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बोले मथुराः लोक परंपरा कायम रखने वालों को मिले पहचान

Mathura News - बोले मथुरा-ब्रज के लोकनृत्य और लोकगीतों के बिना ब्रज की होली सूनी है। इन लोक कलाओं

Newswrap हिन्दुस्तान, मथुराSat, 1 March 2025 06:02 PM
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बोले मथुराः लोक परंपरा कायम रखने वालों को मिले पहचान

ब्रज के लोकनृत्य और लोकगीतों के बिना ब्रज की होली सूनी है। इन लोक कलाओं को विश्व मंच तक पहुंचाने में यहां के लोक कलाकारों की अहम भूमिका रही है। लोक कलाएं तो विश्व मंच तक पहुंची, लेकिन यहां के कलाकारों को कोई पहचान नहीं मिल सकी। सिर्फ होली और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ही इन लोक कलाकारों को अपनी प्रस्तुति देन का मौका मिलता है। यही वजह है कि इन कलाकारों के सामने हमेशा रोजी-रोटी का संकट रहता है। शासन-प्रशासन ने आज लोक कलाओं को बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की, जिसका दर्द यहां के कलाकारों को सालता रहा है।

कलाकार चाहते हैं समाज में उनको भी सम्मान और पहचान मिले। ब्रज लोकनृत्य, गीत और संगीत ही नहीं प्राचीन वाद्य यंत्र के साथ-साथ लोक कलाकारों के हाव-भाव ब्रज की होली की शान रहे हैं। बदलते दौर में अब आधुनिक वाद्य यंत्रों पर होली के लोकगीतों की प्रस्तुतियां दुनियांभर में धूम मचा रही हैं। वाद्य यंत्र भले ही बदले हों, लेकिन ब्रज के लोकनृत्य व लोक गायन शैली आज भी अपनी परंपरा से जुड़ी हुई है। कुछ ऐसे लोकगीतों पर ब्रज के लोककलाकार इन दिनों देश के विभिन्न प्रांतों में अपनी प्रस्तुतियां दे रहे हैं। इन कलाकारों का दर्द है कि लोककलाओं के संरक्षण और कलाकारों के सम्मान के लिए सरकार ने आज तक कोई सार्थक पहल नहीं की। वर्तमान में दो दर्जन से अधिक लोककला संस्थाएं हैं।

ब्रज में लोक कलाकारों की कोई कमी नहीं। गांव-गांव कलाकारों की लंबी कतार है। कोई लोक गायकी में पारांगत है तो किसी को लोकगीतों की रचना करने में महारत हासिल है। ब्रज के लोक कलाकार इस बार भी यहां की परंपरागत होली की प्रस्तुतियों से दुनियाभर का ध्यान अपनी और खींचते रहे हैं। इन कलाकारों की डिमांड चरम पर पहुंच रही है। जनपद के बाहर भी प्रस्तुतियों के लिए इन कलाकारों के पास बुकिंग आ रही हैं। होली की इन प्रस्तुतियों में सबसे ज्यादा डिमांड राधाकृष्ण की फूलों की होली व मयूर नृत्य की है। चरकुला नृत्य की मंचीय प्रस्तुति की डिमांड भी कम नहीं है। इसके साथ ही ये कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से लठामार होली को मंचीय रूप प्रदान करते रहे हैं। हजारों लोक कलाकार ग्रामीण अंचल में हैं, लेकिन 300 से ज्यादा ऐसे कलाकार हैं जिनकी रोजी-रोटी ही लोककला से जुड़ी हुई है।

ये कलाकार इन दिनों देश के विभिन्न शहरों में होली की प्रस्तुतियां दे रहे हैं। खासकर, राधाकृष्ण के स्वरूपों का श्रंगार व वेशभूषा हर किसी का मनमोह रही है। यही वजह है कि परंपरागत वेशभूषा व श्रंगार पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ब्रज की होली की इन प्रस्तुतियों में देवर-भाभी और जेठ के बीच गीत-संवाद की पैरोडी भी तैयार की गयी है, जो होली के आयोजनों को मस्ती तक ले जाती है। ब्रज के पारंपरिक लोकनृत्य चरकुला की बात करें तो इसका संबंध सीधे राधारानी से जुड़ा हुआ है, जबकि लठामार होली का संबंध भगवान श्रीकृष्ण-राधारानी और गोप-गोपियों से जुड़ा हुआ है।

आज भी बरसाना, नंदगांव, जाव-बठैन, गिडोह, रावल, बल्देव और गोकुल में होने वाली होली में ब्रज की पौराणिक लोक परंपरा देखने को मिलती है। ब्रज की होली को मर्यादित तरीके से लोकमंच पर तक पहुंचाने में लोक कलाकारों ने मयूर नृत्य, फूलों की होली, घढ़ा नृत्य, जेहर नृत्य के साथ-साथ गोप-गोपियों के पारस्परिक संवाद से जोड़ते हुए आगे बढ़ाया है। आज दुनियां भर में ब्रज की होली के कार्यक्रमों की सबसे ज्यादा डिमांड रहती है। पंरतु, इनसे जुड़े कलाकारों की भी अपनी पीढ़ी है, जिसे उन्होंने हिन्दुस्तान समाचार-पत्र से संवाद स्थापित करते हुए बयां किया।

लोक कलाकारों ने कही ये बात

ब्रज की होली के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लंबे समय से मैं घड़ा नृत्य कर रही हूं। इस बार भी होली में घड़ा नृत्य की खासी डिमांड है। मैं चाहती हूं कि घड़ा नृत्य को विश्वस्तरीय पहचान मिले। इस तरह के लोकनृत्य अब लुप्त होते जा रहे हैं। इन्हें बढ़ावा देने को सरकार को कलाकारों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

-कुमकुम कुशवंशी

लोकनृत्य ब्रज को लोक संस्कृति की आत्मा है। होली ही नहीं ब्रज में होने वाले सामाजिक समारोहों में भी लोकनृत्य की धूम रहती है। पाश्चात्य नृत्यों को जिस तरह से बढ़ावा मिल रहा है, उसी तरह से लोकनृत्यों को भी बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। ताकि वर्तमान पीढ़ी भी इस क्षेत्र में बढ़कर आगे आए।

-रिशिता कुमारी

ब्रज की होली में भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका करना अच्छा लगता है। मेरी यह कला भगवान को ही समर्पित है। मैं चाहती हूं की होली के कार्यक्रमों को सरकार और प्रोत्साहित करे। होली ही पर ही सबसे ज्यादा लोककलाओं का प्रदर्शन होता है। ब्रज में कार्यक्रमों में भी लोककलाओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

-नितिका कुमारी

होली एक सांस्कृतिक त्यौहार है, जो बृज क्षेत्र में देखने को मिलता है। पारंपरिक वेशभूषा और ब्रजभाषा होली की मंचीय प्रस्तुतियों की जान है। ऐसी प्रस्तुतियां दुनियां में कहीं भी देखने को नहीं मिलती हैं। इस बार भी लोक कलाकार होली की नई प्रस्तुतियां तैयार कर रहे हैं, ताकि जनमानस आनंद उठा सके।

-मानसी राजपूत, कोरियोग्राफर

होली में राधाकृष्ण के साथ सखाओं एवं गोपियों का नृत्य, युगल गीत, चरकुला नृत्य, मयूर नृत्य, घड़ा नृत्य, दीपक नृत्य आदि मंचीय प्रस्तुतियों में इस बार भी जनमानस को लुभाएंगे। इस बार दर्शकों को बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा। लोकनृत्यों के प्रति युवा पीढ़ी में तेजी से रुझान बढ़ा है।

-नंदिनी चतुर्वेदी

लोक कलाकारों की संख्या लगातार कम हो रही है। सिर्फ होली पर काम मिलता है। ऐसे में सरकार को कलाकारों के लिए मानदेय आदि की व्यवस्था करनी चाहिए,होली पर मैं मथुरा के साथ-साथ बाहरी जनपदों में होने वाले कार्यक्रमों में जाती हूं। सरकार को इस कला को प्रोत्साहित करना चाहिए।

-पूजा मेहता

ब्रजभूमि कला की भूमि है। यहां बचपन से ही लोककलाएं सीखने को मिलती हैं, लेकिन शहरी परिवेश से लोककलाएं लुप्त होती जा रही है। ग्रामीण अंचल के कलाकारों के लिए सरकार को कोई योजना तैयार करनी चाहिए, ताकि वे समाज में सम्मान के साथ आगे आ सकें।

-लवली बघेल

होली में लोकगीतों पर पारंपरिक वेशभूषा के कार्यक्रमों की जहां बाहरी जनपदों में डिमांड रहती है, वहीं मथुरा में ये कार्यक्रम कम हो रहे हैं। वर्तमान सरकार ने जरूर थोड़ा बढ़ावा दिया है। यही वजह है कि जन्माष्टमी और होली पर इस तरह की प्रस्तुतियां देखने को मिलती हैं। परंतु, कलाकारों के पास पूरे साल काम नहीं रहता।

-रिदिमा बघेल

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