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एलडीए कर्मचारियों के विरुद्ध विजिलेंस जांच पर रोक

Lucknow News - लखनऊ उच्च न्यायालय ने हिमालयन सहकारी आवास समिति द्वारा कथित तौर पर लखनऊ विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों के साथ मिलीभगत कर भूमि घोटाले की जांच पर अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार और एलडीए को...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखनऊFri, 10 Jan 2025 09:59 PM
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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हिमालयन सहकारी आवास समिति लिमिटेड द्वारा कथित तौर पर लखनऊ विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों से मिलीभगत कर तय सीमा से अधिक जमीन लेकर प्राधिकरण को करोड़ों रुपये का चूना लगाने व उक्त जमीनों को बेचने के मामले में विजिलेंस जांच पर अंतरिम रोक लगा दी है। हालांकि न्यायालय ने राज्य सरकार और एलडीए को पूर्व में हुयी जांच रिपोर्ट के आधार पर यथोचित कार्रवाई के लिए स्वतंत्र किया है। मामले की अगली सुनवायी 24 जनवरी को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने सुनंदा अग्रवाल व हिमालयन सहकारी आवास समिति लिमिटेड द्वारा प्रवीण सिंह बाफिला की ओर से दाखिल अलग-अलग विशेष अपीलों पर पारित किया। समिति की अपील में एकल पीठ के 3 दिसम्बर के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें उक्त मामले की विजिलेंस जांच के आदेश दिए गए थे। वहीं सुनंदा अग्रवाल की ओर से दाखिल अपील में एकल पीठ द्वारा प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना का मामला नहीं पाए जाने को चुनौती दी गई है। दोनों अपीलों पर शुक्रवार को सुनवायी के उपरांत न्यायालय ने विजिलेंस जांच पर अगली तिथि तक रोक लगा दी, हालांकि सरकार व एलडीए को कार्रवाई की छूट भी दी है लेकिन सरकार या एलडीए की ऐसी कोई कार्रवाई कोर्ट के आदेशों के अधीन रहेगी।

उल्लेखनीय है कि सुनंदा अग्रवाल की अवमानना याचिका पर सुनवायी करते हुए, एकल पीठ ने पाया कि हिमालयन सहकारी आवास समिति ने तय सीमा साढ़े बारह एकड़ से करीब दो गुना अधिक भूमि के एवज में प्राधिकरण से मुआवजा लेकर अपने सदस्यों को प्लाट दिया जो कि सरासर अवैध कृत्य है। ये जमीनें गोमती नगर विस्तार में स्थित हैं। एकल पीठ के समक्ष यह तथ्य भी आया कि सरकार और प्राधिकरण की जांच में उक्त आवास समिति के खिलाफ काफी गड़बड़ियां पायी गयीं हैं जिसमें प्राधिकरण के कर्मचारियों की भी संलिप्तता सामने आयी है। एकल पीठ ने 3 दिसम्बर को पारित अपने आदेश में टिप्पणी की थी कि इस केस की सुनवायी के दौरान जो तथ्य सामने आए हैं, वे बहुत ही गंभीर हैं और ऐसे में वह जनहित को देखते हुए, अपनी आंखे नहीं बंद रख सकता है। यह कहते हुए कोर्ट ने मामले की विजिलेंस से जांच के आदेश दिए थे।

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