लखनऊ मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में खून की दलाली
केजीएमयू ब्लड बैंक की विभागाध्यक्ष व रेजिडेंट के जाली दस्तखत से खून की दलाली का भंड़ाफोड़ हुआ है। दलालों ने गार्ड और कर्मचारियों से मिलीभगत कर मुफ्त खून हजारों रुपये में बेच दिया। शिकायत पर चीफ...
केजीएमयू ब्लड बैंक की विभागाध्यक्ष व रेजिडेंट के जाली दस्तखत से खून की दलाली का भंड़ाफोड़ हुआ है। दलालों ने गार्ड और कर्मचारियों से मिलीभगत कर मुफ्त खून हजारों रुपये में बेच दिया। शिकायत पर चीफ प्रॉक्टर डॉ. आरएएस कुशवाहा ने चौक कोतवाली में तहरीर देकर मुकदमा दर्ज कराया है।
केजीएमयू में रोजाना 250 से 300 यूनिट खून की खपत है। सबसे ज्यादा करीब 125 यूनिट खून की आपूर्ति ट्रॉमा सेंटर में होती है। 50 यूनिट खून प्राइवेट अस्पताल में जाता है।
दलालों ने खून देने की चार चरणों की प्रक्रिया, जांच पड़ताल और बायोमेट्रिक सिस्टम को तार-तार कर दिया। दलाल ने मुफ्त खून दो से चार हजार रुपये में बेचा। मरीजों को बिना डोनर खून दिलाया। अधिकारियों ने कर्मचारियों के गठजोड़ की बात भी दबी जुबान में स्वीकार की। डॉ. तूलिका चन्द्रा के मुताबिक खून आपूर्ति फॉर्म पर डॉक्टरों के जाली दस्तखत कर दलालों ने जरूरतमंदों से पैसे ऐंठे।
ऐसे पकड़ा खेल :डॉ. तूलिका चन्द्रा के मुताबिक ब्लडबैंक में विभाग के डॉक्टर व रेजिडेंट के मोबाइल नम्बर आपस में जुड़े हैं। यदि विभाग का कोई डॉक्टर जरूरतमंद को बिना डोनर खून देने की सिफारिश करता है। कम्प्यूटर पर अपलोड होते ही सभी के मोबाइल पर एक संदेश आता है। शहर के हालात के मद्देनजर इंटरनेट सेवा व संदेश पर रोक लग गई। इस दौरान संदेश नहीं आया। दलाल सक्रिय हो गए। इंटरनेट चालू होने पर काफी संख्या में बिना डोनर खून देने की सिफारिश के संदेश आए।
ट्रॉमा में दलालों का जाल :प्रयागराज करछना निवासी दिलीप का एक माह का बच्चा एनआईसीयू में भर्ती है। 31 दिसम्बर को डॉक्टर ने बच्चे को खून चढ़ाने की सलाह दी।
दिलीप खून के लिए ट्रॉमा गेट पर पहुंचे। तभी दलाल ने बिना डोनर खून दिलाने का वादा किया। दलाल ने तीमाददार से खून का नमूना व फार्म लिया। ट्रॉमा में दस्तखत कर लाया। ब्लड बैंक पहुंचने पर फॉर्म पर दस्तखत फर्जी होने का पता चला। सीतापुर के रालामऊ निवासी राजकुमार कनौजिया को एक जनवरी के पास फर्जी हस्ताक्षर वाला फॉर्म पकड़ा गया।
मोबाइल से चल रहा खून का अवैध करोबार
केजीएमयू में दलाल खून का धंधा मोबाइल के सहारे चल रहे थे। वह जरूरतमंद को फर्जी दस्तखत कर फार्म देकर शताब्दी फेज दो के प्रथम तल पर भेजते थे। मोबाइल पर किस काउंटर पर जाना है और किस पर नहीं? इसके निर्देश देते थे।
विभागाध्यक्ष डॉ. तूलिका चन्द्रा ने कहा कि खून लेने के लिए सबसे पहले गार्ड के पास से एक और फॉर्म लेना होता है। उसके बाद डोनर का ब्लड प्रेशर और वजन की जांच होती है। तीसरे चरण पर डोनर के खून का नमूना लेकर हीमोग्लोबिन जांचा जाता है। इस दौरान मरीज के खून के नमूने की जांच होती है। संबंधित ग्रुप का खून होने पर ही आगे की कार्रवाई बढ़ाई जाती है। सबकुछ ठीक मिलने पर डोनर डॉक्टर के सामने पेश होते हैं। जरूरी जानकारी डोनर से हासिल की जाती है। उसके बाद बायोमेट्रिक जांच होती है। इसमें आंख व हाथ के निशान लिए जाते हैं ताकि तीन माह के भीतर रक्तदान की जानकारी पकड़ी जा सके।
सुल्तान, मोनू व हैदर हैं सरगना
शिकायती पत्र में खून के धंधे में सुल्तान खान, मो. मोनू व हैदर अब्बास को सरगना करार दिया गया है। यह लेटर फर्जी लेटर पैड का प्रयोग करते थे। मो. रशीद डॉक्टर की रिक्यूजीशन फार्म पर फर्जी हस्ताक्षर करते थे। मो. फैसल एक डॉक्टर का ड्राइवर है। अनिल दीक्षित पूर्व में गार्ड रह चुका है। इसके अलावा मो. आजाद, मो. शाहिल तीमारदारों को फांसकर लाते थे।
पीड़ित तीमारदारों को गवाह बनाया
दलालों के शिकार तीमारदारों को गवाह बनाया गया है। उनके बयान दर्ज कर लिए गए हैं। अब पुलिस गवाहों के माध्यम से सुबूत एकत्र करेगी। दलालों ने अब तक कितना यूनिट खून बेचा इसका आंकलन कराया जा रहा है। 20 से 25 यूनिट खून की दलाली का पता चला है।
डॉ. तूलिका चंद्रा
खून लेने की प्रक्रिया का जिक्र केजीएमयू में कहीं भी दर्ज नहीं है। जानकारी के अभाव में तीमारदार दलालों के चंगुल में फंस रहे हैं। इस धंधे को रोकने के लिए ब्लड बैंक से खून लेने की प्रक्रिया संबंधी जानकारी साइन बोर्ड के माध्यम से दी जाएगी।
डॉ. आरएएस कुशवाहा, चीफ प्रॉक्टर, केजीएमयू
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