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अंग्रेजी इतिहासकारों ने दबाया असल नायकों का गौरव

कहते हैं कि हर नायक को एक गायक की जरूरत होती है जो उसके कृत्यों की गाथा जन-जन तक पहुंचाएं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सौ वर्ष पूरे होने पर 1957 में भारत सरकार ने प्रथम क्रांति के आठ महानायकों की...

Deep Pandey अभिषेक स्वरूप , गोण्डा। Fri, 14 Aug 2020 06:27 AM
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कहते हैं कि हर नायक को एक गायक की जरूरत होती है जो उसके कृत्यों की गाथा जन-जन तक पहुंचाएं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सौ वर्ष पूरे होने पर 1957 में भारत सरकार ने प्रथम क्रांति के आठ महानायकों की चित्रमाला जारी की थी। इनमे बहादुर शाह जफर, मंगल पांडे, बेगम हजरतमहल, तात्या टोपे, नाना साहब, कुंवर सिंह, रानी लक्ष्मीबाई और राजा देवीबख्श सिंह के चित्र शामिल थे। ये अवध की माटी और गोण्डा के लिए गौरव की बात थी। लेकिन इन आठ क्रांतिकारियों में से सात के इतिहास तो सुरक्षित रहे लेकिन राजा देवी बख्श सिंह के असल गौरव का गायन इतिहासकारों ने वैसा नहीं किया जैसा उनके चरित्र के अनुरूप होना चाहिए। 
दरअसल सारा इतिहास लेखन अंग्रेजों के लिखित इतिहास के इर्द-गिर्द ही लिखा जाता रहा। अधिकांश इतिहास लेखन उन्ही रजवाड़ों की भावनाओं से अधिक प्रेरित रहे जो अपनी हुकूमत बचाने के लिए घुटने टेकते गए। राजा देवीबख्श सिंह को भी तमाम प्रलोभन मिले। मार्च 1857 की क्रांति से सालभर पहले फरवरी 1856 में गोण्डा में डिप्टी कमिश्नर ब्वायलू की सिर काटकर हुई हत्या के बाद घबराई अंग्रेजी हुकूमत ने 22 रियासतों के अगुवाकार महाराजा देवीबख्श सिंह को बंदोबस्त में उनके राज्य को पूर्ववत बनाए रखने का वादा किया था। फिर भी देवीबख्श सिंह ने राष्ट्रभक्ति की मशाल जलाए रखी और अंग्रेजों से मुकाबला करने लखनऊ में रेजीडेंसी का घेराव भी किया।
1957 में क्रांति के शताब्दी वर्ष के अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग ने राजा देवीबख्श सिंह की कीर्ति का स्पष्ट शब्दों में बखान किया था। उन्हें कुंवर सिंह, राणा बेनी माधव, बेगम हजरत महल और रानी लक्ष्मीबाई की कोटि का स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताया था।
प्रसिद्ध साहित्यकार और अंग्रेजों के युद्ध संवाददाता सर विलियम हॉवर्ड रसेल ने 1857 का गदर देखा था। उसका समय गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग और कोलिन कैम्पबेल के साथ ही बीता था। उसने 'माई डायरी इन इंडिया' में लिखा था- कुछ लोग जैसे बूंदी के राजा, गोण्डा के राजा और फौजों की कुछ रेजिमेंट ऐसी भी हैं जो कभी नहीं झुकेंगे। 
विनायक दामोदर सावरकर ने गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग की एक चिट्ठी का उल्लेख करते हुए राजा देवीबख्श सिंह को क्रांति का महानायक बताया था। चिट्ठी में लिखा था- गोण्डा, चरदा और भिनगा के राजा ने जो कड़वा बैर हमसे पाल रखा है वैसे किसी दूसरी रियासत ने नहीं पाला। चरदा का एक भी गांव हमने नहीं लिया बल्कि लगान भी कम कर दिया। भिनगा के प्रति भी काफी उदारता बरती गई। गोण्डा में तो 400 गांवों में से केवल तीन गांव ही हमने लिए फिर भी ये हमारे कट्टर दुश्मन बने हुए हैं।
दरअसल रिश्तेदारियों ने भी हुकूमत के विरुद्ध एकजुटता में महती भूमिका निभाई। चरदा के राजा जगजोत सिंह की बहन की शादी गोण्डा के राजा से हुई थी। भिनगा के राजा भी देवीबख्श सिंह के सगोत्रीय परिवार के थे। पयागपुर राजा के यहां देवीबख्श सिंह की दूसरी ससुराल थी। रेहुआ, बूंदी, इकौना, तुलसीपुर की रियासतें भी संबंधों के चलते राजा देवीबख्श सिंह के नेतृत्व में रहे। ये सभी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संग्राम में साथी बने।
 

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