गुर्दे में चोट से ब्लड प्रेशर का खतरा
सड़क हादसों में पेट में चोट लगने से गुर्दे में चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे यूरीन में खून आ सकता है। केजीएमयू के डॉ. एचएस पहवा ने बताया कि समय पर इलाज और निगरानी जरूरी है। मोबाइल पर बात करना...
कई बार सड़क हादसे में पेट में चोट आ जाती है। इसकी वजह से यूरीन से खून आने लगता है। उस वक्त डॉक्टर खून आने के कारणों का पता लगाकर इलाज कर देते हैं। लेकिन कई बार चोट गुर्दे ´पर आ जाती थी। इसे नजरअंदाज करने पर सेकेंड्री हाईपरटेंशन (ब्लड प्रेशर) का खतरा बढ़ जाता है। यह जानकारी केजीएमयू जनरल सर्जरी विभाग के डॉ. एचएस पहवा ने दी। वह शनिवार को केजीएमयू के अटल बिहारी वाजपेई साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में ट्रॉमा सर्जरी विभाग की तरफ से आयोजित सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। डॉ. एचएस पहवा ने कहा कि पेट के निचले हिस्से में चोट की वजह से तमाम तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। इसमें यूरीन से खून आ सकता है। पेशाब की नली, गुर्दे आदि में भी चोटें आ सकती हैं। सभी अंगों का पुख्ता इलाज व आगे एक से दो साल तक निगरानी जरूरी है। क्योंकि गुर्दे में चोट उस समय लगता है ठीक हो गई। लेकिन चोट की वजह से मरीज का ब्लड प्रेशर गड़बड़ा जाता है। लिहाजा समय-समय पर ब्लड प्रेशर की जांच कराएं।
बिना ऑपरेशन इलाज मुमकिन
डॉ. पहवा ने कहा कि हादसे में घायलों के गुर्दे में चोट का पहले इलाज कठिन था। बड़ा चीरा लगाकर ऑपरेशन करना पड़ता था। कई बार रक्तस्राव की दशा में गुर्दा निकालना पड़ता था। अब अल्ट्रासाउंड व सिटी गाइडेड इम्बुलाइजेशन कर रक्तस्राव को रोका जा सकता है। इसमें महीन तार डालकर इलाज किया जाता है। नतीजतन मरीज को कम समय अस्पताल में रुकना पड़ता है। मरीज को ऑपरेशन का दर्द भी नहीं झेलना पड़ता है।
मोबाइल पर बात कर वाहन चलाना हादसे का बड़ा कारण
केजीएमयू ट्रॉमा सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. संदीप तिवारी ने बताया कि सड़क हदासे की बड़ी वजह मोबाइल पर बात करना है। ट्रॉमा सेंटर में आने वाले मरीज व उनके तीमारदारों से घटना की जानकारी ली जाती है जिसमें वह मोबाइल पर बात करने को कारण बताते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार सामने से आ रहे वाहन चालक फोन पर बात करते हुए गलत दिशा में गाड़ी मोड़ देते हैं। जिससे हादसा हो जाता है। गाड़ी में बैठकर लोग बात करते हैं जिससे चालक का मन बट जाता है। जो हादसे की वजह बन जाता है।
समय पर इलाज जरूरी
डॉ. समीर मिश्र ने कहा कि समय पर इलाज से ट्रॉमा के गंभीर मरीजों की जान बचाई जा सकती है। मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराने के लिए जिलास्तर पर मेडिकल कॉलेज व ट्रॉमा सेंटरों की स्थिति को और बेहतर करने की जरूरत है। ताकि मरीजों को घटना के तुरंत बाद प्राथमिक इलाज व जांचें हो सके। समय-समय पर डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ को ट्रॉमा मैनेजमेंट का प्रशिक्षिण दिया जाना चाहिए।
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