संपादित: पेज:4-अपनों की अस्थियां लेने अब श्मशान घाट पर नहीं आ रहे हैं लोग
नगर निगम कर्मचारी और कर्मकांड करने वाले पुरोहित ही विसर्जित कर रहे हैं...
नगर निगम कर्मचारी और कर्मकांड करने वाले पुरोहित ही विसर्जित कर रहे हैं अस्थियां
लखनऊ। प्रमुख संवाददाता
लोग अब अपनों की अस्थियां लेने भी श्मशान घाट नहीं आ रहे हैं। अंतिम संस्कार करने के बाद लोग दोबारा पलट कर वापस श्मशान घाट नहीं आ रहे हैं। इसकी वजह से अस्थियां गोमती में ही विसर्जित हो रही हैं। इन्हें नगर निगम के कर्मचारी विसर्जित कर रहे हैं।
पहले भैसाकुंड तथा गुलाला घाट पर अंतिम संस्कार के बाद दूसरे दिन लोग अस्थियों के विसर्जन के लिए फूल चुनने आते थे। अपने माता, पिता, भाई, बहन की अस्थियों को कलश में रख कर बड़े विधि विधान से कानपुर के गंगा घाट और प्रयागराज संगम में विसर्जित करते थे। लेकिन जब से कोरोना की वजह से मौतों का सिलसिला बढ़ा है तब से लोगों ने अपनों के शव के दाह संस्कार के बाद अस्थियां लेने आना बंद कर दिया है।
पिछले एक महीने के भीतर ही करीब 2200 शव के अंतिम संस्कार के बाद इनकी अस्थियां लेने कोई नहीं आया। नगर निगम के कर्मचारियों ने अस्थियां गोमती नदी में डाल दी हैं। इसका सिलसिला रोजाना चल रहा है। यही वजह है कि गोमती के किनारे भैसाकुंड घाट के पास अब काफी ज्यादा राख और अस्थियां दिखती हैं। नगर निगम के अवर अभियंता बताते हैं मार्च में जब कम शव अंतिम संस्कार के लिए आते थे तब लोग दूसरे दिन अस्थियां लेने आ रहे थे। लेकिन जब से संक्रमण बढ़ा, ज्यादा लोगों का निधन होने लगा, अंतिम संस्कार के लिए कतारें लगने लगीं, तब से लोगों ने आना बंद कर दिया। नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि अस्थियां न ले जाने की एक बड़ी वजह कोरोना है। लोग संक्रमण के डर से श्मशान घाट नहीं आ रहे हैं। नगर निगम को प्लेटफार्म खाली कराना रहता है। ऐसे में वह इंतजार नहीं करता। कभी कभार देर रात तो कभी कभी सबेरे ही प्लेटफॉर्म की साफ सफाई करा दी जाती है।
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मार्च में ही फुल हो गए थे लॉकर
श्मशान घाट पर अस्थियों को रखने के लिए लॉकर बनाए गए हैं। यह लॉकर मार्च में भर गए थे। पहले एक-दो दिन में लोग अस्थियां निकाल ले जाते थे। लेकिन मार्च में जिन लोगों ने अस्थियां इसमें रखी थीं उन्होंने अभी तक नहीं निकालीं।
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बैकुंठ धाम भैसा कुंड में हैं 44 लाकर, रखी हैं करीब 500 लोगों की अस्थियां
भैसा कुंड श्मशान घाट पर कुल 44 बड़े लाकर बने हैं। जिसमें एक में करीब 12 से 13 लोगों की अस्थियां रखी जाती हैं। पोटली बनाकर लोग अस्थियां इसमें रखते हैं। अपनी सुविधा और मुहूर्त के हिसाब से गंगा और संगम में विसर्जन करते हैं। अब कोई अस्थियां लेने ही नहीं आ रहा है।
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