अपने-अपने दावों पर अड़े रहे दोनों, अगले चरण की वार्ता कल
Lucknow News - पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बीच पहले दौर की बातचीत बेनतीजा रही। प्रबंधन ने निजीकरण के पक्ष में तर्क रखे, जबकि संघर्ष समिति ने अतिरिक्त आय के सुझाव दिए। अगर...

- पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बीच पहले दौर की बातचीत बेनतीजा - कॉरपोरेशन ने रखे निजीकरण के पक्ष में तर्क, संघर्ष समिति ने बताए अतिरिक्त आय के रास्ते, दिया प्रेजेंटेशन लखनऊ, विशेष संवाददाता निजीकरण की प्रक्रिया के बीच पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बीच सोमवार को शक्ति भवन में पहले दौर की बातचीत बेनतीजा रही। कॉरपोरेशन और संघर्ष समिति अपने-अपने दावों पर टिके रहे। कॉरपोरेशन निजीकरण के पक्ष में तर्क रखता रहा जबकि संघर्ष समिति इसे औचित्यहीन बताते हुए अतिरिक्त आय के रास्ते बताती रही। कर्मचारियों पर हुई कार्रवाई के संबंध में बुधवार को अगले दौर की बातचीत होगी।
गर्मियों में आंदोलन जोर पकड़ने के लिहाज से इस बातचीत को अहम माना जा रहा है। अगर दोनों पक्षों में बात नहीं बनती है तो बुधवार शाम से बिजली कर्मचारी 'वर्क टू रूल' अभियान शुरू कर सकते हैं। वार्ता में प्रबंधन की तरफ से चेयरमैन डॉ. आशीष कुमार गोयल के अलावा एमडी पंकज कुमार, निदेशक कमलेश बहादुर सिंह, जीडी द्विवेदी व अन्य शामिल थे। वहीं, संघर्ष समिति की तरफ से शैलेंद्र दुबे के अलावा जितेंद्र सिंह गुर्जर, महेंद्र राय, पीके दीक्षित, सुहेल आबिद, प्रेम नाथ राय आदि उपस्थित रहे। कॉरपोरेशन ने रखे ये तर्क पावर कॉरपोरेशन अध्यक्ष डॉ. आशीष कुमार गोयल ने कहा कि प्रदेश का ऊर्जा वितरण क्षेत्र घाटे में है। ऊर्जा की आपूर्ति का खर्च और राजस्व का अंतर बढ़ रहा है। इसकी भरपाई शासन सब्सिडी और लॉस फंडिंग से कर रही है। वर्ष 2024-25 यह 46,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की हो जाएगी और वर्ष 2025-26 इसके 50-55,000 करोड़ रुपये हो जाने की आशंका है। वसूली के प्रयास असफल रहे। कभी बिल न जमा करने वाले और ज्यादा बड़े बकायेदारों से अपेक्षित वसूली नहीं हो पा रही है। बिजली खरीद की लागत बढ़ने के बाद भी बिजली की दरें पांच साल में नहीं बढ़ी हैं। पांचों डिस्कॉम में पूर्वांचल और दक्षिणांचल की वाणिज्यिक स्थिति बेहद खराब है। लिहाजा इन दोनों डिस्कॉम में सुधारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं। इससे कर्मचारियों के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा। कॉरपोरेशन ने बिजली कर्मचारियों से आंदोलन न करने की भी अपील की है। संघर्ष समिति ने ये बताया संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि निजीकरण का प्रयोग आगरा, ग्रेटर नोएडा और ओडिशा में विफल हो चुका है, इसलिए इसे यूपी की जनता पर न थोपा जाए। संघर्ष समिति ने प्रेजेंटेशन में ऊर्जा निगमों में घाटे की वजहें गिनाईं और आय बढ़ाने के सुझाव दिए। घाटे की वजहों में महंगी बिजली खरीद करार व सरकारी विभागों पर राजस्व बकाया शामिल था। महंगी बिजली खरीद करारों से विद्युत वितरण निगमों को उत्पादन निगम की तुलना में 9521 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। कई ऐसे करार भी हैं, जिनसे वर्ष 2024-25 में एक भी यूनिट बिजली नहीं खरीदी गई और 6761 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। सरकारी विभागों पर 14 हजार करोड़ रुपये बकाया है। संघर्ष समिति ने बिजली के इंफ्रास्ट्रक्चर से कई हजार करोड़ रुपये के नॉन टैरिफ आय के भी सुझाव दिए। मसलन, उपकेंद्रों पर चार्जिंग स्टेशन की स्थापना, अनुपयोगी जमीनों पर वाणिज्यिक गतिविधियां, बैटरी स्टोरेज की स्थापना व छतों पर सोलर पैनल लगाने जैसे सुझाव शामिल थे।
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