अभियंता संघ ने कहा निजीकरण स्वीकार नहीं, घाटे का कारण बताए प्रबंधन
लखनऊ। विशेष संवाददाता उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ ने बिजली कंपनियों के
लखनऊ। विशेष संवाददाता उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ ने बिजली कंपनियों के निजीकरण के फैसले का पुरजोर विरोध किया है। संघ ने कहा है कि बढ़ते घाटे के लिए सीधे तौर पर ऊर्जा प्रबंधन जिम्मेदार है। ओडिशा में पूरी तरह विफल माडल की तर्ज पर यूपी में बिजली वितरण का निजीकरण स्वीकार्य नहीं है। प्रबंधन बिजली कंपनियों के घाटे का बिंदुवार कारण बताए।
अभियंता संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर ने कहा है कि पॉवर कारपोरेशन द्वारा बिजली वितरण क्षेत्रों का ओडिशा मॉडल की तरह पीपीपी मोड पर निजीकरण किया जाना है। यह न ही उपभोक्ताओं के हित में है और न ही कर्मचारियों के हित में। निजीकरण स्वीकार्य नहीं है। घाटे और कर्ज के नाम पर पॉवर कारपोरेशन को ऋण पाश (डेब्ट ट्रैप) में बताने से पहले जरूरी है कि प्रबंधन बिन्दुवार यह बताए कि किन-किन कारणों से घाटा हो रहा है और प्रबंधन ने घाटा कम करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। संघ घाटे के कारणों पर विस्तृत चर्चा करने के लिए तैयार है। यदि अभियंताओं और कर्मचारी संघों को विश्वास में लेकर सुधार की कार्ययोजना बनाई जाए तो एक वर्ष में ही सकारात्मक परिणाम आने लगेंगे।
ओडिशा का पीपीपी माडल 17 साल में ही फेल हुआ था
उन्होंने कहा कि 1998 में ओडिशा में सभी वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल के आधार पर निजीकरण किया गया था। 17 साल बाद 2015 के फरवरी में ओडिशा के विद्युत नियामक आयोग ने पूरी तरह विफल रहने के कारण रिलायंस पावर के विद्युत वितरण के तीनों लाइसेंस रद्द कर दिए थे । स्पष्ट है कि यह प्रयोग पूरी तरीके से विफल हो गया है। कोरोना काल के दौरान एक बार पुनः ओडिशा की विद्युत वितरण कंपनियों का काम टाटा पावर को दिया गया है। अभी भी कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुए हैं और इसका उदाहरण देना या इसके उदाहरण के आधार पर उत्तर प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल पर निजीकरण किया जाना एक विफल प्रयोग को उत्तर प्रदेश में थोपना है।
निजीकरण सरकार के साथ हुए समझौते का उल्लंघन
अप्रैल 2018 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा से वार्ता के बाद हुए लिखित समझौते और अक्तूबर 2020 में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उप समिति के साथ हुए लिखित समझौते में स्पष्ट कहा गया है कि ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। उक्त समझौतों का उल्लंघन कर निजीकरण की कवायद की जा रही है तो यह सरकार के साथ हुए समझौते का उल्लंघन होगा।
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