बोले मैनपुरी: किलकारियां दिलाने वाली चूल्हा जलाने को परेशान
Mainpuri News - मैनपुरी। आशाओं को स्वास्थ्य विभाग ने दोयम दर्जे का कर्मचारी मान लिया गया है। क्योंकि उनसे भरपूर काम तो लिया जाता है पर उपेक्षा भी बहुत अधिक है।
आशाओं को स्वास्थ्य विभाग ने दोयम दर्जे का कर्मचारी मान लिया गया है। क्योंकि उनसे भरपूर काम तो लिया जाता है पर उपेक्षा भी बहुत अधिक है। आशा बहुओं को राज्य कर्मचारी का दर्जा मिल जाना चाहिए। सरकार ने आशाओं का जो मानदेय तय कर रखा है, वह कम है। दो हजार रुपये मानदेय मिलता है और इसके लिए भी उन्हें दर-दर भटकना पड़ता है। आशाओं के लिए जो सुख-सुविधाएं मिलनी चाहिए वह सरकार नहीं दे रही है। हिन्दुस्तान के बोले मैनपुरी कार्यक्रम में आशाओं ने कहा कि दूसरे के घरों की खुशियों में सहयोग करने वाली आशाओं के घरों में खुशियों का दीपक कब जलेगा। जनपद में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से जुड़ी चिकित्सा सेवाओं को जनता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली आशाओं के हाथ लंबे समय से खाली हैं। बहुत ही न्यूनतम मानदेय पर उनसे बेहद जिम्मेदारी भरा काम लिया जाता है। आशाएं इन जिम्मेदारी को निभाने में पीछे भी नहीं है मगर जिम्मेदारी निभाने के इस दायित्व की आड़ में उनका लगातार शोषण हो रहा है। मानदेय बढ़ोतरी के लिए आशाएं लंबे समय से प्रयास कर रही हैं। आशाएं भी चाहती हैं कि एएनएम की तरह उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। यदि सरकार को ये दर्जा देने में कोई बड़ी कठिनाई है तो उन्हें भरण-पोषण के लिए कम से कम 18 हजार रुपये मानदेय हर माह दिया जाए।
सरकार की विभिन्न योजनाओं से उन्हें जोड़ा जाए मगर सरकार आशाओं की इन मांगों को पूरा नहीं कर रही है। आशा बहु संगीता का कहना है कि एक प्रसव पर आशा को 400 रुपये मिलते हैं। ये रुपये पाने के लिए उन्हें गर्भवती महिला के घर लगातार नौ माह तक जाना पड़ता है और जब डिलीवरी का मौका आता है तो आशाओं को 400 रुपये देने की आड़ में शोषण शुरू हो जाता है। आशाओं को इस मानदेय के लिए परेशान न किया जाए। आशाओं का ये भी कहना है कि आयुष्मान भारत योजना में निशुल्क उपचार की व्यवस्था है। आशाएं राज्य कर्मचारी और सीनियर सिटीजन भले ही नहीं है लेकिन स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी हैं इसलिए उन्हें व उनके परिवार के लोगों को इस योजना से जोड़ दिया जाए। आशाएं ये भी चाहती हैं कि अस्पतालों में रुकने, काम करने के लिए कोई इंतजाम नहीं है। इसलिए उनके लिए भी अस्पतालों में कक्ष निर्धारित किए जाएं ताकि जरूरत पड़ने पर महिलाएं और उनके परिजन उसी कक्ष में आकर आशाओं से संपर्क कर सकें। आशाओं को सरकार बहुत ज्यादा कुछ न दे पाए तो उन्हें स्थानीय आवास के निकट ही कार्य स्थल आवंटित कर दिए जाएं ताकि अपने इलाके में ये बेहतर ढ़ंग से काम कर सकें। आशाओं का कार्य स्थल दूरदराज होने से काम करने में असुविधा होती है।
बोली आशा बहुएं
आशा कर्मचारी को राज्य कर्मचारी का दर्जा देने की मांग लंबे समय से की जा रही है। पर सरकार आशाओं को उनके हक देने में आनाकानी कर रही है। राज्य कर्मचारी का दर्जा मिलेगा तो आशाओं का जीवन आसान होगा।
-बृजरानी शाक्य
आशाओं को उनका हक मिलेगा तो वह अपने काम को बेहतर करेंगी। जितना काम लिया जाता है उतना मानदेय नहीं दिया जाता। इतने कम मानदेय में आशाओं के सामने परिवार का भरण पोषण करने में समस्या रहती है।
-मीना देवी
दूसरे के घरों में किलकारी की गूंज लाने वाली आशाओं के सामने हजार दुश्वारियां हैं। उन्हें समय से मानदेय नहीं मिलता। विभाग में उन्हें सबसे कमजोर मानकर चला जाता है। लेकिन काम की बात आती है तो सबसे अधिक काम लिया जाता है।
-प्रियंका वर्मा
आशाओं के स्वास्थ्य का बीमा नहीं है। उन्हें आने जाने का भत्ता नहीं मिलता। जबकि एएनएम के पास सरकार की सभी सुविधाएं हैं। एएनएम की तरह आशाओं को भी स्वास्थ्य विभाग सभी सुविधा दें। काम करने में वे पीछे नहीं है।
-शशिकला
आयुष्मान योजना का लाभ आशाओं को नहीं दिया जा रहा। आशाओं को भी निर्धारित वर्ग की तरह आयुष्मान योजना का लाभ दिया जाए। इस योजना में उनके परिवार के लोगों को भी शामिल किया जाए। इस योजना का लाभ तो मिलना ही चाहिए।
-संध्या चौहान
आशाओं को कार्यस्थल दूर मिलता है तो काम करने में असुविधा होती है इसलिए जनपद में जो भी आशाएं हैं उन्हें स्थानीय कार्यस्थल आवंटित किए जाएं। ऐसा होगा तो विभाग को बेहतर परिणाम मिलेंगे, जनता को भी लाभ होगा।
-सितारा बानो
आशा बहुओं को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलना चाहिए। आशा और उनके परिवार के लोगों को आयुष्मान योजना से जोड़ दिया जाए तो स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं दूर हो जाएंगी। विभाग को लाभ होगा तो आशाएं भी लाभांवित होंगी।
- राजकुमारी
जो भी आशाएं बुजुर्ग हैं, यदि वे चाहें तो उनके स्थान पर उनके परिवार की किसी महिला को आशा बना दिया जाए। इससे आशा और उनके परिवार को लाभ होगा, और उनके सामने पैदा होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।
-सुषमा
आशाओं को राज्य कर्मचारी का दर्जा दिए जाने की डिमांड लंबे समय से की जा रही है। यदि आशाएं राज्य कर्मचारी बना दी जाएं तो स्वास्थ्य विभाग की महिला सुरक्षा, बालकों की देखरेख से जुड़ी योजनाओं के बेहतर परिणाम निकलेंगे।
-शकुंतला
आशाओं को प्रसव के लिए जो धनराशि दी जाती है, आशाएं यदि गर्भवती का पंजीकरण करवाती है तो डिलीवरी होने पर ये धनराशि अनिवार्य रूप से उनके खाते में ही डाली जाए, इसमें किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी न हो।
-अनुपम
कार्य क्षेत्र में सुरक्षा भी आशा बहुओं के लिए बहुत बड़ी समस्या है। रात के समय ये गर्भवती महिलाओं के साथ आवागमन करती है। अस्पताल और रास्ते में आने-जाने में कठिनाई होती है, सुरक्षा के उपाय भी होने चाहिए।
-संध्या
प्रशिक्षण लेकर जो आशाएं सरकार की विभिन्न योजनाओं को जनता तक पहुंचा रही है, उन आशाओं को अतिरिक्त मानदेय देने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। ये उनका वाजिव हक भी है।
-प्रीती
स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी आशाओं के लिए कभी-कभी समस्या खड़ी करते हैं। डिलीवरी के दौरान देरी से आने पर मिलने वाला मानदेय रोक दिया जाता है। सहानुभूति पूर्वक आशाओं से काम लिया जाए।
-विमलेश
आशा बहुएं स्वास्थ्य विभाग की विभिन्न योजनाओं से जुड़ी महत्वपूर्ण कड़ी हैं। इन्हें और इनके परिवार के भरण-पोषण के लिए इतना मानदेय तो मिलना चाहिए जिससे उनकी जरूरतें पूरी हो जाएं।
-सुनीता वर्मा
कार्य क्षेत्र में काम करते समय आशाओं के सामने विषम परिस्थितियां रहती हैं। सर्दी, गर्मी और बरसात के दिनों में मुश्किलें आती हैं। आशाओं को ब्लॉक मुख्यालय स्थित अस्पताल में रुकने की सुविधा दी जाए।
-रीना
आशाओं को टीकाकरण के लिए भी मानदेय मिलता है। आशाएं टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। टीकाकरण से जुड़ा मानदेय बेहद कम है इसमें बढ़ोत्तरी की जाए।
-गंगा देवी
हाल ही में सरकार ने जन्म से लेकर 42 दिनों तक के बच्चों की जिम्मेदारी आशा बहुओं को दी है। प्रशिक्षण लेने के बाद ये आशाएं कार्य क्षेत्र में जाएंगी। सरकार इन आशाओं को विशेष प्रोत्साहन भत्ता जरूर दे।
-कुसमा
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।