टोल प्लाजा के ठेके में कम स्टांप वसूली से 39 करोड़ का हुआ नुकसान
Lucknow News - Loss of Rs 39 crore due to less stamp collection in toll plaza contracts Loss of Rs 39 crore due to less stamp collection in toll plaza contracts Loss
- सीएजी के रिपोर्ट में उठाई गई आपत्ति - स्टांप वसूली में नियमों की हुई अनदेखी
लखनऊ- विशेष संवाददाता
विधानसभा में रखी गई भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे टोल प्लाजा के लिए ठेका देने में स्टांप शुल्क निर्धारण में नियमों की अनदेखी की है। इसके चलते सरकार को 39.61 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पट्टे के अंतर्गत आने वाले टोल का ठेका देने के लिए पंजीकृत अनुबंध किया जाना अनिवार्य है। भारतीय स्टांप अधिनियम अधिनियम में दी गई व्यवस्था के अनुसार पंजीकृत पट्टे पर दो फीसदी स्टांप शुल्क लिया जाना चाहिए। सीएजी ने रिपोर्ट में कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण में कहा गया है कि सितंबर 2019 में दो प्रतिशत स्टांप शुल्क लेने को कहा गया। पट्टे की तिथि से वास्तवित भुगतान की तिथि तक गणना की गई। कम स्टांप शुल्क की धनराशि पर प्रति माह डेढ़ प्रतिशत की साधारण ब्याज लिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त वर्ष दर वर्ष या एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए या वार्षिक किराया आरक्षित करने वाले अचल संपत्ति के पट्टो दस्तावेजों को निर्धारित दरों पर अनिवार्य रूप से पंजीकृत किया जाना चाहिए।
जांच में पाया गया है कि कुल निर्धारित धनराशि चार प्रतिशत दो प्रतिशत स्टांप व दो प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लिया जाना चाहिए था, लेकिन नियमों का पालन नहीं किया गया। सीएसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपीडा ने आईएस अधिनियम के अंतर्गत सार्वजनिक कार्यालय होने के बाद भी ठेकेदारों से न तो सही स्टांप शुल्क जमा कराया और न ही इन अनुबंधों को करने से पहले समय से पंजीकरण शुल्क सुनिश्चित किया गया। देरी से जमा किए जाने की वजह से स्टांप शुल्क 13.90 करोड़ और पंजीकरण शुल्क 17 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा है कि यूपीडा ने अपने उत्तर में कहा है कि सराकर ने इन दस्तावेजों के पंजीकरण की आवश्यकता को इंगित नहीं किया है। स्टांप शुल्क जमा करने और विधि के अनुसार अन्य अपेक्षाओं के संबंध में लागू कानूनों का पालन करना ठेकेदार का एकमात्र दायित्व था।
इसमें यह भी बताया गया है कि मेसर्स सहकार ग्लोबल लिमिटेड के प्रकरण में यूपीडा ने एजेंसी को लागू स्टांप शुल्क के भुगतान के लिए बाध्य करने के लिए सभी प्रयास किए और ठेकेदार को सूचित किया गया कि उसके द्वारा कम स्टांप शुल्क जमा करने पर उसका परफार्मेंस बैंक गारंटी जब्त कर लेगा। इसके बाद ठेकेदार न्यायालय में चला गया, जहां प्रकरण पर रोक लगा दी गई। इसके चलते यूपीडा ठेकेदार पर कार्रवाई नहीं कर पाया।
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