संपादित :नाइट कर्फ्यू व शादियां टलने से कोल्ड ड्रिंक का कारोबार ठप
- शादियां टलने से करीब 08 करोड़ के आर्डर कैंसिल हो चुके हैं - मार्च
- शादियां टलने से करीब 08 करोड़ के आर्डर कैंसिल हो चुके हैं
- मार्च से जून के बीच 50 करोड़ का कारोबार हो जाता था
- कोरोना के डर से भी लोग ठंडे पदार्थ लेने से बच रहे हैं
लखनऊ। वरिष्ठ संवाददाता
कोरोना संक्रमण के कारण एक बार फिर कोल्ड ड्रिंक का कारोबार ठंडा पड़ गया है। जबकि राजधानी में कोल्ड ड्रिंक का सालाना 100 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इसमें मार्च से जून के बीच लगभग 50 करोड़ रुपये का बिजनेस हो जाता था जो घटकर 40 फीसदी से कम रह गया है।
कारोबारियों के मुताबिक शादियां टलने से अब तक करीब आठ करोड़ रुपये के आर्डर कैंसिल हो चुके हैं। कोरोना महामारी के कारण स्कूल, कॉलेज सब बंद चल रहे हैं। वहीं नाइट कर्फ्यू के कारण शॉपिंग मॉल, सिनेमाघर, होटल-रेस्टोरेंट भी रात आठ बजे तक बंद हो जाते हैं। इसके अलावा कोरोना के डर से भी लोग कोल्ड ड्रिंक पीने से परहेज कर रहे हैं। नतीजतन पिछले दो महीने में सिर्फ 12 करोड़ रुपये की बिक्री हुई हैं।
कोल्ड ड्रिंक डिस्ट्रीब्यूटर अनिकेत शर्मा ने बताया कि मार्च से जून तक कोल्ड ड्रिंक का कारोबार रहता है। इसके बाद अक्टूबर और नवंबर में खूब बिक्री होती है, लेकिन मई माह शुरू हो गया है। इसके बावजूद कारोबार ने रफ्तार नहीं पकड़ी। कोल्ड ड्रिंक कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर मनोज दीक्षित ने बताया कि राजधानी में विभिन्न कोल्ड्र ड्रिंक कंपनियों के 108 डिस्ट्रीब्यूटर हैं। इनमें शहरी क्षेत्र में 89 है जबकि सरोजनी नगर, मोहनलालगंज, बीकेटी, काकोरी आदि क्षेत्र में डिस्ट्रीब्यूटर हैं। कोल्ड ड्रिंक कारोबार में मार्च से जून तक कंपनियों और डिस्ट्रीब्यूटरों के टारगेट भी पूरे हो जाते थे। इसके बाद कंपनियां माल सप्लाई के लिए वेटिंग देती थीं। पिछले वर्ष कोरोना लॉकडाउन से पहले तक कोल्ड ड्रिंक का सालाना 50 करोड़ का कारोबार हुआ था। अनलॉक में जब स्थिति सामान्य हुई तो एक बार फिर कारोबार बढ़ा, लेकिन अब दोबारा कोरोना संक्रमण बढ़ने के साथ ही कारोबार घटकर 40 फीसदी रह गया।
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कोल्ड ड्रिंक कारोबार ठप होने के कारण
- शादी समारोह कैंसिल होने व नाइट कर्फ्यू के कारण मांग घटी
- इम्युनिटी बढ़ाने के लिए गर्म पानी में काढ़ा पीना अपनाया है
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कोरोना काल में मिट्टी के मटकों की मांग बढ़ी
कोरोना काल में राजधानी में फिर से पीने के पानी के लिए मिट्टी के बने मटकों, सुराहियों की मांग बढ़ गई हैं। गोमतीनगर, चिनहट, मड़ियावं में मिट्टी के मटकों की डिमांड बढ़ने से कुम्हारों का काम बढ़ गया है। साथ ही इन्हें बेचने वाले भी उत्साहित हैं।
कोरोना महामारी से पहले कुम्हारों की शिकायत रहती थी कि फ्रिज का चलन बढ़ने की वजह से शहरों में मिट्टी के मटकों को कोई नहीं पूछता, लेकिन अब स्थिति दूसरी नजर आ रही है। राजधानी के बाजार में 50 रुपए से लेकर 1000-1200 रुपए तक के मटके उपलब्ध हैं। यहां लोकल बने माल के साथ गुजराती, राजस्थानी और दिल्ली के मटके भी उपलब्ध हैं। इन मटको में मिट्टी और बनावट का फर्क होता है। अब टोंटी वाले मटके भी उपलब्ध हैं।
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