Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़लखनऊKaushalya Literary Festival Concludes in Lucknow with Cultural Dialogues and Sufi Music

अवध की संस्कृति में हम विविध विचारों के साथ भी एक हैं

-तीन दिवसीय कोशला साहित्य महोत्सव का समापन लखनऊ, कार्यालय संवाददाता अवध की कलाओं, इतिहास,

Newswrap हिन्दुस्तान, लखनऊSun, 24 Nov 2024 07:07 PM
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-तीन दिवसीय कोशला साहित्य महोत्सव का समापन लखनऊ, कार्यालय संवाददाता

अवध की कलाओं, इतिहास, देश और प्रदेश की राजनीति, धर्म पर संवाद और मंथन के बाद तीन दिवसीय कोशला साहित्य महोत्सव रविवार को विदा हो गया। संगीत नाटक अकादमी परिसर में हुए महोत्सव के आखिरी दिन की सुबह फिल्मकार मुजफ्फर अली के साथ संवाद से हुई तो वहीं शाम साबरी ब्रदर्स के सूफियाना कलामों के साथ रोशन हुई। इसके बीच में कई सत्र जहां समाज और साहित्य के विभिन्न मुद्दों को केन्द्र में रखकर लेखकों, इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों ने अपनी बात रखी।

महोत्सव में अवध की संस्कृति एक रंगीन सफर शीर्षक से हुएसत्र में ताहिरा हसन ने इतिहासकार रवि भट्ट, राना सफवी और निशांत उपाध्याय से बात की। सत्र में इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि पूरे देश में सेक्युलर कल्चर के प्रसार में लखनऊ का अहम किरदार है। 1947 में देश के विभाजन के बाद जब पूरा देश दंगो की आग में जल रहा था लखनऊ में एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ। यहां उर्दू का पहला ड्रामा इंद्रसभा नाम से लिखा जाता है। यहां इंशा अल्ला खां इंशा रानी केतकी की कहानी लिखते हैं जिसे हिंदी की पहली कहानी माना जाता है। राना सफवी ने कहा कि अवध गंगा जमुनी तहजीब का मरकज है। इसका मतलब एक दूसरे का सम्मान देना है। सफवी ने कहा कि हमारे घर में अगर नॉन वेजिटेरियन पकवान बन रहा है और हमारा कोई मित्र शाकाहारी है तो उसके विचार का सम्मान करते हुए पूरी तरह से अलग दस्तरख्वान सजता है। सफवी ने कहा कि हम एक है लेकिन अपनी विविधिताओं के साथ एक है। एक दूसरे के विचारों का सम्मान के साथ एक हैं। जब नवाबी दौर में उस समय के शासक वर्ग ने अलीगंज का हनुमान मंदिर बनावाया तो यह प्राकृतिक क्रिया थी उस समय इसे करने के पीछे राजनीतिक फायदा नहीं ढूंढा जाता था। निशांत बताया कि इमारतों के संरक्षण और उसके जीर्णोद्धार में किस तरह की प्रक्रिया होती है। हिंडोल सेनगुप्ता का अष्टावक्र गीता पर सत्र जीवन, मृत्यु और सत्य की खोज के बारे में कालातीत प्रश्नों के साथ रहा। अभिनेता इरफान खान के जीवन और कलात्मकता को इरफान: ए लाइफ इन मूवीज़ सत्र में इरफान खान के जीवन को छुने का सफल प्रयास किया गया। जहां शुभ्रा गुप्ता और शैलजा केजरीवाल ने इरफान खान के जीवन के अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू कराया। द डेमोक्रेसी लैब में, राधा कुमार और वरिष्ठ साहित्यकार पुरुषोत्तम अग्रवाल ने भारत के लोकतांत्रिक विकास की जटिलताओं पर बात की। एडैप्टेशन: फ्रॉम स्क्रिप्ट टू द स्क्रीन सत्र में विकास स्वरूप, प्रयाग अकर और शुभ्रा गुप्ता ने साहित्य को फिल्मों में बदलने की पेचीदगियों का पता लगाने की कोशिश की।

-मैने घोड़े की नजर से कश्मीर देखा: मुजफ्फर अली

साहित्य महोत्सव में फिल्मकार मुजफ्फर अली फरसनामा: द आर्ट ऑफ मुजफ्फर अली सत्र से मुखातिब हुए। मुजफ्फर अली ने कहा कि जो व्यक्ति जानवरों की बात समझने लगे तो समझ लीजिए खुदा की उस पर खास इनायत है। उन्होंने बताया कि जब वो बड़ हो रहे थे तो अपने घर के सामने वाले खण्डहर को देखते थे। वो खण्डहर कभी उनके पिता का अस्तबल हुआ करता था, वहां उनके घोड़े रहते थे। यहीं से घोड़ो के प्रति प्रेम और जिज्ञासा बढ़ती गई। घोड़ों को गहराई से समझता गया। श्री अली ने बताया कि जब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा बने तब उन्होंने एक घोड़ा खरीदा था जिसका नाम बराक रखा। उन्होंने उस घोड़े की फोटो भी दिखायी। मुजफ्फर अली ने बताया कि जब जूनी फिल्म बनायी तो कश्मीर को घोड़ो की नजर से देखा। उन्होंने कहा कि एक पेटिंग की सीरीज बनायी तो कर्बला के वाक्ये को भी घोड़ों की नजर से देखा। कर्बला के वाक्ये में घोड़ों का अहम किरदार है। कर्बला से ही मर्सियाख्वानी, सोजख्वानी शुरू हुई। वहीं पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर डी. सुब्बा राव ने जस्ट ए मर्कनरी? में अपने जीवन और करियर पर खुल कर बात की। अर्थशास्त्री सौरव झा के साथ बातचीत में सुब्बा राव ने सार्वजनिक सेवा के माध्यम से अपनी यात्रा की चुनौतियों और सफलताओं को श्रोताओं के साथ साझा किया। इतिहासकार देविका रंगाचारी ने द मौर्यस: चंद्रगुप्त टू अशोका में मौर्य वंश की विरासत की खोज की। जिसमें अशोक, चंद्रगुप्त और बिंदुसार पर प्रकाश डाला गया।

-सूफियाना कलामों से रोशन हुई शाम

साहित्य महोत्सव की शाम सूफियाना कलामों के साथ हुई। दिलशाद इरशाद साबरी सूफी ब्रदर्स ने अपने कलामों से शाम को ऐसा रोशन किया कि संगीत प्रेमी झूमने का मजबूर हो गए। ब्रदर्स ने तुम्हे दिल्लगी छोड़ जानी पड़ेगी सुनाकर अपनी उपस्थति का एहसास कराया। वहीं छाप तिलक सब छीनी से रे मोसे नैना मिलाइके को खास अंदाज में पेश कर श्रोताओं के दिलों में जगह बना ली। इसके बाद मेरा पिया घर आया और जे तू अंखिया दे सामने न रहना सुनाकर शाम को यादर रंग दिया। इसके बाद एक से बढ़कर एक कलाम फिजा में गूंजते रहे।

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