अब मछलियों को बीमारियों से बचा सकेंगे मत्स्य पालक
-राजधानी में मत्स्य रोग निगरानी प्रणाली कार्यक्रम का बना नोडल कार्यालय अब मछलियों को बीमारियों से बचा सकेंगे मत्स्य पालकअब मछलियों को बीमारियों से बचा सकेंगे मत्स्य पालकअब मछलियों को बीमारियों से बचा...
-राजधानी में मत्स्य रोग निगरानी प्रणाली कार्यक्रम का बना नोडल कार्यालय-तेलीबाग स्थित राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो परिसर में होती जांचलखनऊ। पल्लव शर्माप्रदेश की विभिन्न नदियों, तालाबों, वाटरपार्कों में मत्स्य पालन का काम करने वाले मत्स्य पालक बरसात में होने वाली बीमारियों से अपनी मछलियों को बचा सकेंगे। मछलियों में फैलने वाली महामारी को भी रोका जा सकेगा। इसके लिये राजधानी में वैज्ञानिक दिन-रात जुटे हैं। तेलीबाग स्थित राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो परिसर में इसके लिये मत्स्य रोग निगरानी प्रणाली कार्यक्रम का नोडल कार्यालय बना है। भारत सरकार की योजना के तहत मछलियों में फैलने वाली बीमारियों से बचाव, मत्स्य पालकों को जागरूक करने, रोगों की जांच कर उनकी दवा बनाने आदि काम किया जा रहा है। वर्तमान में कोरोना संक्रमण के दौर में इसकी महत्ता इसलिये बढ़ जाती है कि जलीय जन्तुओं को किसी भी प्रकार की महामारी की चपेट से बचाया जा सके। कार्यक्रम की निगरानी करने वाले वैज्ञानिक डॉ. पीके प्रधान और डॉ. नीरज साहू बताते हैं कि मछलियों में बैक्टीरिया, वायरस या फंगस से बीमारियां फैलती हैं। इनमें पानी की गुणवत्ता की भी अहम भूमिका है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में विभिन्न जिलों में तालाबों व नदियों में मछलियों के बीमार होने पर उनकी जांच नोडल कार्यालय पर की जाती है। उनके रोगों की पहचान और उसका उपचार ढूंढा जाता है। बीमारी की कैसे करें पहचानमछलियों की धीमी वृद्धि, कम जीवित रह पाना, लम्बे समय तक निरंतर मृत्यु दर, अत्यधिक मृत्यु दर, ज्ञात बीमारियों की व्यापकता में वृद्धि, किसी अज्ञात रोग की घटनाबीमार मछली को प्रयोगशाला ला सकते वैज्ञानिकों ने बताया कि जांच के लिये जीवित मछली को भेजा जाना चाहिये। मछलियों को अलग-अलग पॉलीथीन में डालकर एवं पॉलीथीन को बर्फ में रखकर बीमारी के ब्योर के साथ प्रयोगशाला में लाया जा सकता है। सामान्यत: पांच मछलियां रोग का पता लगाने व बीमारी की जांच के लिये बहुत होते हैं।
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