बोले मैनपुरी: सेवा में लगा देते हैं जी-जान पर नहीं मिलता पूरा सम्मान
Mainpuri News - मैनपुरी। आज नर्स दिवस है। इस दिवस की जब बात होती है तो अस्पतालों में मरीजों की तीमारदारी करने वाले पुरुष और महिला चेहरे नजर आते हैं।
आज नर्स दिवस है। इस दिवस की जब बात होती है तो अस्पतालों में मरीजों की तीमारदारी करने वाले पुरुष और महिला चेहरे नजर आते हैं। ये वही वर्ग है जो कोरोना काल में मरीजों के लिए भगवान बनकर सामने आया था। उस वक्त कई मामले तो ऐसे आए जिसमें लोगों ने अपनों तक का साथ छोड़ दिया, लेकिन अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर मरीजों की सेवा की। साए की तरह उनकी देखभाल करने वाले इस वर्ग को आज भी वह हक और सम्मान नहीं मिलता, जिसकी यह हकदार हैं। हिंदुस्तान के संवाद में मरीजों की सांसों की देखभाल करने वाली नर्सों ने अपनी बात रखी।
कहा कि उन्हें बहुत ज्यादा नहीं चाहिए लेकिन जो उनका हक है वह उन्हें मिलना चाहिए। कोरोना काल सभी ने देखा है। इस काल में घरों से जब लोग बाहर नहीं निकलते थे, उस दौरान मरीजों की सेवा के लिए एक वर्ग ऐसा भी था जो घर से बाहर भी आता था और मरीजों की सेवा भी करता था। नर्सिंग स्टाफ ने हमेशा अपनी सेवाएं पूरी ईमानदारी से दी हैं। कई बार तो मरीजों को नर्सिंग स्टाफ के सेवा भाव ने ठीक कर दिया। नर्सिंग स्टाफ की भी अपनी समस्याएं हैं। कुछ ऐसी समस्याएं भी हैं जो सरकार को हल करनी हैं और कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें स्थानीय स्तर पर हल किया जा सकता है। हिन्दुस्तान के संवाद में नर्सिंग स्टाफ ने कहा कि काम संकल्प और सेवा भाव से जुड़ा है। ये वर्ग सम्मान का हकदार है लेकिन सेवा के बदले जो मिलना चाहिए वो पूरी तरह नहीं मिलता। पुरानी पेंशन जैसी पुरानी और बहुप्रतीक्षित मांग अब पूरी हो जाए। नर्सिंग स्टाफ ने इस पर सर्वाधिक जोर दिया। अस्पताल पहुंचते हैं तो सफेद एप्रिन में जो महिलाएं मिलती हैं, उन्हें अस्पताल की भाषा में नर्स कहा जाता है। ये लोग उस वर्ग से आती हैं जिस वर्ग के बिना चिकित्सा क्षेत्र में सेवा की व्यवस्था संभव नहीं है। पुरुष और महिला दोनों ही वर्ग इस पेशे से जुड़े हुए हैं। सालों से ये वर्ग अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे रहा है। लेकिन बदलते परिवेश में सरकार की नीतियों का असर इस वर्ग पर भी पड़ा है। इस वर्ग के सामने नौकरी के दौरान अपने भविष्य की भी बड़ी चिंता है। नर्सिंग का काम करने वाले इस स्टाफ का कहना है कि जीवन में स्थायित्व की सर्वाधिक जरूरत होती है और ये स्थायित्व सरकारी सेवा में पुरानी पेंशन के बिना संभव नहीं है। इसलिए सरकार कुछ भी करे, सरकारी सेवा से जुड़े लोगों के वेतन का एक हिस्सा काट ले लेकिन उन्हें पुरानी पेंशन की पुरानी व्यवस्था बहाल करके दे दें। पुरानी पेंशन परिवार की खुशियों के लिए भी बेहद जरूरी है। नर्सिंग स्टाफ का ये भी मानना है कि पुलिस की तरह इस वर्ग को भी राजकीय कर्मचारियों से जुड़ी सारी सुविधाएं दी जाएं और इन्हें स्थायी नौकरी से जोड़ा जाए तभी इस वर्ग से सेवा संकल्प पूरे होंगे। बताई समस्याएं रात के समय जो भी नर्सिंग स्टाफ अस्पतालों में ड्यूटी करते हैं उनकी सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम भी होना चाहिए। अक्सर उनके साथ मरीज और तीमारदार अभद्र व्यवहार करते हैं। लोगों को नर्सिंग स्टाफ के महत्व और उनके सम्मान के प्रति प्रोत्साहित किया जाए। नर्सिंग स्टाफ को सम्मान मिलेगा तो उनके अंदर सेवा भाव की भावना और पैदा होगी। -ममता राजपूत पैरामेडिकल स्टाफ के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह रहती है कि छोटे स्थान पर सुरक्षा प्रबंधन का उचित माध्यम नहीं होता। रात के समय महिलाओं के लिए ड्यूटी करना एक बड़ी चुनौती आज भी है। उनके लिए रात में रुकने के लिए अस्पताल में गेस्ट हाउस की व्यवस्था होनी चाहिए। -सुमन यादव नर्सिंग स्टाफ को पुरानी पेंशन से जोड़ा जाए। पुरानी पेंशन पाने वाले कर्मचारियों के जीवन में ज्यादा समस्या नहीं रहती। नया स्टाफ जो भी आ रहा है, वह पुरानी पेंशन का हकदार बनेगा तो उसका भविष्य पुरानों की तरह सुरक्षित रहेगा। जिससे सेवा समाप्ति के बाद जीवन आसान हो जाएगा। -हितेश कुमार अस्पताल परिसर में एक कैंटीन की व्यवस्था सरकार की ओर से की जानी चाहिए। अक्सर ड्यूटी के दौरान खाने-पीने की वस्तुओं की जरूरत पड़ती है, रात के समय बहुत जरूरत है। कॉफी, चाय के इंतजाम के लिए यहां कैंटीन बनाई जाए। -मनोरमा प्राइवेट अस्पतालों में नर्सिंग स्टाफ को कम मानदेय पर रखा जाता है और उनसे ड्यूटी अधिक ली जाती है। ड्यूटी का समय निर्धारित किया जाए। प्राइवेट अस्पतालों की तुलना में सरकारी अस्पतालों में नर्सिंग स्टाफ पर अधिक जिम्मेदारी है। -शशि व्यवसाय कोई भी हो कर्तव्य के प्रति समर्पण होना ही चाहिए। जब किसी की जान पर संकट हो उस समय उसके साथ अच्छा व्यवहार और जीने का प्रोत्साहन देने का पूरा काम नर्स समाज पूरी ईमानदारी से निभाता है। -मंजू सरकार की तरफ से जो योजनाएं चल रही है उनमें संविदा और ठेकेदारी प्रथा ने आधिपत्य जमा लिया है। स्थाई नौकरी का जमाना धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। संविदा और ठेकेदारी के जरिए नियुक्तियां नसों के लिए उचित माध्यम नहीं है। -सिद्धार्थ जिला अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ के लिए वैसे तो बहुत इंतजाम है। जरूरत पड़ने पर रात बितानी हो तो उनके लिए एक सुरक्षित गेस्ट हाउस का निर्माण भी होना चाहिए जहां नर्सिंग स्टाफ आवश्यकतानुसार रात बिताने की सुविधा हासिल कर सके। -विनोद कुमार
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