जांच में 20 प्रतिशत लोगों के फेफड़े बीमार पाए गए
केजीएमयू के रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग ने एक मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाया, जिसमें 50 लोगों की जांच की गई। 20 प्रतिशत में सांस संबंधी बीमारी पाई गई। डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण और धूम्रपान...
-केजीएमयू रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग की ओर से लगाया गया चिकित्सा शिविर -पर्यावरण प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारी बढ़ी
लखनऊ, वरिष्ठ संवाददाता।
केजीएमयू के रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग में मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाया गया इसमें 50 लोगों ने जांच कराई। फेफड़ों की जांच में 20 प्रतिशत को सांस संबंधी बीमारी मिली। सामान्य लोगों से फेफड़े कमजोर मिले। यह जानकारी केजीएमयू रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने दी।
वह बुधवार को क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) दिवस पर रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग में जागरूकता कार्यक्रम व चिकित्सा शिविर में बोल रहे थे। डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि शिविर में 50 लोगों ने फेफड़े पर सांस संबंधी बीमारी की जांच कराई। जिसमें 20 प्रतिशत यानी 11 लोगों में सांस संबंधी बीमारी मिली। चौंकाने वाले बात थी कि इन मरीजों को सांस फूलने या दूसरी समस्या नहीं थी। उन्होंने कहा कि 40 वर्ष के ऊपर के स्वस्थ्य व्यक्तियों को भी नियमित रूप से अपने फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच करानी चाहिए। इन मरीजों को इलाज के लिए सलाह दी गई। साथ ही समय-समय पर जांच व इलाज के लिए बुलाया गया।
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। लोग धूम्रमान भी खूब कर रहे हैं। इससे वह खुद के फेफड़ों के साथ आस-पास के लोगों को भी बीमार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन वजह से फेफड़े संबंधी बीमारी में तेजी से इजाफा हो रहा है। चूल्हे से निकलने वाले धुआं, परोक्ष धूम्रपान, अलाव का प्रयोग एवं लंबे समय तक बने रहने वाले फेफड़े के संक्रमण भी सीओपीडी के लिए प्रमुख जोखिम कारक हैं। कार्यक्रम में डॉ. संतोष कुमार, डॉ. दर्शन कुमार बजाज, डॉ. ज्योति बाजपेयी, न्यूरोलॉजी विभाग से डॉ. रवि उनियाल मौजूद रहे।
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