डेढ़ लाख ‘आशा को ज्यादा मानदेय की आस
Lucknow News - लखनऊ बोले में आशा कार्यकर्ता ने सझा किया अपना दर्द, उनकी मांग है कि उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा मिले
लखनऊ बोले में आशा कार्यकर्ता ने सझा किया अपना दर्द 1,70,000 प्रदेश में आशा कार्यकर्ता की संख्या
28,000 लखनऊ में आशा कार्यकर्ता की संख्या
लखनऊ। केंद्र व राज्य सरकार की जनकल्याणकारी स्वास्थ्य योजनाओं का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन कराने और स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ कही जाने वाली आशा कार्यकत्र्री दर-दर ठोकरें खा रही हैं। एक इलाके में करीब चार से पांच किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर घर-घर जाकर लोगों को स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने वाली आशा कार्यक्त्रिरयों को मेहनताने के नाम पर महज दो हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। कल्पना करें कि इस कमर तोड़ महंगाई के दौर में आशा कार्यकत्र्री मात्र दो हजार रुपये में अपना और परिवार का गुजारा कैसे कर पाती होंगी। कोरोना काल में जिंदगी दांव पर लगाकर क्षेत्र में काम करने वाली आशा लंबे समय से अपने हक के लिए सरकार से सुविधाएं मांग रही हैं। आशा कार्यक्त्रिरयों की प्रमुख मांग है कि उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा मिले और न्यूनतम वेतन 18000 रुपये दिया जाए। हिन्दुस्तान संग बातचीत में आशा कार्यक्त्रिरयों ने अपना दर्द साझा किया।
प्रदेश भर में आशा कार्यक्त्रिरयों की संख्या करीब एक लाख 57 हजार 594 है। वहीं अकेले लखनऊ में 28,000 आशा हैं। आशा कार्यक्त्रिरयां केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाती हैं। जननी सुरक्षा योजना, बाल स्वास्थ्य गारंटी योजना, गर्भवती व बच्चों का टीकाकरण, सर्वे, टीबी अभियान को आशा कार्यकत्र्री सफल बनाने की मुहिम में दिन रात जुटी रहती हैं। इसके अलावा महिला आयोग समिति की बैठक, सीएमओ कार्यालय या सीएचसी पीएचसी स्तर पर बैठकों में पहुंचना, जन आरोग्य मेले व स्वास्थ्य शिविरों का प्रचार प्रसार करना आदि काम भी हैं। हर माह चार बार पीएचसी, सीएचसी व अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं व बच्चों का टीकाकरण होता है। इसके अलावा अभी 100 दिन टीबी मुक्त भारत अभियान भी चलाया जा रहा है। इसमें भी आशा कार्यक्त्रिरयों से काम लिया जा रहा है। इस सबके बावजूद भी उन्हें पुरानी चल रही योजनाओं का भी समय से मेहनताना नहीं मिलता है। ऊपर से लगातार जुड़ते जा रहे नए कामों का तो कोई रुपया नहीं दिया जाता है। आशा को स्वास्थ्य विभाग के तय फार्मेट के हिसाब से इंसेंटिव 1200 रुपये प्रतिमाह मिलता है लेकिन फार्मेट ऐसा है कि सारी आशाएं इंसेंटिव पूरा नहीं पा सकती हैं।
आशा कार्यक्त्रिरयों को वर्दी भत्ता हर साल 1000 रुपये दिया जाता है। इसमें दो साड़ी साल भर के लिए खरीदनी होती है। वही साड़ी पहनकर फील्ड में रोजाना जाना पड़ता है। सर्दी के दिनों के लिए स्वेटर, जैकेट आदि किसी वस्त्र का कोई रुपया अलग से नहीं दिया जाता है। फिलहाल अभी दो साल से वर्दी भत्ता आशा कार्यक्त्रिरयों को नहीं दिया गया है। सभी आशा कार्यक्त्रिरयों ने अपनी जेब से रुपया लगाकर साड़ियां खरीदी हैं।
स्वास्थ्य विभाग में आशा कार्यक्त्रिरयों की वर्ष 2005 में भर्ती निकाली गई थी। वर्ष 2006 में आशा कार्यक्त्रिरयों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू की जा सकी थी। समाजवादी सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भर्ती के प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। आशा कार्यक्त्रिरयों को भर्ती करने की शैक्षिक योग्यता कक्षा आठ थी। उसके बाद लगातार आशा कार्यक्त्रिरयों की हर सरकार भर्ती करती रही है। स्वास्थ्य विभाग के तहत योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य को बखूबी निभा रही आशा कार्यक्त्रिरयों को वर्ष 2005 में भर्ती करने पर मेहनताना महज 1000 था। वर्ष 2017 में मेहनताना बढ़ाकर 2000 कर दिया गया। काम भी लगातार बढ़ता गया। महंगाई भी आसमान पर पहुंच रही है लेकिन आशा कार्यक्त्रिरयों का मेहनताना आज तक नहीं बढ़ सका है।
घर पर कोई बीमार है तो बिना पैसे इलाज नहीं करवा सकतीं
आशा कार्यक्त्रिरयों का सबसे बड़ा दर्द है कि उन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं होती है। मेहनताना तो कम है ही। साथ ही अस्पताल में खुद या परिवार के किसी सदस्य का इलाज कराने के लिए उनको धक्के खाने पड़ते हैं। स्वास्थ्य विभाग से यह भी सहूलियत नहीं है कि किसी सरकारी अस्पताल में अपना या परिवारीजनों का नि:शुल्क इलाज करवा सकें।
आशा कार्यकत्र्री विमला यादव और ममता ने बताया कि हम लोग अस्पताल जाते हैं तो इलाज के लिए बहुत गुजारिश करनी पड़ती है। साथ ही लोहिया, केजीएमयू, पीजीआई जैसे किसी चिकित्सा संस्थान में तो बहुत ही दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं। स्वास्थ्य विभाग में आशा होने के बाद भी चिकित्सीय सुविधाओं के लिए भटकना पड़ता है। आशा कार्यकत्र्री और उनके परिवारीजनों के इलाज के लिए किसी प्रकार की स्वास्थ्य बीमा योजना लागू नहीं है। इससे इलाज के लिए रुपए खर्च करने पड़ते हैं। चिकित्सा संस्थान में धक्के खाने पड़ते हैं। उन्हें स्वास्थ्य विभाग का अंग माना ही नहीं जाता है जबकि सबसे अधिक काम आशा करती हैं। केंद्र व राज्य की स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं को घर-घर पहुंचाने का काम आशा के जिम्मे है। आशाओं की मांग है कि स्वास्थ्य बीमा मुफ्त हो। आयुष्मान कार्ड हो या दूसरी योजना में शामिल किया जाए।
-आशा और संगिनी को मिलने वाली राशि को प्रोत्साहन राशि के बजाय उसे मानदेय के रूप में संबोधित किया जाए। उसके भुगतान की प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन करते हुए स्थाई भुगतान न्यूनतम वेतन के बराबर हो।
- गोल्डन आयुष्मान कार्ड व दस्तक, वेलनेस सेंटर में योगदान, टीबी, कुष्ठ रोग निरोधक अभियान, पोलियो के विरुद्ध अभियान, हेल्थ प्रमोशन आदि समसामयिक कार्य में योगदान की वर्षों से बकाया अनुतोश राशियों का भुगतान अविलंब किया जाए। यही नहीं जुलाई 2019 राज्य सरकार की ओर से अधिसूचित प्रतिपूर्ति राशि का आंशिक भुगतान नहीं किया गया है।
- कोविड में मार्च 2020 से 31 मार्च 2022 तक योगदान के लिए केंद्र सरकार की ओर से घोषित कोविड भत्ता 1000 रुपये मासिक में सिर्फ पांच माह का भुगतान किया गया। शेष करीब 19 माह की प्रोत्साहन राशि का आज तक भुगतान नहीं किया गया। यही नहीं राज्य वित्त से अनुमन्य 1500 रुपये मासिक की प्रतिपूर्ति राशि का भी अधिकांश जनपदों में एक साल से भी ज्यादा समय का बकाया है।
- दो फरवरी 2024 की वार्ता में दी गई स्वीकृति के अनुसार जुलाई 2019 से दिसंबर 2021 तक का प्रति आशा, संगिनी का 750 रुपए की दर से, कोविड में योगदान की केंद्रीय प्रोत्साहन राशि 1000 रुपये मासिक की दर से, 24 माह के बकाए के भुगतान के साथ आयुष्मान कार्ड, गोल्डन कार्ड समेत लिए गए सभी कार्यों की प्रोत्साहन राशि का तत्काल भुगतान कराया जाए।
- 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुरूप संगिनी और आशा कर्मियों को राज्य स्वास्थ्यकर्मी के रूप में मान्यता देकर उन्हें न्यूनतम वेतन, मातृत्व अवकाश कार्यस्थलों में सुरक्षा की गारंटी की जाए।
- 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुसार सभी आशा कर्मियों व संगीनियों को कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) व राज्य कर्मचारी बीमा निगम (ईएसआई) का सदस्य बनाया जाए। बिना पेंशन व ग्रेच्युटी के भुगतान किसी भी आशा कर्मी को सेवा से निवृत्त न किया जाए। हरियाणा में सेवानिवृत्ति पर दो लाख ग्रेच्युटी के रूप में भुगतान का प्रावधान है।
- वर्ष 2015 से अब तक सेवा के दौरान दुर्घटनाओं और अन्य कारणों से जान गंवाने वाली आशा व आशा संगीनियों के आश्रितों को 20 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए। अशक्त हो गई आशा व संगीनियों को 10,000 रुपये मासिक पेंशन दी जाए।
- उत्तर प्रदेश में दो लाख का प्रचलित बीमा भी किसी को नहीं दिया गया। जबकि फरवरी 2024 में वार्ता के दौरान इसके भी दावे लिए जाने और भुगतान करने का विश्वास दिलाया गया था।
- यौन हिंसा रोकने के लिए जिला स्तर पर जेंडर सेंसटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (जीएसकैस) के गठन का यथार्थ भौतिक धरातल पर शून्य है। जेंडर सेंसटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट कहीं भी अस्तित्व में नहीं है।
- आशा व आशा संगिनियों को 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा और 50 लाख का जीवन बीमा कवर मिले।
बोले जिम्मेदार
आशा को प्रदेश सरकार से 1500, नेशनल हेल्थ मिशन से 2000 रुपये मिलते हैं। कुल 3500 रुपये मिल रहे हैं। आशा के पास काम अधिक है पर प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। प्रोत्साहन राशि बढ़ाने के लिए केंद्र से गुजारिश की है। डॉ. सुषमा सिंह, महानिदेशक परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश
आशा कार्यक्त्रिरयों का मानदेय नहीं तय है। वाउचर से रुपये मिलते हैं। वाउचर भी एएनएम व डॉक्टर से हस्ताक्षर करवाकर वैरिफाई करवाया जाता है। आशा को राज्य कर्मचारी का दर्जा देते हुए न्यूनतम वेतन 18000 दिया जाए। - लक्ष्मी सिंह, प्रदेश अध्यक्ष उप्र. आशा वर्कर्स यूनियन संबद्ध ऐक्टू
मोबाइल में नेटवर्क नहीं, ऐप डाउनलोड कैसे हो
लखनऊ, संवाददाता। स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्रदेश भर की आशा कार्यक्त्रिरयों को एंड्रायड मोबाइल दिए गए थे। वर्ष 2022 में दिए गए इन मोबाइल का नेटवर्क बहुत ही अधिक खराब रहता है। आशा कार्यक्त्रिरयों का कहना है कि मोबाइल में नेटवर्क कभी-कभी ही आता है। सही से बात नहीं हो पाती है। कोई फार्म, फोटो अपलोड होने में बहुत देर लगती है। इसके अलावा मोबाइल पर कोई दूसरा ऐप डाउनलोड नहीं होता है। मोबाइल सिर्फ शोपीस बन चुके हैं। आशा कार्यक्त्रिरयों की मांग है कि मोबाइल को वापस ले लिया जाए।
आशा/आशा संगिनी कर्मचारी संगठन उप्र. की प्रदेश महामंत्री ऊषा बाजपेई ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने आशा कार्यक्त्रिरयों को एंड्रायड मोबाइल दिए थे। मोबाइल को हर माह रीचार्ज कराने के लिए 200 रुपये दिए जाते हैं। अब नेटवर्क 4 और 5 जी चलता है जबकि उनके पास जो सिम और नेटवर्क है वह 4 और 5 जी नहीं है। ऊषा बाजपेई के मुताबिक अब किसी भी नेटवर्क का 4 व 5 जी रीचार्ज 250 से 350 रुपए से कम का नहीं आता है। जो मोबाइल मिले हैं, उसमें कोई ऐप भी डाउनलोड नहीं होती है। हाल में ही टीबी मुक्त भारत के 100 दिन कार्यक्रम में निक्षय ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा गया लेकिन वह डाउनलोड नहीं हो सका। इसके अलावा ई कवच, यू ट्यूब आदि नहीं चलता है। ऐसे में आशा कार्यक्त्रिरयों को मजबूरी में दूसरा मोबाइल भी रखना पड़ता या परिवार के किसी सदस्य का मोबाइल लेकर काम चलाना पड़ता है।
कुछ आशा कार्यक्त्रिरयों को मजबूरी में दो मोबाइल रखने से खर्च भी अधिक बढ़ गया है। यही नहीं ज्यादातर आशा कार्यक्त्रिरयों के मोबाइल फील्ड में काम करते समय टूट गए या खराब हो गए हैं। उन लोगों ने मोबाइल को घर में रख दिया है। विभाग को चाहिए कि ऐसे खराब मोबाइल वापस जमा करवा लिए जाएं। आशा कार्यक्त्रिरयों की मांग भी है कि उन्हें मोबाइल के बजाय पूर्व की तरह ही काम करने को दिया जाए।
आशा संगिनी को प्रति विजिट 300 रुपये का भुगतान
आशा कार्यक्त्रिरयों के समूह में एक आशा संगिनी बनाई जाती है। संगिनी ही सभी आशा की मुखिया की तरह होती हैं। संगिनी सभी आशा कार्यक्त्रिरयों के काम में आने वाली कठिनाइयों को सबसे पहले दूर करने का प्रयास करती है। संगिनी को महीने में 24 विजिट क्षेत्र, पीएचसी, सीएचसी पर करना होता है। संगिनी को प्रतिदिन विजिट पर 300 रुपए मिलता है। इस हिसाब से 24 विजिट करने पर संगिनी को 7200 रुपये प्रतिमाह भुगतान होता है। साथ ही राज्य बजट से 1500 रुपये प्रतिमाह मिलता है। आशा कार्यक्त्रिरयों की तरह ही साल में एक बार वर्दी भत्ता 1000 रुपये दिया जाता है।
स्वास्थ्य विभाग से कोई बीमा नहीं कराया जाता
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के जरिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में आशा कार्यक्त्रिरयों की भर्ती होती है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से आशा कार्यक्त्रिरयों का कोई बीमा नहीं होता है। सिर्फ 12 रुपये सालाना का बीमा योजना कराया जाता है। इसके अलावा 50 साल उम्र तक की आशा कार्यकर्ता का श्रमधन योजना के तहत 330 रुपये का बीमा होता है, लेकिन 50 साल से अधिक होने पर इसका लाभ आशा को नहीं मिलता है। जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य विभाग पारिवारिक बीमा या स्वास्थ्य संबंधी बीमा नहीं कराता है।
जानकीपुरम पीएचसी में आशा कर्मचारियों से बातचीत
हम आशा बहुओं से ई-कवच, आभा आईडी, आयुष्मान बनवाया जाता है। इसका कोई पैसा नहीं मिलता है, जबकि अधिकारियों ने कहा था कि इस काम का अलग भुगतान किया जाएगा। यह हमारे मेहनत का पैसा है। जल्द से जल्द मिलना चाहिए।
विमला यादव
हमें प्रसव कराने और मातृ मृत्यु दर कम करने के लिए भर्ती किया गया था। अब अधिक काम कराया जाता है। इसके बदले रुपए भी नहीं दिए जाते हैं। डिलीवरी कराने तक का भुगतान समय पर नहीं किया जा रहा है। हर काम का रुपया मिलना चाहिए।
प्रियंका देवी
सरकार ने हम आशा कार्यकर्ताओं को जो स्मार्टफोन दिया है। वह स्मार्ट मोबाइल फोन ठीक तरीके से काम भी नहीं करते हैं। उसमें शासन की ओर से जारी ऐप भी डाउनलोड नहीं होते हैं। किसी तरह बच्चों के मोबाइल से काम करना पड़ता है।
आशा देवी
मेरे घर पर कोई बीमार हो जाए तो देखभाल तक नहीं कर पाती हूं। विभाग बिना किसी व्यवस्था जिम्मेदारियां दे देता है। हमारी मेहनत कोई नहीं देखता है। मानदेय इतना कम है कि घर क्या एक बच्चे का खर्च भी नहीं चल पाता है। भुगतान में भी बहुत देरी होती है।
अनूपा यादव
हम आशा को काम करने के लिए रजिस्टर तक अपने पैसे से खरीदना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि हमारे मुताबिक रजिस्टर मुहैया कराए। योजनाओं के पीडीएफ फॉर्म आनलाइन भेज दिया जाता है। हमें खुद के रुपए से प्रिंटआउट तक निकलवाना पड़ता है।
सुनीता सैनी
हमें जल्द से जल्द आभा आईडी, आयुष्मान कार्ड, निक्षय आईडी बनाने के पैसे मिलने चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के अफसर कम मेहनताना देकर हम आशा कार्यकर्ताओं से अधिक काम करवाते हैं। अफसरों को चाहिए कि काम के हिसाब से भुगतान भी करें।
सविता देवी
मासिक बैठक के लिए सरकार ने सलाना 5000 रुपए देने का वादा किया था। आज सात साल से अधिक समय हो गए। मीटिंग के एक रुपए हाथ नहीं लग सके। शुरू से जोड़कर हम सब को मासिक बैठक का भुगतान किया जाना चाहिए।
अंजू देवी
हम आशा कार्यकर्ता बहुत मुश्किलों में अपना और परिवारीजनों का भरण पोषण कर पा रही हैं। इतने कम मेहनताने और लगातार बढ़ती महंगाई में घर का खर्च वहन करना दुश्वार होता जा रहा है। हमारा मानदेय बढ़ाकर कम से कम 18000 रुपए हो।
चंद्रकला
सरकार ने जो स्मार्टफोन दिया है। वह ठीक से काम नहीं करता है। अधिकारियों से बोलने पर कहते हैं कि अपने पैसे से अच्छा मोबाइल खरीद लो। मोबाइल वापस लेकर हम लोगों से ऑफलाइन यानी रजिस्टर के जरिए से ही काम कराया जाए।
नीलम रावत
शासन की ओर से मिला मोबाइल किसी काम का नहीं है। कोई ऐप डाउनलोड नहीं होता है। न ही ढंग से मोबाइल चलता है। डिलीवरी की जननी का भी पैसा नहीं मिलता है। हर प्रकार की योजनाओं का काम भुगतान में तेजी आनी चाहिए।
ममता यादव
आशा कार्यकर्ता से उनके मूल काम के अलावा कई अन्य काम कराए जाते हैं। उसका भुगतान भी नहीं मिलता है। हम लोग आईडी और कार्ड ही बनाते रहेंगे तो डिलीवरी या अन्य काम कब करेंगे। यदि काम कराएं तो उसके रुपए भी तत्काल देना चाहिए।
काजल चौधरी
जो मोबाइल हम आशा को मिला है। उसमें निक्षय ऐप ही नहीं डाउनलोड हो सका है। ऐसे में मुझे घर के बच्चों से मोबाइल मांग कर काम करना पड़ता है। जब इससे काम ही नहीं होता है तो तो उससे अच्छा है कि ऐसा मोबाइल ही नहीं देना चाहिए।
शिक्षा वर्मा
आशा कार्यकर्ताओं को पीएचसी स्तर पर तो सब जानते हैं। बड़े अस्पतालों में न ही कोई सुविधा मिलती है, न कोई सुनवाई होती है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े होने के बाद भी चिकित्सा संस्थानों मे हमें कोई तवज्जो नहीं मिलती है। कोई दिक्कत हो तो परेशान हो जाते हैं।
सुनीता
मेहनताना एक निर्धारित तारीख को मिल जानी चाहिए। हमसे काम तो खूब कराया जाता है, लेकिन रुपए के नाम पर कुछ नहीं दिया जाता है। मेहनताना देरी से आता है। आईडी बनाने समेत अन्य कार्यों के रुपए मिल नहीं रहे हैं। परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है।
नीतू शुक्ला
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