फालैन में होलिका से पंडा निकलने की प्राचीन है परंपरा
कोसीकलां। प्रहलाद कुंड पर भक्त प्रहलाद एवं नरसिह भगवान मन्दिर प्रांगण, जहां होलिका दहन वाले दिन प्रहलाद की उपासना कर जलती आग में से पंडा निकलता...
कोसीकलां। प्रहलाद कुंड पर भक्त प्रहलाद एवं नरसिंह भगवान मंदिर प्रांगण है। जहां होलिका दहन वाले दिन प्रहलाद की उपासना कर जलती आग में से पंडा निकलता है।
एक दिन जब फालैन यानी तब के वायेवन में ग्वाले गौचारण कर रहे थे, तभी अचानक ग्वारियों को एक अनोखी प्रतिमा दिखाई दी। ग्वालबालों ने उस पर कोई ध्यान न देते हुए गोवशों को चराने के बाद अपने गंतव्य की ओर लौट गए। अचानक स्वप्न में एक ब्राहम्ण को भक्त प्रहलाद ने दर्शन देते हुए कहा कि हे ब्राह्मण देव, मैं और मेरे इष्ट नरसिंह भगवान तुम्हारे वन में आए हैं और यह बताना चाहते हैं कि गांव के ग्वाले हमारी प्रतिमा की अवहेलना कर घर लौट आए हैं। कहा कि वायेवन के अन्दर अपने ईष्ट के साथ कुंड पर निवास करता हूं। तुम मेरी और नरसिंह भगवान की पूजा करो प्रतिमा इतनी शक्ति से ओतप्रोत हैं कि जो भी मन में मेरा नाम लेकर आग से निकलेगा तो उसको आग छू भी नहीं पाऐगी। यह सुनकर ब्राह्मण वायेवन पहुंचे और उन्होने प्रतिमा के चरण स्पर्श किये। उसी दिन से ब्राह्मण ने वहीं कुंड के किनारे एक छोटा सा प्रहलाद मठ बनवा दिया। बाद में यहां से पंडा मेला की शुरूआत मानी जाती है।
अग्नि में प्रवेश करते ही आगे चलते भक्त प्रहलाद
तपस्या पर बैठे बाबूलाल पंडा ने बताया कि स्नान करने के पश्चात जब वह अग्नि में प्रवेश करने को चलते हैं तो उन्हें अपने आगे भक्त प्रहलाद चलते नजर आते हैं और वह जहां भक्त प्रहलाद कदम रखते हैं, वही पंडा के पैर स्वत: ही उसी जगह पर पड़ते चले जाते हैं और धधकती अग्नि शीतल नजर आती है। पंडा ने बताया कि हाथ माला और निगाह प्रहलाद पर रखकर अग्नि पीछे रह जाती है।
पंडा देता है अग्नि प्रज्जवलित करने के संकेत
होलिका दहन वाले दिन पंडा अपनी तपस्या में लीन होकर अपने समक्ष जलते दीपक की लौ पर हाथ रख लगन लगाता है। जब तक अग्नि उन्हें गर्म लगती हैं तब तक वह प्रहलाद जी का ध्यान लगाये रहते हैं। जब दीपक की लौ में शीतलता आती है, तब खुद पंडा विशालकाय होली में अग्नि प्रज्जवलित करने का संकेत देते हैं। पंडा समाज के कुल गुरू भगवान सहाय ने बताया कि इनके ही संकेत पर होलिका में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है। अग्नि के प्रवेश होते ही वह प्रहलाद कुंड में स्नान के लिए प्रस्थान करते हैं।
कुंड से होलिका तक बहन दिखाती है रास्ता
जब पंडा भक्त प्रहलाद मंदिर से निकलकर स्नान के लिए प्रहलाद कुंड में प्रवेश करते हैं तो उनकी बहन सुक्कन अपने हाथ में दूध और गंगाजल का गंगासागर थामे प्रहलाद कुंड की घट्टी पर खड़ी रहती हैं। जब पंडा स्नान कर बाहर निकलता है। तो बहन होलिका में दूध और जल के छींटे मार अपने रौद्र रूप को हल्का करने का आग्रह करती हैं। बहन का इशारा पाकर पंडा पलक झपकते ही हसते खेलते अग्नि को पार कर जाता है।
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