द्वापर युगीन बूढ़ी लीलाओं का हुआ शुभारंभ
पहले दिन मोर कुटी पर मयूर लीला व शाम को राधारानी मंदिर मे ढाढ़िन लीला हुईद्वापर युगीन बूढ़ी लीलाओं का हुआ शुभारंभद्वापर युगीन बूढ़ी लीलाओं का हुआ शुभारंभ
पहले दिन मोर कुटी पर मयूर लीला व शाम को राधारानी मंदिर मे ढाढ़िन लीला हुई बरसाना। राधा रानी के जन्मोत्सव के बाद अष्टसखी गांवों की लीला स्थलियों में द्वापर युगीन बूढ़ी लीलाओं का शुभारंभ हो गया। पहले दिन मयूर लीला व ढाढ़िन लीला का आयोजन हुआ। बूढ़ी लीला का आनंद हजारों दर्शकों ने उठाया। ब्रह्मगिरि पर्वत पर स्थित मोरकुटी मोर भगवान के जयकारे से गूंज उठी।
बता दें की द्वापर में राधा कृष्ण ने ब्रज में अनेकों लीलाएं की थीं। जो युग परिवर्तन होने के साथ लोप हो गईं थी। 566 वर्ष पूर्व दक्षिण भारत से आये आचार्य नारायण भट्ट ने लुप्त हुई लीला स्थलियों को प्राकट्य कर स्थानीय निवासियों से मंचन कराया। यह लीला राधा-कृष्ण के जन्मोत्सव के बाद से बरसाना के ब्रह्मगिरि पर्वत से शुरू होकर अष्ट सखी गांवों में आयोजित होंगी। पहले दिन की बूढ़ी लीला कार्यक्रम के अंतर्गत सुबह मोर कुटी पर मयूर लीला का आयोजन किया गया। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण राधा रानी का मान रखने के लिए मयूर बन कर नाचते हैं और राधा रानी के हाथों लड्डू खाते हैं। लीला के दौरान मयूर बने श्री कृष्ण को राधा रानी पहचान लेती हैं और दोनों मिलकर लड्डू बरसाने लग जाते हैं। मयूर लीला देख रहे हजारों दर्शक मयूर भगवान के जयकारे लगाने लगे। मोर भगवान के जयकारों से मोर कुटी गूंजने लगी। इस दौरान मोर कुटी के महंत जयदेव दास ने संतों व बृज वासियों का भंडारा कराया।
शाम को बरसाना स्थित राधा रानी मंदिर में संध्या आरती के बाद राधा जन्म की बात बाबा बृषभान के आंगन में ढाढ़िन बनी नन्दगोपाल उर्फ गोलू सखी बधाई मांगने गई। ढाढ़िन ने राधा रानी के समक्ष पहुंच कर उनकी वंशाबली सुनाई और जुग-जुग जीने का आशीर्वाद दिया। सेवायत पुजारी ने ढाढिन को नेग के रूप में राधा रानी की प्रसादी चुनरी व श्रंगार का समान देकर विदा किया। कल विलासगढ़ पर रास विलास व जोगिन लीला का आयोजन किया जाएगा।
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