बोले लखनऊ:रोजी कीड़े बदरंग कर दे रहे मलिहाबादी आम
Lucknow News - मलिहाबाद की फल पट्टी में दशहरी आम के बागवान कीड़ों और महंगी कीटनाशक दवाओं से जूझ रहे हैं। हर साल फसल में नुकसान हो रहा है और स्थानीय मंडी में उचित दाम नहीं मिल रहा।
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करीब 19100 हेक्टेयर में फैली फल पट्टी की अपनी दिक्कतें हैं। दुनिया तक दशहरी आम के लिए विख्यात फल पट्टी के बागवान आम के कीड़ों से जंग लड़ रहे हैं। हर वर्ष फसल खराब हो रही है। उत्पादन लागत बढ़ती जा रही है। स्थानीय मंडी में उचित दाम नहीं मिलता। प्रोसेसिंग चार्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। फसल में कीटों, रोग लग जाने से निर्यात लायक उत्पादन नहीं हो पाता। इससे आम का उचित मूल्य नहीं मिलता। हिन्दुस्तान टीम ने बागवानों के बीच उनकी दिक्कतें जानने की कोशिश की। बागवानों ने फसल को बचाने की गुहार लगाई। सभी का कहना था कि आम की फसल बचाने के लिए सरकारी स्तर पर भी प्रयास हों। कीटनाशक दवाएं महंगी हो गई हैं। बौर बचाना मुश्किल हो जाता है। फल लग गए तो कीट दागी कर देते हैं। लिहाजा बाजार में दाम नहीं मिल पाता। सरकारी मदद मिले, कीट पतंगों पर रोक लगे तो फल पट्टी अपने उत्पाद की महंक दुनिया तक पहुचा सकती है।
करीब 40 वर्ष पहले 19884 में मलिहाबाद को फल पट्टी घोषित किया गया था। इसके दायरे में मलिहाबाद, बक्शी का तालाब, काकोरी तथा माल ब्लॉक के करीब 300 गांव शामिल हुए। दशहरी आम का उत्पादन शुरू हुआ। सरकार की ओर से ढेरों सुविधाएं देने के वादे हुए। फसल सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए। हर वर्ष यहां फसल खराब हो जाती है। सालभर के सपने चकनाचूर हो जाते हैं। फलों का राजा आम कीड़ों के चलते बदरंग होता जा रहा है।
लखनऊ के मलिहाबाद समेत प्रदेश के 18 जनपदों में मैंगो बेल्ट है। सबसे बड़े मलिहाबाद के मैंगों बेल्ट की हिस्सेदारी 22 फीसदी है। देश भर में आम का उत्पादन 184 लाख मैट्रिक टन है। इसमें यूपी की हिस्सेदारी 40 से 42 लाख मैट्रिक टन बताई गई है। इसमें मलिहाबाद फल पट्टी की बड़ी हिस्सेदारी है। फसल में रोग लगने, कीड़ों के हमले से बदरंग हो जाती है। यह भी कोई नहीं बताता कि कौन सी दवा का इस्तेमाल किया जाए। दुकानदार ही कृषि रक्षा विशेषज्ञ की तरह काम करता है। फसर सुरक्षा की दवाइयों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती हैं। जागरूकता के नाम पर बंद कमरे में गोष्ठी आयोजित की जाती है। जहां उद्यान विभाग तय लिस्ट से लोगों को बुलाकर जागरूक कर देता है।
बागवानों में जागरूकता की कमी से फसल चौपट
मलिहाबाद फल पट्टी के बागवानों की समस्या बड़ी समस्या कीड़े है। इनसे निपटने के लिए कौन सी कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल किया जाए, इसकी जानकारी किसानों को नहीं है। आम में कौन सा रोग लगने वाला है, इसके लिए कोई परामर्श केंद्र भी नहीं है। बंद हो चुकी दवाइयां उन्हें बाजार नए रैपर में मुहैया करा देता है। दवाइयों की सैंपलिंग नहीं होने से बाजार में नकली की भरमार है। कीटनाशक की दुकानें तो खुल गई है लेकिन मर्ज की पहचान दुकानदारों को भी नहीं है। विभाग ऐसे दुकानदारों को लाइसेंस देकर बागवानों को कीटनाशक दवाइयों के नाम पर ठगे जा रहे है। इन्हीं दवाइयों का इस्तेमाल कर किसान आम के बाग चौपट कर ले रहे है। कीड़ों से बचने के लिए कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल ज्यादा होने पर नकली दवाओं की बिक्री शुरू होने लगी। इससे फसल में नए-नए रोग पैदा होने लगे। इन्हीं रोग से लड़ते-लड़ते मैंगो बेल्ट अपनी पहचान खोता नजर आ रहा है। नकली दवाओं के छिड़काव से उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है।
-मलिहाबाद फल पट्टी क्षेत्र-19100 हेक्टेयर में फैला हैं
-उत्तर प्रदेश में मलिहाबाद समेत 18 मैंगो बेल्ट घोषित है
-आम के बागवान से करीब 70 हजार लोग सीधे जुड़े है
-आम के बागवान से 80 फीसदी स्थानीय लोगों का रोजगार है
समस्याएं
-आम के रोग से लड़ने के लिए के लिए कोई व्यवस्था नहीं
-समय-समय पर आम के उपज को बेहतर बनाने के उपाय नहीं
-दुकानों पर दवाईयों की बिक्री की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है
-बिना लाइसेंस दुकानों पर दवाईयों की बिक्री पर रोक लगाई जाएं
-स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव बंद होने से व्यापारियों नहीं आ रहे है
उपाय
-हर ब्लाक में परामर्श केंद्र खोलकर किसानों को जागरूक करें
-कीट विशेषज्ञों के सलाह पर एप और हेल्पलाइन नंबर जारी हो
-कृषि रक्षा इकाई और लैब खोलकर दवाई की जांच की जाएं
-समय-समय पर दुकानों पर बेचे जा रहे दवाइयों की जांच हो
-मलिहाबाद स्टेशन पर पूर्व की भांति तीन ट्रेनों का ठहराव हो
इन 10 समस्याओं से वर्षो से जूझ रहे बागवान
-देश भर के व्यापारियों के आने जाने के लिए साधन नहीं है।
-मैंगो बेल्ट सिर्फ बड़े आम की पेटी लेता है छोटे आम नहीं
-स्थानीय फल मंडी बनकर तैयार, उद्धघाटन का इंतजार है
-समय रहते नहरों में पानी नहीं आने से फसल चौपट हो रहा
-आम की खपत के लिए जूस कारखाना से जूझ रहे बागवान
-आगरा एक्सप्रेस से 7 किमी. जा सकते है उतर नहीं सकते
-गोष्ठी-जागरूकता अभियान में बागवानों की हिस्सेदारी नहीं
-मलिहाबाद में दवाई के काले कारोबार को बंद किया जाए
-मौसम आधारित फसल बीमा योजना लागू करने की मांग
-मुर्गी पालन योजना बंद करें, ताकी कीड़ों का आना बंद हो
आम के बागवान कई समस्याओं से जूझ रहे है। इनकी समस्याएं समय-समय पर जिम्मेदारों तक पहुंचाया जाता है। कीटनाशक दवाओं की कालाबाजारी रोकने और आम के सीजन में नहरों में पानी छोड़ने की जरूरत है। समय से पानी नहीं आने पर आम की उपज प्रभावित होती है। ब्लॉक और ग्राम पंचायत स्तर पर नलकूप की जरूरत है।
अखिलेश सिंह, अंजू
प्रधान संघ के प्रतिनिधि, मलिहाबाद
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फरवरी से अप्रैल आम के लिए फसल सुरक्षा का समय है। कीट से लड़ने के लिए रसायन के इस्तेमाल की मात्रा को लेकर किसानों को जागरूक किया जाएगा। तीन टीमें काकोरी, माल, मलिहाबाद के लिए बनाई गई है। रसायन बेचने वाले दुकानदारों से कैशमैमो देना अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि शिकायत पर रसायन की जांच की जा सके। बागवान जब चाहें फसल सुरक्षा के बारे में बात कर सकते हैं।
महेश चंद्र, कृषि रक्षा अधिकारी, लखनऊ
रोजी नामक कीड़े से आम की फसल चौपट
कोविड के बाद मलिहाबाद में एक नया कीट रोजी नामक थ्रप्स आया जो आम को बदसूरत बना रहा है। यह कीट किसी रसायन के छिड़काव से भी नहीं मरता। फसल सुरक्षा से जुड़े अधिकारी इससे निपटने के उपाय भी नहीं खोज पा रहे हैं। हर छोटा और बड़ा बागवान रोजी कीड़े से परेशान है। यह कीट आम को खरोज कर खराब कर देता है। इसका बाजार में कोई मूल्य नहीं मिलता। नई कोमल पत्तियों के रस को कीट रोजी चूस लेता है, जिससे छोटे आम के फल गिर जाते है। बड़े आम के फलों पर खुरदरे धब्बे आ जाते है।
नकली कीटनाशक से बदरंग हो रहा फलों का राजा
नकली कीटनाशक के छिड़काव से आम बदरंग हो जाता है। आम दागी हो जाने के कारण बाजार में कोई मोल नहीं है। मलिहाबाद में बीते चार से पांच वर्षो के दौरान कीड़ों की फौज के आगे उद्यान विभाग और केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। असली और नकली की पहचान के लिए कोई सिस्टम नहीं है। पूरे इलाके में सिर्फ आम का उत्पादन होता है। सालभर इंतजार करने के बाद यह हाल हो जाता है।
मैंगो बेल्ट के नियमों से जकड़े है आम के बागवान
मलिहाबाद में मैंगो बेल्ट बनाने के पीछे नियमों का बड़ा रोड़ा हैं। इस नियम के तहत मैंगो बेल्ट में आम के बागवान के अलावा और कोई धंधा नहीं किया जा सकता। मसलन, कोई किसान आम का धंधा छोड़कर कोई दूसरा अपनाना चाहता है तो नहीं कर सकता। जबकि अन्य क्षेत्रों में मैंगो बेल्ट के नियम लागू नहीं होते है। ऐसे क्षेत्रों में कारखाना, फैक्टी, कोल्ड स्टोर समेत कई व्यवसायिक गतिविधियां चल रही है। मलिहाबाद के लोगों को आम के उत्पादन के अलावा कोई दूसरा काम करने पर रोक है। बागवान अपने खेत को बेच नहीं सकते है। खेतों पर कोई दूसरा व्यवसाय नहीं कर सकते है। अन्य कोई फसल उगा नहीं सकते है।
आम नहीं, खास किसानों का लिया जाता है आम
प्रशासन की ओर से रहमान खेड़ा में मैंगो पैक हाउस बनाया गया है। यहां भी किसानों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। किसानों का कहना है कि मैंगो पैक हाउस में सामान्य किसानों का नहीं, बल्कि कुछ खास का आम भी खरीदा जाता है। जब कोई सामान्य किसान फसल लेकर जाता है, उसमें इतने नुक्स निकाल दिए जाते हैं कि उसे वहां आम बेंचने में फायदे के बजाय नुकसान उठाना पड़ता है। बड़े फल उत्पादकों के दाम आसानी से ऊंचे दामों में खरीद लिए जाते हैं।
मंडी बनी पर फुटपाथ पर बेंचते हैं आम
बागवानों के कई दर्द हैं। किसानों का कहना है कि मलिहाबाद में मंडी तो करीब आठ साल पहले ही बन गई थी, लेकिन अभी तक उसका संचालन नहीं किया गया है। ऐसे में फसल तैयार होने पर किसानों को मंडी के पास सड़क के किनारे फुटपाथ पर ही आम बेचने पड़ते हैं। आम के निर्यात के लिए बागवानों को कोई खास सुविधा नहीं दी जा रही है, जबकि मलिहाबाद का आम काफी मशहूर हैं और विदेशों तक भेजा जाता है। किसानों को बाहर निर्यात करने की अच्छी सहूलियत नहीं होने से मनमुताबिक फायदा नहीं मिल पाता है।
बाघ के विचरण से खौफजदा बागवान
काफी समय से मलिहाबाद व उसके आसपास इलाके में बाघ का खौफ है। कई मवेशियों को बाग अपना शिकार बना चुका है। ऐसे में क्षेत्र के लोग काफी परेशान और डरे हुए हैं। कई बागवान भी बाघ के खौफ से अपनी बाग की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं। कुछ बाग मालिकों ने बताया कि अब आम में बौर आने लगे है। बागों में दवा छिड़काव व धुलाई का समय है, लेकिन बाग में जंगली जानवर बाघ का खतरा है। जिससे किसान बौर पर दवा का छिड़काव नहीं कर पा रहे हैं।
17 बागवानों से बातचीत
बागवानों के लिए छिड़काव करने वाली दवाओं की दिक्कत रहती है। पैसा खर्च करने के बाद भी असली दवाएं नहीं मिलती हैं। किसानों में दवाओं को लेकर कोई अनुभव नहीं है। जिससे वह नुकसान उठाते हैं। सरकार को बागवानी से जुड़ी दवाओं की व्यवस्था करनी चाहिए।
हरिशंकर शर्मा
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किसानों को कोई बताने वाला नहीं है कि कौन दवाएं छिड़की जाएं और किन दवाओं से बचना चाहिए। जानकारी के अभाव में किसान असली की जगह नकली दवाएं इस्तेमाल करते हैं। सरकार को चाहिए किसानों के लिए जागरुकता शिविर आयोजित किए जाएं।
जहीर अहमद खान
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कोई ऐसा लैब नहीं है। जहां किसान यह तय कर पाएं, कि कौन सी दवाएं असली हैं और कौन सी नकली। सरकार को चाहिए या तो छिड़काव के लिए दवाओं की व्यवस्था कराए, या फिर लैब बनाए, जिससे किसानों को दवाओं के बारे में सही जानकारी हो सके।
सुनील शर्मा
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बागवानों के पास छिड़काव करने वाली दवाओं के बारे में जानकारी का बड़ा अभाव है। इससे किसान गलत दवाओं का इस्तेमाल कर लेते हैं और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। सरकारी भी कोई मदद नहीं करती।
प्रमोद पाठक
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ब्रांडेड दवाओं का अभाव है। दुकानदार किसानों को ब्रांडेड दवाएं बता कर नकली दवाएं थमा देते हैं। इससे किसानों का पैसा भी खर्च होता है। साथ ही ढंग की दवाएं नहीं मिल पाने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है।
सुनील सिंह
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सीजन पर आम की ट्रांसपोर्टिंग चुनौतीपूर्ण हो जाती है। मलीहाबाद से दिल्ली, मुंबई, पंजाब आदि आम भेजा जाता है। बाहर भेजने के लिए ट्रांसपोर्टिंग की अच्छी व्यवस्था नहीं है। मलीहाबाद से बाहर आम भेजने के लिए ट्रेन की बोगी आदि बुक करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
लल्ला यादव
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आम की अच्छी पैदावार के लिए दवाओं की जानकारी होना बहुत जरूरी है। लेकिन किसान दवाओं के बारे में जागरुक नहीं हैं। उन्हें ब्रांडेड दवाओं का अनुभव नहीं है। ब्लॉक स्तर पर शिविर लगाकर किसानों को जागरुक किया जाए तो बेहतर होगा।
आशीष द्विवेदी
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बागो में छिड़काव के लिए दवाओं के सरकारी स्टोर होने चाहिए, ताकि किसानों को अच्छी और ब्रांडेड दवाएं मिल पाएं। साथ ही जागरुकता कैंप भी लगाए जाएं। नहरों में पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए।
दिग्विजय सिंह लल्ला
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बागवानों को सही समय पर सही सलाह नहीं मिल पाती है। किसान अपने आधे-अधूरे अनुभव के साथ बागवानी करते हैं। जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। फसल बिक्री के लिए न मार्केट मिलता है और न ही सही दाम मिलते हैं। ट्रांसपोर्टिंग व्यवस्था भी अच्छी नहीं है।
नीरज कुमार
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कई क्षेत्रों में किसानों को बाग को पानी देने की दिक्कत है, जबकि उन्हें क्षेत्र में नाले का पानी बाग में भरा रहता है। जिससे नुकसान होता है। पानी की सही व्यवस्था होनी चाहिए। नहरों की सिल्ट सफाई नहीं होती है।
अजय प्रताप
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आगरा एक्सप्रेसवे पर मलीहाबाद के पास उतरने के लिए कोई कट नहीं है। जिससे आम की फसल तैयार होने पर उसको बाहर ले जाने में दिक्कत होती है। एक्सप्रेसवे से उतरने के लिए कट बनाना चाहिए।
बब्लू
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क्षेत्र में दुकानों पर किसानों को नकली दवाएं मिल रही हैं। अनजाने में किसान उन्हीं दवाओं का छिड़काव करते हैं। जिससे कोई फायदा नहीं होता। कीट जिंदा रह जाते हैं। वहीं फसलों को बर्बाद करते हैं। किसान नुकसान झेलते हैं।
शराफत अली
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सिंचाई के लिए नहरों में पर्याप्त पानी नहीं मिलता। सरकारी नलकूप भी नहीं है। बागवान अपने निजी संसाधनों से सिंचाई करते हैं। जिसमें किसानों को काफी लागत आती है। इसकी वजह से पर्याप्त फायदा नहीं मिल पाता।
सर्वेश यादव
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दवाएं अच्छी नहीं होने से कीट मरते नहीं है। बहादुर नाम का कीड़ा आम की फसलों को काफी बर्बाद करता है। दवाएं डालने के बाद भी उससे निजात नहीं मिलती। जिससे पैदावार का काफी बुरा असर पड़ता है।
सत्य प्रकाश यादव
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दवाएं इतनी खराब मिल रही हैं, कि जिस बाग की पूर्वज तीन बार धुलाई करते थे, हम लोग उसी बाग को 11 से 12 बार धुलाई करते हैं, फिर भी कीट नहीं मरते। इससे किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है।
अभिषेक द्विवेदी
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कीटनाशक अच्छे नहीं मिलने से बागों में कई कई बार छिड़काव करना पड़ता है। जिससे फसलें तैयार करने में किसानों का काफी पैसा खर्च होता है। खर्च के अनुसार मुनाफा कम मिलता है। सरकार को बागवानों की मदद करनी चाहिए।
सत्तार अली
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बौर आ रहा है। लेकिन पिछले साल की तुलना में इस साल बौर कम आया है। जिससे ज्यादा फायदे की गुंजाइश नहीं दिख रही है। दवाओं का छिड़काव किया गया है, लेकिन अच्छी दवाएं न होने से असर कम दिख रहा है।
सुशील कुमार
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प्रस्तुति-अवनीश जायसवाल, इरफान गाजी, आनन्द अवस्थी, आशीष गुप्ता व फोटो-रितेश यादव
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