बाघ की दहाड़ से 40 दिन से 50 हजार आबादी की दिनचर्या बदली
Lucknow News - दहशत -बाघ के खौफ से 20 गांव के 30 मजरों के लोग 19 घंटे घरों बाघ की दहाड़ से 40 दिन से 50 हजार आबादी की दिनचर्या बदली
एक तो शर्दी और उस पर घना कोहरा। ग्रामीण इलाकों में दृश्यता 100 मीटर से भी कम। ऐसे में रहमान खेड़ा में बाघ के निकले हुए 40 दिन से करीब 50 हजार आबादी की दिनचर्या बदल गई है। सबसे बड़ी मुसीबत उन गांव वालों की है, जहां पर बाघ के पगचिह्न मिले हैं। इन जगहों पर रहने वाले लोग 19 घंटे अपने घरों में कैद होकर बिताने को मजबूर हैं। आलम यह है कि सुबह 11 बजे से दोपहर चार बजे तक ही लोगों को घर से बाहर निकलने का मौका मिल रहा है। इस दरमियान चाहे खेती किसानी कर लें या बाजार चले जाएं। इन सबके बीच बच्चें और बुजुर्ग सबके सब बेबस है। स्कूल खुलने पर और बढ़ सकती है परेशानी
गनीमत है कि स्कूल बंद होने से थोड़ा राहत है। ऐसे में 15 जनवरी से स्कूल खुलने के बाद और दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। बाघ की तलाश में बरती जा रही वन विभाग की लापरवाही के चलते गांव वालों की दिनचर्या प्रभावित हो रही है। आलम यह है कि गांव और वन विभाग कर्मचारियों के बीच के बीच कई बार नोकझोंक भी हो रही है। किसान घर से खेत और बाजार के अलावा रिस्तेदारों के यहां से भी कतरा रहे है। रात 10 बजे बंद होने वाली दुकानों के शटर शाम 5 बजे गिर जा रहे।
बाघ की स्थिति पता करने पर भगा देते
दहशत के बीच बिगड़ी दिनचर्या से परेशान गांव वाले बताते है कि शुरुआत में डीएफओ और वन कर्मी हम लोगों को सतर्क करने आते थे। बाघ की लोकेशन के साथ उसके आसपास से न गुजरने की नसीहत देते थे। अब ये टीमें कभी-कभी ही आती हैं। हम लोग जब उनके पास जानकारी करने पहुंचते हैं तो झिड़ककर मौके से भगा देते हैं। बाघ के साथ अब मौसम ने भी हमारी परेशानी बढ़ा दी है।
12 ट्रैप कैमरा, एक ड्रोन, चार पिंजरे, दो हाथी पर बाघ भारी
बाघ को पकड़ने के लिए 12 ट्रैप कैमरा, एक ड्रोन, चार पिंजड़े और दो मादा हाथी पर बाघ भारी पड़ रहा है। बाघ को पकड़ने के लिए किए गए ढेरों इंतजाम नाकाम साबित हो रहे है। वर्ष 2012 में आए बाघ 108 दिनों तक लोगों को छकाता रहा। इस दौरान ट्रैंकुलाइज करके बाघ को रिस्क्यू किया गया था।
फलपट्टी में आम की फसल बर्बाद होने का डर
बाघ के दहशत के बीच अब बागवानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखने लगी है। बागवानी का काम कर रहे राशिद बतातें है कि जनवरी के आखिरी सप्ताह में आम के बौर आने लगते है। इसके पहले बागों की धुलाई और जोताई करनी होती है। बाघ के डर से करीब 50 गांवों के आसपास आम फलपट्टी में फसल बर्बाद होने का खतरा बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में मजदूर भी फलपट्टी में काम करने से दूर भाग रहे है।
ग्रामीण बोले-गाय-बैलों को चारे का और खुद की रोजी-रोटी का संकट
कुशमौरा गांव के जितेंद्र रावत बताते है कि गांव में जनजीवन तहस-नहस हो गया है। बाघ के डर से हम लोगों को दिन भर में तीन से चार घंटे ही बाहर के कार्यों के लिए मिल रहे हैं। गाय-बैलों को घर के अंदर चारा खिलाने और सुरक्षित रखने के साथ ही रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो रहा है। गुरुदीन खेड़ा के दिवाकर सिंह बताते है कि किसी काम से चले गए तो लौटने की चिंता लगी रहती है। कोहरे में जब दिन में नहीं दिख रहा तो रात में क्या दिखेगा। आजमपुर निवासी नीरज भारती बताते है कि तकरीबन एक महीने बीत गया है। कोहरा बढ़ता जा रहा है। जानवरों का चारा लेने और लकड़ी के लिए भी गांव के लोगों को दूर जाना पड़ता है।
वर्जन
कोहरे में खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में गांव वालों को और सतर्कता बरतनी होगी। वे ग्रुप में लाठी-डंडों के साथ ही निकलें। गांव वालों की सुरक्षा के लिए टीमें लगातार कार्य कर रही हैं।
सितांशु पाण्डेय, डीएफओ अवध
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