कमाई नहीं, सेवा कर रही हैं एसिड पीड़िताएं
- पूर्व सीएम अखिलेश यादव, सांसद पत्नी डिम्पल के साथ पहुंचे शीरोज हैंगआउट...
- पूर्व सीएम अखिलेश यादव, सांसद पत्नी डिम्पल के साथ पहुंचे शीरोज हैंगआउट कैफे - व्यथा सुन भावुक हुईं डिम्पल, बोलीं बंद नहीं होने देंगे शीरोज लखनऊ। निज संवाददाता पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि एसिड पीड़ित बेटियां मुनाफे के लिए काम नहीं करती हैं। बल्कि वह सेवा कर रही हैं। इन बेटियों से काम छीनना सरकार का सबसे बुरा निर्णय है। मुझे दुख है। सरकार को इन लोगों के लिए राजनीति नहीं करनी चाहिए। यह जगह किसी पार्टी की नहीं है। बसपा ने इसे बनाया था। हमने इन बेटियों को काम करने के लिए जगह दी। इस सरकार ने कोई जगह ही नहीं बनाई है। सरकार को यदि कोई जगह चाहिए तो वह जेपीएनआईसी या पुलिस भवन में दूसरी जगह ले सकती है। लोगों की सोच बदलने के लिए एसिड पीड़िताओं को समाज के बीच रहकर काम करने की प्रेरणा मिलती है। कैफे में तो कोई भी बैठ सकता है गोमती नगर के शीरोज हैंगआउट कैफे में रविवार दोपहर को पहुंचे अखिलेश यादव सभी एसिड पीड़िताओं के बीच करीब पौन घंटे तक बैठे रहे। उन्होंने कहा कि यह कैफे है। यहां तो किसी भी पार्टी या संगठन का कोई भी सदस्य आ सकता है। सरकार को पीड़िताओं की तकलीफ समझनी चाहिए। सरकार को उनसे काम नहीं छीनना चाहिए। वह इन बेटियों को कैफे चलाने दें। नियम की बात करने वालों ने समाजवादियों की सड़क पर महाराष्ट्र के लोगों को टोल का काम दे दिया। एक्सप्रेस-वे पर चार जगह छिपकर लोगों को जगह दी। दुखड़ा सुन डिम्पल बोलीं बंद नहीं होने देंगे शीरोज सांसद डिम्पल यादव मौजूद एसिड पीड़ित बेटियों का दुखड़ा सुनकर भावुक हो गईं। उन्होंने बेटियों की बात सुनकर कहा कि शीरोज कैफे बंद नहीं हो सकता है। वह बेटियों की इस लड़ाई में हमेशा खड़ी हैं। पीड़ित अंशू, जीतू, गरिमा, प्रीती समेत अन्य बेटियों ने डिम्पल से बताया कि महिला कल्याण निगम के अधिकारी उन लोगों से काम छीनने पर लगे हैं। छांव फाउंडेशन के बजाए दूसरी संस्था को काम देने में अधिकारी लगे हैं। अनियमितता के आरोप लगाए जा रहे हैं। जबकि निगम से उन लोगों का कई माह का बकाया वेतन 80 हजार से डेढ़ लाख रुपए तक नहीं दिया गया है। फाउंडेशन के अध्यक्ष आलोक दीक्षित ने बताया कि यदि अनियमितता की बात है तो निगम को जांच करनी चाहिए। वह निगम को लंबे समय से पत्र भेजकर बिजली का मीटर, पानी का कनेक्शन लेने को कह रहे हैं, लेकिन अधिकारी सुन नहीं रहे। यही नहीं फाउंडेशन को प्रति माह मिलने वाला ग्रांट भी डेढ़ वर्ष से निगम ने नहीं दिया है। उनके कोर्ट में जाने के बाद स्टेट मॉनीटरिंग कमेटी छह सितंबर को बनाई गई, जिसमें फाउंडेशन के किसी सदस्य को शामिल नहीं किया गया।
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