विनाश की ओर ले जाता है भक्ति रहित धन : श्रीकांत

वृदांवन। द सांसारिक धन खर्च करने पर काम होता है, लेकिन ईश्वर रूपी धन जितना खर्च होता है, उतना ही बढ़ता जाता...

Newswrap हिन्दुस्तान, मथुराTue, 6 April 2021 08:21 PM
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सांसारिक धन खर्च करने पर काम होता है, लेकिन ईश्वर रूपी धन जितना खर्च होता है, उतना ही बढ़ता जाता हैं। सांसारिक धन भी सद्कार्यों में इस्तेमाल किया जाए तो वह बढ़ता है। धन के साथ भक्ति होनी जरूरी है, क्योंकि भक्ति रहित धन विनाश की ओर ले जाता है। सही अर्थों में धनवान वही है, जो धन से समाज और राष्ट्र की सेवा करता है।

ये विचार छटीकरा मार्ग स्थित कृष्ण सुदामा आश्रम में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में बाल व्यास श्रीकांत शर्मा ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि गोधन को सबसे श्रेष्ठ कहा गया है। गाय जितना देती है उतना कोई भी नहीं दे सकता है। नंदबाबा के यहां नौ लाख गायें थीं। जब उन्होंने पुत्र होने की खबर सुनी तो दो लाख गायें दान कर दीं। भारत ऋषि और कृषि प्रधान देश है। जब तक गायें हैं तब तक भारत है। गायों के खत्म होने पर यह देश भी खत्म हो जाएगा। किसान के अन्न और ऋषि के तप से ही खुशहाली आती है। शास्त्रों में कहा गया है कि गो सेवा करने वाला निरवंश नहीं रह सकता है।

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