ब्रेन डेड मरीजों के अंगदान से घट सकती है प्रत्यारोपण की वेटिंग
अंगदान जागरूकता बढ़ाने के लिए यूपी में अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और जिला प्रशासन में एक अलग इकाई बनाने की आवश्यकता है। पीजीआई के सेमिनार में बताया गया कि हर साल 50 हजार मरीजों को गुर्दा और लिवर...
- अंगदान जागरूकता के लिए अस्पतालों, मेडिकल कॉलेज और जिला प्रशासन की एक अलग इकाई का गठन हो लखनऊ, संवाददाता।
पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. नारायण प्रसाद ने परिसर में हुए एक सेमिनार में कहा कि उप्र. में हर साल करीब 50 हजार मरीजों को गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। इतनी ही संख्या में लिवर प्रत्यारोपण की भी मांग है। हर साल करीब 23 हजार लोग सड़क हादसों में जान गंवा देते हैं। इनमें से एक फीसदी यानी 230 लोग ब्रेन डेड हो जाते हैं, जिनका तुरंत अंगदान कराया जा सकता है। पर, प्रदेश में अंगदान के प्रति जागरूकता की कमी है। ऐसे में यह बहुत जरूरी हो गया है कि जिला प्रशासन, हर अस्पताल व मेडिकल कॉलेज में एक ऐसी इकाई का गठन करे, जो कि ब्रेन डेड मरीजों के परिवारीजनों से बेहतर तालमेल बिठाकर उन्हें तुरंत ही अंगदान के लिए प्रेरित करे। इससे गुर्दा, लिवर व दूसरे अंगों के प्रत्यारोपण की संख्या बढ़ेगी। प्रत्यारोपण की वेटिंग घटेगी।
पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग और लखनऊ नेफ्रोलॉजी सोसाइटी ने यूरोलॉजी विभाग के साथ मिलकर उप्र. और उत्तरी भारत में ब्रेन डेड मरीज के अंगदान की स्थिति पर सेमिनार का आयोजन किया। डॉ. नारायण प्रसाद ने कहा कि अस्पतालों, चिकित्सा संस्थानों के आईसीयू में सबसे अधिक ब्रेन डेड मरीज पहुंचते हैं। इसलिए आईसीयू की टीम की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह अस्पताल प्रशासन को तुरंत ही ब्रेन डेड मरीज के बारे में बताकर उनके परिवारीजनों के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित करें। एक ब्रेन डेड मरीज से दो गुर्दे, एक लिवर के साथ दूसरे जरूरी अंग उन मरीजों के लिए काम में आ सकते हैं, जो कि लंबे समय से प्रत्यारोपण के लिए वेटिंग में रहते हैं। साल भर में 230 ब्रेन डेड मरीजों से 460 गुर्दा, 230 लिवर और हृदय का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
तमिलनाडु मॉडल की तरह काम करें
अतिथि वक्ता डॉ. एन. गोपालकृष्णन ने तमिलनाडु के जिला प्रशासन और अस्पतालों के सामंजस्य के बारे में विचार साझा किए। बताया कि तमिलनाडु में ब्रेन डेड मरीज मिलने पर जिलाधिकारी उनके परिवारीजनों के पास खुद जाकर संपर्क और अंगदान के लिए जागरूक करते हैं। सोटो भी इसी तरह से सक्रिय भूमिका निभाता है। हर प्रदेश में इस तरह से सोटो, जिला प्रशासन और चिकित्सा संस्थान की अहम भूमिका होनी चाहिए। इस तरह की गतिविधियों से आमजन में विश्वास बढ़ता है। सेमिनार में पीजीआई के प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. संजय सुरेखा, डॉ. एमएस अंसारी, अपोलोमेडिक्स के डॉ. अमित गुप्ता, मेदांता के डॉ. मनमीत, रीजेंसी अस्पताल के डॉ. दीपक दीवान आदि ने विचार व्यक्त किए।
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