनियांभर के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
राधा कृष्ण की द्वापर युगीन लीला के माध्यम से बरसाने की गोपियों व नंदगांव के गोप के मध्य लठामार होली की परंपरा में मर्यादा का निर्वहन सर्वोपरि है। बरसाने की 20 वर्ष से लेकर 90 वर्ष तक सुहागिन ही हुरियारिनें सोलह श्रंगार में लंबा घूंघट डाले होली खेलने पहुंचती हैं, जबकि नंदगांव के पांच वर्ष से लेकर 90 वर्ष या उससे अधिक उम्र तक के हुरियारे परंपरागत वेशभूषा में होली खेलने आते हैं। हुरियारिनों के हाथ में लाठी तो हुरियारों के हाथ में चमड़े की ढाल होती है। इस होली का सबसे बड़ा आकर्षण यही है। समय कितना भी बदला हो, लेकिन बरसाने की लठामार होली आज भी परंपरा से जुड़ी हुई है। बरसाना में करीब 1500 हुरियारे व हुरियारिनों के बीच राधा रानी मंदिर, गोवर्धन रोड, बस स्टैंड, पीली कोठी तिराहा, पुराना बस स्टैंड, मेन बाजार, रंगीली गली, फूल गली, सुदामा चौक, प्रिया कुण्ड मार्ग पर लठामार होली का मंच बना नजर आता है। मुख्य रूप से रंगीली गली, रंगीली गली चौक, मेन बाजार सुदामा चौक, फूल गली, कटारा पार्क में लठामार होली होती है। हुरियारे सबसे पहले ब्रज गोपियों से होली खेलने का निमंत्रण देते हैं। इसी दौरान कृष्ण के सखा गोपियों से हंसी मजाक करते हैं तो गोपियां लाठियों से प्रहार करने लग जाती हैं। हुरियारे लाठियों के प्रहार को रोकने के लिए अपने साथ लाई गईं ढालों पर लाठियों का प्रहार रोकते हैं। इस बार यह लठामार होली 8 व 9 मार्च को होगी।
राजा द्वारा बड़ी भेंट देने से बदली परम्परा:बरसाने की लठामार होली में सैंकड़ों साल पहले नंदगांव से ही पांडे होली खेलने आता था। मध्य प्रदेश में स्थित रीवा नरेश उस समय राधा रानी के दर्शन करने आये थे, उस समय मंदिर में पांडे लीला की जा रही थी। उस लीला को देख रीवा के राजा ने प्रसन्न होकर पांडे को मोहर असर्फी काफी मात्रा में दीं। बताते हैं इसी के चलते राधारानी मंदिर के सेवायतों ने अगले वर्ष से नंदगांव से आने वाले पांडे को रोकते हुए मंदिर में सेवायत के माध्यम से इस परंपरा को आगे बढ़ाना शुरु किया।
लड्डू होली क्यों मनाई जाती है
बरसाने की लठामार होली में जहां लाठियों की बरसात होती है, वहीं एक दिन पूर्व लड्डू भी बरसते हैं। ये लड्डू भक्तों पर लुटाये जाते हैं। मान्यता है कि द्वापर युग में राधा रानी व उनकी सखियों ने मिलकर योजना बनाई की कृष्ण को छेड़खानी का मजा चखाना चाहिए। सभी सखियों को राधा रानी ने कहा कि क्यों न होली खेलने के बहाने कृष्ण की पिटाई की जाए। इसके लिए एक सखी को बरसाना से नन्दगांव होली का निमंत्रण देने के लिए भेजा गया। निमंत्रण लेकर पहुंची सखी का स्वागत भगवान श्रीकृष्ण ने भव्यता से किया। भगवान कृष्ण ने बरसाना में होली खेलने की बात अपने सभी सखाओं को बतायी। राधा रानी और उनकी सखियों से होली खेलने का आमंत्रण सखाओं ने स्वीकार कर अपने पुरोहित को बरसाना में भेजा। जहां पुरोहित ने बाबा बृषभान को नन्दबाबा संग कृष्ण व सखाओं के होली खेलने की बात बतायी। इस पर पास खड़ी सखियों ने पुरोहित को लड्डू खिला कर उसका मुंह मीठा कराया और पुरोहित से हंसी मजाक की। बताते हैं कि इस दरम्यान पुरोहित खीज कर सखियों पर लड्डू फेंकने लगता है। तब से बरसाने में लठामार होली से एक दिन पूर्व लड्डू होली की परंपरा चली आ रही है। ढेड़ टन लड्डुओं की बरसात होती है। आज भी नंदगांव का पांडा बरसाना में होली का आमंत्रण स्वीकार करने के लिए आता है।
राधा कृष्ण की लीला का साक्षी बनने पर परम् आनंद की प्राप्ति होती है। हमारे लिए यह गौरव की बात है कि बरसाना में हमारा जन्म हुआ। यहां की होली में आज भी मर्यादा कायम है। नंदगांव-बरसाना के बीच अटूट रिश्ते का प्रतीक है यह लठामार होली।
-प्रेम गोस्वामी
लठामार होली व लड्डू होली श्यामा श्याम की अलौकिक प्रेम भरी होली है। इसका आनंद प्राप्त कर हम अपने की धन्य समझते हैं। यहां की होली में कोई दिखावा नहीं होता, बल्कि पंरपंरागत तरीके से हुरियारे व हुरियारिनें यहां पर होली खेलते आए हैं।
-दीपक गोस्वामी
ब्रज मंडल के साथ समूचे भारत वर्ष में होली की शुरुआत बरसाना से होती है। यहां की अनोखी होली का आनन्द ही निराला है। विशेष बात यह है कि यहां की होली में प्राकृतिक रंगों की बरसात होती है, जिसमें सराबोर होने को हर कोई आतुर रहता है।
-कनुआ गोस्वामी
नंदगांव-बरसाना की लठामार होली आपसी प्रेम सौहार्द का अनुपम उदाहरण हैं। यह होली हंसी ठिठोली के मध्य खेली जाती है। द्वापर युगीन होली की इस परंपरा को नंदगांव व बरसाना के लोग आज भी बखूबी निभा रहे हैं। लठामार होली का सहभागी बनने का मुझे हर साल इंतजार रहता है।
-बांके गोस्वामी
फागुन मास में राधा कृष्ण की लीला का सजीव उदाहरण है बरसाना की लठामार होली। इस होली में ब्रजभाषा के गीत-संगीत और हास-परिहास होली की शान है। इस होली को देखने के लिए पूरी दुनियां को इंतजार रहता है।
-ध्रुवेश गोस्वामी
नारायण भट्ट ने बरसाने में ब्रज गोपियों को मुगल आक्रांताओं से बचाने के लिए लठामार होली की शुरुआत कराई, जो सैकड़ों वर्ष से जारी है। आज भी हर उम्र की विवाहिताएं इस होली को पूरी मर्यादा के साथ खेलती हैं। नारी के प्रति सम्मान के दृश्य इस होली में कदम-कदम पर साकार होते हैं।
-हरिशंकर श्रोत्रिय
लठामार होली दो गांवों में अद्भुत प्रेम से खेली जाती है। नंदगांव-बरसाना के लोग एक दूसरे को राधा-कृष्ण के सखी-सखा के रूप में मानते हैं। रंगीली गली से शुरु हुई यह अनूठी होली देशी-विदेशी भक्तों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र रही है।
-मनमोहन शर्मा
मन मयूर को आनंदित कर देने वाली लठामार होली को देखने से जो आनंद मिलता है उससे हजारों गुना आनंद होली में सम्मलित होकर खेलना अपने आप को सौभाग्यशाली समझते हैं। आधुनिकता के इस युग में इतनी मर्यादित होली कहीं और देखने को नहीं मिलती।
-आशीष श्रोत्रिय
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