बोले लखनऊ: बंदरों के आतंक से घर बन गए पिंजरे
कटखने बंदरों का शहर के कई इलाकों में आतंक हैं। हाल ही में बाबूगंज इलाके में बंदरों के दौड़ाने से छत से गिरकर एक युवक की हुई मौत हो चुकी है। छह माह में 100 से अधिक को बंदरों ने काटा
लखनऊ। शहर के कई इलाकों में बंदरों का आतंक है। बंदरों के झुंड निकलते हैं तो मोहल्लों में सन्नाटा पसर जाता है। लोग घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं। छतों पर धूप सेंक रहीं महिलाएं, बच्चे नीचे भाग आते हैं। सोमवार को डालीगंज क्षेत्र के बाबूगंज छोटा चांदगंज में बंदरों के झुंड़ ने लांड्री संचालक सुशील कनौजिया (37) की जान ले ली। उनके एक साल के बेटे, पांच साल की बेटी, वृद्ध मां और पत्नी रीना पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। परिवार में अब एक भी सदस्य कमाने वाला नहीं बचा। इस इलाके के लोग सहमे हुए हैं। कई परिवारों ने खुद को घरों में कैद कर लिया है। छतों और बालकनी पर जाना छोड़ दिया है। जाल लगाकर छत और बालकनी बंद करा दी है। बाबूगंज ही नहीं चिनहट, आशियाना, तेलीबाग में बंदरों का आतंक है। छह माह में इन इलाकों में 100 से अधिक लोगों पर बंदर हमले कर चुके हैं। इसके इतर कोई भी सरकारी विभाग जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। 2022 के एक आदेश का हवाला देकर वन अफसरों का कहना है कि बंदरों पर रोकथाम की जिम्मदारी नगर निगम, ग्राम पंचायतों की है, नगर निगम अफसरों का कहना है कि वन विभाग ही बंदर पकड़ता है।
छोटा चांदगंज के बाबू्गंज में दहशत
तमाम शिकायतों के बाद भी दोनों जिम्मेदार विभागों के अफसर कार्रवाई के नाम पर एक दूसरे के पाले में गेंद फेंक रहे हैं। हिन्दुस्तान की टीम बुधवार सुबह करीब 11 बजे बाबूगंज छोटा चांदगंज पहुंची। जानकारी होते ही हादसे में मृत सुशील के पत्नी रीना, मां लक्ष्मी के साथ बड़ी संख्या में मोहल्ले वाले जुट गए। रीना और लक्ष्मी फूट-फूटकर रो रही थी। लक्ष्मी ने कहा कि मेरे बुढ़ापे की लाठी टूट गई। इलाकौते बेटे की मौत नगर निगम और वन विभाग के अफसरों के कारण हो गई। परिवार में एक ही व्यक्ति कमाने वाला था। अब जीवन कैसे कटेगा। इतने बड़े हादसे के बाद भी जिम्मेदार विभाग के अफसरों ने कोई सुध नहीं ली। पास खड़े मनोज वर्मा ने बताया कि वह कई बार बंदरों के आतंक के संबंध में नगर निगम और वन विभाग में शिकायत कर चुके हैं। इसके बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई। लोगों ने बंदरों के खौफ से घरों से निकलना कम कर दिया है। मोहल्ले में रहने वाले नगर निगम के अफसर राजेश कुमार की पत्नी बबिता ने बताया कि बंदरों ने करीब एक साल पहले उनके बेटे को छत पर नोचा था। कई महीने तक हम लोग छत पर नहीं गए। उसके बाद सुरक्षा की दृष्टि से छत पर चारो ओर से जाल लगाकर बंद करा दिया गया। रेलवे से सेवानिवृत्त पड़ोसी सुनील की बहू को छह माह पूर्व बंदरों के झुंड सुशील की बहू को दौड़ा लिया था। वह छत से कूद गई थी। उनके दोनों पैर टूट गए थे। इसी तरह जनगणना विभाग से सेवानिवृत्त अफसर प्रवीन सिंह ने बताया कि उन्होंने बालकनी से लेकर किचन तक में जाली और गेट लगवा दिए हैं। कई बार बंदरों ने घरवालों और उन्हें दौड़ाया तो वह गिरते बचे। पूरे इलाके में बंदरों का आतंक है। इनके कारण ज्यादातर टाइम लोग घरों में ही बंद रहते हैं। मोहल्ले में रहने वाली सरिता वर्मा, छाया और गोपाल चौधरी ने बताया कि बंदरों के डर के कारण मोहल्ले में सब्जी वालों ने आना छोड़ दिया है। इस बीच आसिफ सब्जी का ठेला लेकर पहुंचा तो लोग वहां जुट गए। आसिफ ने बताया कि सब्जी लेकर यहां कभी कभार गलती से आ भी जाओ तो बंदरों का हमला हो जाता है। सब्जियां ठेले से उठा ले जाते हैं। इस लिए यहां आना बंद कर दिया है। कभी कभार आ जाते हैं।
बैग छीनकर फाड़ डालते हैं किताबे, कई बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ा
भीड़ देखकर बेटे विवान के साथ बाजार जा रहीं निधि मिश्रा रुक गईं। उन्होंने बताया कि बंदरों के आतंक के कारण कई बच्चों ने तो स्कूल जाना भी छोड़ दिया। एक महीने पहले बेटा स्कूल जा रहा था। बंदरों का झुंड पीछे से आया उसने बैग छीन लिया। उससे किताबें निकालकर फाड़ डाली। बेटा भागते समय गिरने से चोटिल भी हो गया था। कई दिन तक तो बेटा मारे डर के स्कूल नहीं गया। उधर, रामाधीन इंटर कालेज के 11वीं के छात्र नितिन मौर्या, कृष्णा वर्मा, हर्ष मौर्या, शिवम शर्मा, अभिषेक सोनकर, छात्रा कुमकुम वर्मा, प्रिया श्रीवास्तव ने बताया कि कई बार बंदर उन्हें भी दौड़ा चुके हैं। कृष्णा के मुताबिक बंदरों के दौड़ाने से वह एक बार नाली में गिरने से चोटिल हो गए थे। इसके बाद उन्होंने रास्ता बदल दिया था। वह रास्ता बदलकर स्कूल घूमकर जाते हैं। बुधवार को वह कालेज की एक्स्ट्रा क्लास के लिए लेट हो रहे थे। इस लिए छोटा चांदगंज के रास्ते निकलना पड़ा।
दुकानदारों ने मुख्य गेट पर लगा दी जाली
वहीं, किराना दुकानदार अशोक कुमार, किशन कुमार व अन्य ने बताया कि बंदर दुकान में रखा सामान उठा ले जाते हैं। इस लिए सुरक्षा की दृष्टि से गेट पर जाली लगाकर रखी है। खाने का सामान जाली की आड़ में छिपाकर रखते हैं। कई बार बंदरों का झुंड बड़ा नुकसान कर चुका है। ब्रेड, बिस्कुट उठा ले जा चुके हैं। खरीदारी के लिए आने वाले लोगों का भी समान छीनकर भाग जाते हैं।
कैमरा देखते ही आक्रामक हुए बंदर
दोपहर करीब 12 बजे मोहल्ले में एकाएक बंदरों का झुंड आ गया। कोई बिजली के तारों के ऊपर था तो कुछ खंभे और दीवार पर बैठे थे। छायाकार ने जैसे ही उनकी फोटो खींचनी शुरू की। बंदरों ने खौखियाना शुरू कर दिया। यह देख आस पास खड़े कुछ लोग और बच्चे डर के मारे भाग खड़े हुए।
प्राथमिक विद्यालय की मिड मिल पर भी बंदरों का झपट्टा
प्रतापनाराण, अविनाश चंद्र और नसीम अहमद ने बताया कि मोहल्ले में ही श्री दुर्गा देवी गीता विद्यालय और बालिका विद्यालय है। यहां मिड डे मिल का खाना रोज आता है। बच्चों को खाना खाना मुश्किल हो जाता है। खाना उतरते और वितरित होते समय दोपहर में बंदरों का झुंड आ जाता है। कई बार झपट्टा मार कर रोटियां आदि ले जाता है। खाता वितरित करने वालों पर झपट्टा मार कर बंदर भगा देते हैं।
चंदा लकाकर बांधे गए थे लंगूरी बंदर, अब लगाए पोस्टर
मोहल्ले में रहने वाले मोहम्मद तारिक, नसीम अहमद और अविनाश चंद्र ने बताया कि बंदरों को भगाने के लिए सबने चंदा लगाकर लंगूरी बंदर मंगाकर पांच से छह घरों के छतों और मोहल्ले में जगह जगह बांधे गए थे। इसके बाद कुछ दिन तक बंदर नहीं आए। अब फिर आतंक बढ़ गया है। इतना खर्च अब मोहल्ले वाले झेल नहीं पा रहे हैं। इस लिए घरों के बाहर और आस पास छतों पर लंगूरी बंदर के पोस्टर लगा दिए गए हैं।
तेलीबाग में कई परिवारों पर हो चुके हमले
लखनऊ। तेलीबाग क्षेत्र में बंदरों के हमले जारी हैं। बंदरों के हमले, बचने की कोशिश में तमाम लोग जख्मी हो चुके हैं। लोगों की समझ में नहीं आता कि कहां और किससे शिकायत करें। खुद ही अपनी रक्षा करते हैं। तमाम लोगों ने घर की बालकनी, छतों पर जाल लगवा लिया। देवी खेड़ा निवासी वैभव जयसवाल ने बंदरों के हमले से तंग आकर पूरे घर को पिंजड़ा बना दिया है।
बंदरों के हमले की घटनाएं
28 जनवरी को कल्ली पश्चिम के कटे भीट निवासी किरण मिश्रा (53) छत पर कपड़े उतरने गई थी। अचानक बंदरों के झुंड ने काट कर लहूलुहान कर दिया। इससे पहले इनके बेटे जय मिश्रा को भी बंदरों ने काटा था।
उतरेठिया निवासी रेनू शर्मा (54) दिन के समय घर में अकेली थी। दो बंदर घर में घुस गए, उन्होंने भगाना चाह तो हमला कर दिया। शोर मचाने पर बेटा सचिन बचाने आया तो उसको भी दौड़ाया, रेनू शर्मा को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा
तेलीबाग क्षेत्र के गांधी नगर में भी बंदरों ने एक सप्ताह के भीतर आधा दर्जन से अधिक लोगों को काटा है। इसमें ज्यादातर महिलाएं हैं। नंद किशोर की पत्नी इंदू देवी, शैलेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी धनावती को निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। रामू सिंह की पत्नी साधना देवी, कमल सिंह की पत्नी माधुरी सिंह, मलखान सिंह की पत्नी दुलारा देवी, सुशील कुमार के बेटे उंमग को बंदर काट चुका है।
प्रस्तुति: सौरभ शुक्ला, आशीष गुप्ता, सरोज सिंह, फोटो- रीतेश यादव
लोगों का दर्द
‘कुछ माह पहले छत पर पतंग उड़ा रहा था। इस बीच एकाएक बंदरों का झुंड आ गया। बंदरों ने दौड़ा लिया। कुछ रास्ता नहीं दिखाई दिया तो जान बचाने के लिए छत से ही कूद गया। दोनों पैर टूट गए थे। बिस्तर पर चार महीने पड़ा रहा। अब जाकर ठीक हुआ हूं पर छत पर जाना छोड़ दिया है।’
सुशील कुमार
‘बंदरों के कारण यहां रहना मुश्किल हो गया। कपड़े, सामान उठा ले जाते हैं। आए दिन लोगों को काटते हैं। हर समय लोग बंदरों के कारण खौफ में रहते हैं। कई बार नगर निगम और वन विभाग को पत्र लिखे गए पर अफसरों ने कोई सुनवाई नहीं की। वह एक दूसरे पर टाल देते हैं। लोग बेहद डरे हैं।’
मनोज कुमार वर्मा
‘दुकान में बंदरों के कारण बैठना मुश्किल हो गया है। अधिकतर समय तो मुख्य गेट बंद ही रखते हैं। शाम और दोपहर में बंदरों का झुंड अधिक होता है। वह दुकान से सामान उठा ले जाते हैं। बंदरों के कारण ग्राहक भी आने से डरने लगे हैं। कई ग्राहकों को भी बंदर काट चुके हैं।’
किशन कुमार वर्मा
‘गर्मियों में अकसर बिजली की आवाजाही बनी रहती है। उस समय हम लोग अगर चाहें की कुछ देर के लिए छत पर बैठ जाएं अथवा वहीं फर्श पर पानी डालकर सो जाएं तो यह नहीं कर सकते हैं। आए दिन बिजली के तारों पर लटककर बंदर तोड़ डालते हैं। इसके बाद तार बनवाने का झंझट होता है।’
गोपाल चौधरी
‘ठंड में कपड़े घर के अंदर नहीं सूखते हैं। हम लोग छत पर बंदरों के डर के कारण नहीं डाल पाते हैं। बंदर कपड़े उठा कर ले जाते हैं और फाड़ डालते हैं। किचन का दरवाजा बंद करके खाना भी बनाना पड़ता है। बंदर किचन में घुस जाया करते हैं। वहां से खाने पीने का सामान उठा ले जाते हैं।’
सरिता वर्मा
‘छत पर लगे गमले आदि बंदर सब तोड़ डालते हैं। घर के बाहर पाकड़ का पेड़ है उस पर दिन भर बंदरों का जमावड़ा रहता है। ठंड में तो तड़के करीब तीन बजे से ही बंदर खौखियाना शुरू कर देते हैं। दोपहर में पेड़ पर रहते हैं शाम को फिर छतों पर आ जाते हैं। कई बार बंदरों के दौड़ाने के कारण छत से गिरते बचे।’
छाया
‘बंदरों का आतंक इस कदर है कि एक महीनें में 15-20 लोगों को काट चुके हैं। बंदर बालकनी और छतों, दीवारों पर बैठे ही रहते हैं। अगर इन्हें डंडा दिखाकर भगाने की कोशिश करो तो जाते नहीं हैं। यह ऊपर ही कूदने की कोशिश करते हैं। बंदरों से पूरा इलाका परेशान है। इसके बाद भी प्रशासन कोई सुनवाई नहीं करता है।’
संगीता वर्मा
‘आलमबाग के राम प्रसाद खेड़ा में भी बंदरों का बहुत अधिक आतंक है। आए दिन किसी न किसी को काटते रहते हैं। इनके कारण लोग छत पर कपड़े नहीं फैला पाते हैं। होली के समय चिप्स, पापड़ तक बनाना मुश्किल होता है। झपट्टा मार कर बंदर सब उठा ले जाते हैं। डंडा दिखाओ तो काटने दौड़ते हैं।’
नीतू शर्मा
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