रहमान खेड़ा में मचान के पास से गुजरा बाघ, बैठे रह गए विशेषज्ञ
Lucknow News - दहशत -एक माह से रहमान खेड़ा जंगल से लेकर आबादी के बीच घूम रहा बाघ
काकोरी के बहरू गांव में शुक्रवार सुबह खेत में बाघ के पगचिह्न फिर पाए गए। यह पगचिह्न मचान के पास मिले, जहां से बाघ गुजरा था। लेकिन ट्रैंकुलाइज के लिए बैठे विशेषज्ञ बाघ को देख ही नहीं पाए। इस दौरान बाघ ट्रैप कैमरे में कैद हुआ। वॉच टावर बनाने, वन कर्मियों की कॉम्बिंग टीम बनाने से लेकर विशेषज्ञों के जरिए ट्रैंकुलाइज करने की योजना धरी की धरी रह गई। जंगल में बाघ के 31 दिन बीत जाने के बाद भी वन विभाग की 30 सदस्यों की टीम और तीन विशेषज्ञ भी बाघ पकड़ने में नाकाम साबित रहे। शुक्रवार सुबह साढ़े सात बजे बेल वाले बाग में पगचिह्न मिले। जबकि इसी बाग में मचान से विशेषज्ञ निगरानी कर रहे थे। फिर भी बाघ को नहीं देख पाए या ट्रैंकुलाइज नहीं कर पाए। डीएफओ ने बताया कि रात के समय बाघ की चहलकदमी पाई गई थी, लेकिन रात के समय बाघ को ट्रैंकुलाइज नहीं किया जा सकता है।
डीएफओ डॉ. सितांशु पाण्डेय ने बताया कि शुक्रवार की सुबह रहमान खेड़ा संस्थान के बेल वाले ब्लॉक में ताजे पगचिह्न पाए गए है। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक रेणु सिंह ने संस्थान में पहुंचकर दुधवा से आयी दोनों मादा हाथियों को देखा और दोनों मचानों और सीसीटीवी कैमरों सहित अन्य उपकरणों का जायजा लेते हुए टाइगर रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी टीम को जरूरी दिशा निर्देश दिए।
हिंसक जानवर ने गाय का शिकार किया
गांव में आबादी के किनारे राजकुमार के लहसुन के खेत में हिंसक जानवर ने गाय को दौड़ाकर शिकार किया और मारकर दस मीटर तक शिकार को घसीटकर ले गया। शिकार के पिछले हिस्से का कुछ भाग खाकर वह भाग निकला। ग्रामीणों की सूचना पर पहुंचे वन विभाग के कर्मचारियों ने जांच पड़ताल की। हालांकि वन विभाग ने बाघ के शिकार करने और पगचिह्न होने की पुष्टि नहीं की है।
20 गांव में बाघ की दहशत से ग्रामीण बेबस
जंगल में आये बाघ को 31 दिन बीत चुके है। अब तक 20 गांव में 50 हजार की आबादी दहशत में है। बाघ प्रभावित गांव से स्कूल जाने वाले बच्चों को ले जानी वाली स्कूल वैनों के चालकों ने सुरक्षा की दृष्टि से वैन के गेट की खिड़की में स्टील की रॉड लगवा ली है।
सूखे पड़े बेहता नाला में छोड़ा जाए पानी
रसूलपुर ग्राम प्रधान दिनेश विश्वकर्मा सहित अन्य ग्रामीणों ने बताया कि इस समय बेहता नाला सूखा पड़ा है। इसकी वजह से बाघ नाले को पार कर ग्रामीण क्षेत्रों में घूम रहा है। अगर नाले में पानी छोड़ दिया जाए तो बाघ नाला पार कर गांव में नहीं आ पायेगा। इससे ज्यादातर गांव में बाघ की दहशत खत्म हो जाएगी।
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थकी हाथियों से नहीं हो सकी कॉम्बिंग, आज से बाघ की घेराबंदी करेंगी
-दो हाथियों के साथ चार प्रशिक्षित महावत के साथ डाक्टर भी हाथी पर बैठेंगे
-कर्नाटक में प्रशिक्षित होकर आए हाथी बाघ का पीछा करने में महारत हासिल
काकोरी,संवाददाता।
दुधवा टाइगर रिजर्व पलिया लखीमपुर खीरी से मादा हाथी डायना और सुलोचना रहमान खेड़ा संस्थान में गुरुवार देर रात आ गई। दोनों मादा हाथियों की उम्र 35 वर्ष है। दुधवा से दोनों हाथियों के साथ चार प्रशिक्षित महावत इश्तियाक,अयूब, महताब और राहुल है। एक हाथी पर महावत के साथ एक डॉक्टर बैठेगा। दोनों हाथी अधिकतम चार घंटे तक कॉम्बिंग कर सकते है।
सुलोचना 2008 में पश्चिम बंगाल से और डायना कर्नाटक से 2018 में प्रशिक्षित होकर आई है। दोनों हाथी पीलीभीत, महेशपुर बिजनौर की नगीना रेंज और किसनपुर रेंज में चार से पांच टाइगर रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल हो चुकी है। अपर मुख्य वन संरक्षक रेणु सिंह ने बताया कि ट्रक में 12 घंटे सफर करने के बाद दोनों हाथी आये है। अधिक थकान के कारण शुक्रवार को कॉम्बिंग नही की है। शनिवार की सुबह से दोनों हाथियों की मदद से कॉम्बिंग की जाएगी।
बाघ को सूंघकर चिंघाड़ती है मादा हाथी
महावत अयूब ने बताया कि दोनों हाथी विशेष रूप से प्रशिक्षण हैं। नर हाथी बाघ को देखकर भड़क जाता है और बाघ का पीछा कर लेता है, जबकि मादा हाथी बाघ की गंध सूंघकर बाघ के जाने के रास्ते का पीछा कर चिंघाड़ करते हुए पैरों से मिट्टी रगड़ती है। इसलिए टाइगर रेस्क्यू में मादा हाथियों का प्रयोग किया जाता है। अयूब के अनुसार दोनों मादा हाथियों की खुराक में तीन से चार कुंतल गन्ना, एक किलो गुड़, दो सौ ग्राम सोयाबीन, एक किलो चना और दस किलो चावल होता है।
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