दलित वोट बैंक में सेंधमारी से बसपा में होने लगा बिखराव
मैनपुरी। दलित वोट बैंक को लेकर सपा, भाजपा और कांग्रेस के बीच यूं ही खींचतान नहीं है।
दलित वोट बैंक को लेकर सपा, भाजपा और कांग्रेस के बीच यूं ही खींचतान नहीं है। बसपा की पकड़ लगातार कम होने से ये दल दलितों को अपने पाले में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जहां तक मैनपुरी की बात है तो इस वोट बैंक पर सपा और भाजपा में बड़ी जोर आजमाइश है। उपचुनाव में दलितों का वोट सपा और भाजपा के बीच बंट गया और परंपरागत दल बसपा के हाथों से और छिटक गया। सामान्य चुनाव में 15 हजार वोट पाने वाली बसपा उपचुनाव में 8 हजार वोटों पर सिमट गई है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलित वोट बैंक के सहारे ही उत्तर प्रदेश की सियासत में चार बार सत्ता संभाली है। दलितों का नेतृत्व करने वाले काशीराम के बाद मायावती के नाम पर दलित वोट हमेशा एकजुट होकर बसपा को मजबूत करता रहा है। मैनपुरी में भले ही बसपा ने अपना खाता नहीं खोल पाई लेकिन बसपा प्रत्याशियों ने समय-समय पर जीतने वाले प्रत्याशियों के दांत खट्टे जरूर किए हैं। बसपा के लगातार गिर रहे प्रदर्शन से बसपा के कैडर लीडर चिंता में हैं और कह रहे हैं कि अब कोई चमत्कार ही मैनपुरी में बसपा को जीत की दहलीज तक ले जाएगा वरन् बसपा मैनपुरी में लगातार कांग्रेस की तरह और कमजोर होती जा रही है। बसपा के वोट बैंक को हासिल करने की मेहनत कर रही आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी ने पहली बार करहल में चुनाव लड़ा और बसपा की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी प्रदीप कुमार ने 2499 वोट हासिल करके सभी को चौंका दिया।
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