Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़लखनऊKGMU Trauma Surgery Chief Urges Policy Changes for Accident Prevention and Patient Care

गाड़ी चलाते समय मोबाइल या ईयर फोन के इस्तेमाल से अधिक हादसे

केजीएमयू के ट्रॉमा सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. संदीप तिवारी ने सड़क हादसों को रोकने के लिए सावधानी बरतने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि मोबाइल और ईयर फोन का प्रयोग हादसों का कारण बन रहा है। साथ ही,...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखनऊSun, 10 Nov 2024 08:30 PM
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केजीएमयू के ट्रॉमा सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. संदीप तिवारी ने बताया कि कई हादसे ऐसे भी होते हैं, जिनको थोड़ी सी सावधानी बरतते हुए रोका जा सकता है। सड़क पर चलने पर लोगों को अधिक सचेत रहने की जरूरत है। खासकर गाड़ी चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल और ईयर फोन या ईयर बड का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मोबाइल या ईयर फोन के इस्तेमाल करने से हादसे बढ़ रहे हैं। साथ ही इसका इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति खुद के साथ दूसरे के लिए भी जानलेवा साबित होता है। ट्रॉमा के इलाज में नीतिगत बदलाव की जरूरत

केजीएमयू के अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कंवेंशन सेंटर में भारतीय ट्रॉमा एवं तीव्र देखभाल सोसाइटी के 14वें वार्षिक सम्मेलन और उत्तर प्रदेश चैप्टर के दूसरे सम्मेलन का समापन रविवार को हुआ। केजीएमयू कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने समापन समारोह के कार्यक्रम का उद्घाटन किया। कार्यक्रम में डॉ. समीर मिश्रा, डॉ. वैभव जायसवाल, डॉ. यादवेंद्र धीर आदि प्रमुख रूप से रहे। डॉ. संदीप तिवारी ने बतौर मुख्य वक्ता ट्रॉमा के मरीजों के इलाज से संबंधी विभिन्न पहलुओं को साझा किया। डॉ. संदीप ने बताया कि सड़क या दूसरे हादसों में जख्मी होने वाले मरीजों को बेहतर और त्वरित इलाज देने के लिए नीति बनाकर बदलाव करने की बहुत अधिक जरूरत है। सबसे बड़ी बात है कि ज्यादातर ऐसे मामले देखे जाते हैं, जिसमें मरीज को ट्रॉमा सेंटरों तक जाने की जरूरत ही नहीं होती है। फिर भी उन्हें इसलिए रेफर कर दिया जाता है कि मेडिकोलीगल न करना पड़े। साथ ही मरीज के साथ किसी प्रकार की अनहोनी होने पर अस्पताल में हंगामा, उपद्रव, तोड़फोड़ की घटना घटित हो सकती है।

ट्रॉमा के लिए प्रशिक्षण बहुत जरूरी

डॉ. संदीप तिवारी ने कहा कि ट्रॉमा के इलाज के लिए नीतिगत बदलाव के साथ ही अस्पताल के स्टाफ, डॉक्टर आदि को प्रशिक्षित करने की बहुत अधिक जरूरत है। बताया कि कई बार ऐसे मामले आते हैं कि ट्रॉमा या किसी दूसरे अस्पताल के इमरजेंसी डॉक्टर या स्टाफ प्रशिक्षित नहीं होते हैं तो वह मरीज का सही से इलाज नहीं कर पाते हैं। मरीज को इलाज मिलने में देरी हो जाती या सही इलाज नहीं मिलता, जिससे उसकी जान तक चली जाती है।

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