बोले मैनपुरी: मिड-डे-मील से निजात मिले तो पढ़ाई का भी मिलेगा पूरा मौका
Mainpuri News - मैनपुरी में परिषदीय स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने के सरकारी प्रयासों में कमी आ रही है। अभिभावक कॉन्वेंट स्कूलों पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षिकाओं की आकस्मिक छुट्टी और किताबों की समय...

मैनपुरी। जनपद में दो हजार से अधिक परिषदीय स्कूल संचालित हैं। सरकार ने जोर-शोर से परिषदीय स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का संचालन शुरू करवाया। दावा किया गया कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कॉन्वेंट स्कूलों की तर्ज पर पठन-पाठन शुरू होगा और बच्चे महंगे स्कूलों की पढ़ाई मुफ्त में हासिल कर सकेंगे लेकिन संसाधनों के अभाव में सरकार का ये दावा पूरा नहीं हो पाया है। यही वजह है कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूल हो या अन्य परिषदीय स्कूल, जो भरोसा कॉन्वेंट स्कूलों पर है वह भरोसा परिषदीय स्कूलों पर अभिभावकों के बीच अभी पैदा नहीं हो सका है। शिक्षक और शिक्षिकाएं समान रूप से स्कूलों में पढ़ाई करवाते हैं लेकिन शिक्षिकाओं के सामने आकस्मिक स्थिति में स्कूल छोड़ने की कोई व्यवस्था नहीं है।
ऑनलाइन हाजिरी की व्यवस्था जरूरी मानी जा रही है लेकिन शिक्षिकाओं का ये मानना है कि बीमार होने की स्थिति में यदि वे समय से पहले स्कूल छोड़ती हैं तो सवाल उठ जाते हैं। ऐसी बीच की कोई व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए जिससे शिक्षिकाओं को आकस्मिक स्थिति में स्कूल छोड़ने के दौरान कोई समस्या न हो। परिषदीय स्कूलों में सत्र शुरू होने से पहले किताबों का वितरण करवा दिया जाए। भले ही इसके लिए फरवरी से ही किताबें भेजनी पड़ें। चूंकि किताबें समय पर नहीं आती इसलिए कक्षाओं में बच्चों को क्या पढ़ाया जाए, ये सबसे बड़ा सवाल है।
इसके अलावा स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने के लिए शिक्षकों पर जोर रहता है लेकिन अभिभावक भी अपनी जिम्मेदारी समझें और बच्चों को हर रोज और नियमित स्कूल भेजें तभी उनकी बुनियाद मजबूत होगी और वे पढ़ाई करके आगे बढ़ पाएंगे। शिक्षिकाओं का ये भी कहना है कि परिषदीय स्कूलों में मिड-डे-मील बनाया जाए लेकिन इसकी जिम्मेदारी शिक्षक-शिक्षिकाओं से ले ली जाए। आधा समय मिड-डे-मील तैयार करने में गुजर जाता है। शिक्षिकाएं ये भी कह रही हैं कि लंबे समय से ट्रांसफर नहीं हुए हैं। ट्रांसफर की प्रक्रिया भी सत्र शुरू होने से पहले हर साल शुरू करवाई जाए।
शिक्षिकाओं का ये भी कहना है कि जो दूर के स्कूल हैं वहां जो शिक्षिकाएं तैनात हैं, उन्हें सूचिबद्ध किया जाए और नजदीक के स्कूलों में तैनात किया जाए। निश्चित रूप से ऐसा करने से पढ़ाई का बेहतर माहौल बनेगा। पढ़ाई के अलावा खेलकूद तथा अन्य रचनात्मक कार्य करवाने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित किया जाए।
बोले स्थानीय लोग
पारस्परिक स्थानांतर प्रक्रिया अच्छा विकल्प है लेकिन सालाना ट्रांसफर की प्रक्रिया भी होनी चाहिए ताकि शिक्षिकाओं को मर्जी के हिसाब से स्कूल मिलें और वे बेहतर माहौल में नौकरी कर पाएं।
-प्रिया चौहान
शिक्षिकाओं के सामने दूर-दराज के स्कूलों में पढ़ाई करवाने की एक बड़ी समस्या है। जहां स्कूल हैं वहां रहने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। शिक्षिकाओं को नजदीक वाले स्कूल आवंटित किए जाएं।
-शशि यादव
शिक्षिकाओं के सामने आवागमन के दौरान सुरक्षा की समस्या भी रहती है। स्कूल आते-जाते समय लंबा सन्नाटे भरा सफर तय करना पड़ता है जिससे असुरक्षा की भावना बनी रहती है।
-नेहा हजेला
बच्चों के लिए किताबें सत्र शुरू होने से पहले उपलब्ध हो जाएं तो अच्छा है। किताबें उपलब्ध न होने के कारण बच्चों का सिलेबस क्या करवाना है, इसकी समस्या भी बनी रहती है।
-आरती यादव
यू-डाइस पर पेन नंबर, अपार आईडी शिक्षकों के लिए सिरदर्द बन गया है। कई बच्चों के आधार न होने के चलते समस्याएं पैदा होती है। इसके लिए एक अलग से कंप्यूटर शिक्षक को नियुक्त किया जाए।
-संध्या जॉर्ज
अभिभावक बच्चों को पढ़ाने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं निभाते। सरकार ने इतनी अच्छी व्यवस्था दे रखी है। निशुल्क पढ़ाई होती है, फिर भी बच्चों को स्कूल लाने की समस्या रहती है।
-मधु प्रभाकर
सरकार ने परिषदीय स्कूलों में संसाधन उपलब्ध करवाने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। निशुल्क किताबें, निशुल्क भोजन, जूते, मोजे, स्वेटर, ड्रेस सब फ्री है फिर भी बच्चे पढ़ने नहीं आते हैं।
-सुनीता उपाध्याय
लंबे समय से स्कूलों में शिक्षकों के ट्रांसफर नहीं हो रहे हैं। ट्रांसफर न होने से दूर-दराज वाले स्कूलों में पठन-पाठन करवाने में समस्या आती है। सरकार को इसका स्थाई समाधान करना चाहिए।
-मुदिता द्विवेदी
शिक्षिकाओं से कभी वोटर लिस्ट अपडेट करवाई जाती है तो कभी चुनाव में ड्यूटी लगा दी जाती है। जब तैनाती पढ़ाने के लिए हुई है तो शिक्षिकाओं से अन्य काम नहीं लिए जाने चाहिए। जिससे पढ़ाई पर असर न पड़े।
-लता शाक्य
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