कृतियों के सिनेमाई रूपातंरण पर कई बार निर्देशक सहमत नहीं होता
Lucknow News - लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रमुख वक्ता डॉ नीरा जलक्षत्रि ने फिल्म निर्माण प्रक्रिया और साहित्यिक कृतियों के सिनेमाई...

लखनऊ, कार्यालय संवाददाता हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय में साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में वक्ता ने फिल्म निर्माण प्रक्रिया एवं साहित्यिक कृतियों के सिनेमाई रूपांतरण में प्रभावशाली वक्तव्य दिया।
विभाग की पूर्व विद्यार्थी, शिक्षक एवं प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मुख्य वक्ता डॉ नीरा जलक्षत्रि ने बताया कि देशकाल, परिस्थिति के अनुसार सिनेमाई रूपांतरण में कुछ बदलाव आवश्यक हो जाते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने सत्यजीत रे की अनेक फिल्मों और प्रेमचंद की कहानियों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि साहित्यिक कृतियों के सिनेमाई रूपांतरण में कई बार निर्देशक, लेखक की दृष्टि से सहमत नहीं होता और अपनी अत्यधिक कल्पनाशीलता से उस कृति का एक नया पाठ सिनेमाई पर्दे पर रचता है। इस तरह एक रचना और अधिक ग्राहय एवं प्रभावशाली बन जाती है। हालांकि आज के समय में पुरानी कहानियों के रूपांतरण के रूप में तमाम दबावों के चलते प्रोपेगंडा फिल्मों की अधिकता ने इस तरह के रूपांतरण पर नए सवाल भी उठाए हैं। व्याख्या के बाद डा नीरा द्वारा निर्देशित लघु फिल्म द बिगनिंग का प्रदर्शन किया गया। इस मौक पर विभाग की अध्यक्ष प्रो रश्मि कुमार, प्रो पवन अग्रवाल, प्रो वाई पी सिंह, प्रो.श्रुति, प्रो. हेमांशु, डॉ.राहुल पांडे, डॉ.आकांक्षा, डॉ ज्ञानेंद्र समेत अन्य शामिल रहे।
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