बोले लखीमपुर खीरी: लोक कलाकारों को ऑडिटोरियम और उचित मंच मिले तो निखरेगी कला
Lakhimpur-khiri News - लखीमपुर खीरी के कलाकार अपनी कला को निखारने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां संसाधनों और प्रशिक्षण की कमी के कारण उनकी प्रतिभा का सही तरीके से प्रदर्शन नहीं हो पा रहा है। कलाकारों का कहना है कि उन्हें...
लखीमपुर खीरी जिले में कला और संस्कृति की समृद्ध परंपरा रही है, लेकिन आज भी यहां के कलाकार अपने हुनर को निखारने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जिले में लोक कलाओं और रंगमंच के क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन मंच, संसाधनों और प्रशिक्षण की कमी ने उनकी कला को प्रकट होने से रोक रखा है। यह समस्या सिर्फ लखीमपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे जिले के कलाकार इसके दंश को झेल रहे हैं। यदि प्रशासन और सांस्कृतिक विभाग इन कलाकारों की समस्याओं का समाधान करें और उन्हें बेहतर सुविधाएं और अवसर प्रदान करें, तो यह न केवल उनकी कला को सम्मानित करेगा, बल्कि समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी बचाए रखेगा। लखीमपुर में लगभग पांच हजार कलाकार सक्रिय हैं, जिनमें से कई लोक कला, रामलीला, नुक्कड़ नाटक, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं। कुछ कलाकार तो अयोध्या और काशी जैसे प्रसिद्ध शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें अपने ही जिले में सम्मानजनक मंच नहीं मिल पाता। ये कलाकार अपने काम को लेकर बेहद उत्साही हैं, लेकिन उचित मंच और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण उनकी मेहनत अधूरी रह जाती है।
कलाकारों का कहना है कि उन्हें अपनी कला के लिए प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। एक तरफ जहां वे छोटे-छोटे आंगनों में प्रैक्टिस कर खुद को तैयार कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें उचित प्रशिक्षण और मंच के बिना अपनी कला को संवारने का अवसर नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं, अश्लीलता और हल्के-फुल्के कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार बढ़ने से कला प्रेमियों का उत्साह भी ठंडा हो गया है। कलाकारों का कहना है कि आजकल समाज में ओछी सोच का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे उनकी कला का मूल्य कम हो रहा है और उनका हौसला टूट रहा है।
लखीमपुर के कलाकारों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिले में एक भी प्रेक्षागृह या ऑडीटोरियम नहीं है, जहां वे अपनी प्रस्तुतियों की प्रैक्टिस कर सकें। दशकों से इस बात की मांग की जा रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। गोला में नगर पालिका द्वारा ऑडीटोरियम का निर्माण शुरू किया गया था, लेकिन कई साल बीतने के बाद भी यह अधूरा पड़ा हुआ है। इसके बावजूद जब नया नगरपालिका अध्यक्ष आया, तो उसने एक महीने में ऑडीटोरियम बनाने का वादा किया था, पर अब वह भी भूल चुका है। बिना प्रेक्षागृह के कलाकारों को पार्कों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अभ्यास करना पड़ता है, जहां उन्हें अराजक तत्वों का सामना करना पड़ता है।
कलाकारों का कहना है कि यदि उन्हें एक स्थायी ऑडीटोरियम और उचित मंच मिल सके, तो उनकी कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है। लखीमपुर महोत्सव में उन्हें अपनी कला दिखाने का अवसर मिला था, और कलाकारों ने वहां अच्छा प्रदर्शन भी किया। वे कहते हैं कि ऐसे अवसर लगातार मिलते रहें तो उनका हौसला बढ़ेगा और कला को सम्मान मिलेगा।
रामलीला के कलाकारों की स्थिति भी खराब
रामलीला के कलाकारों की भी स्थिति बहुत अलग नहीं है। यहां के कलाकार अयोध्या की रामलीलाओं में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन जिले में उन्हें कभी भी रामलीला में भाग लेने का मौका नहीं मिलता। यह कलाकार चाहते हैं कि जिले में भी उन्हें रामलीला और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपने हुनर को दिखाने का अवसर मिले।
पुरानी लोक कलाओं को बचाना जरूरी
इसके अलावा, लखीमपुर जिले की लोक कलाओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए भी काम किया जा रहा है। आनंद अग्निहोत्री, जो रंगमंच के कलाकार और प्रयास संस्था के प्रमुख हैं, बताते हैं कि आजकल की युवा पीढ़ी पुरानी लोक कलाओं से परिचित नहीं है। लिल्ली घोड़ी, कठपुतली, हुड़ुक और मोरबीन नृत्य जैसे पारंपरिक कार्यक्रम अब विलुप्त हो चुके हैं, जबकि ये कभी समाज के प्रमुख मनोरंजन के साधन हुआ करते थे। उनकी संस्था इन लोक कलाओं को जीवित रखने का प्रयास कर रही है और विभिन्न मंचों पर इनका प्रदर्शन कर रही है।
योजनाओं का नहीं मिल पा रहा लाभ
इन कलाकारों को शासन स्तर पर कई योजनाओं का आश्वासन मिलता है, लेकिन जब बात धरातल पर क्रियान्वयन की आती है, तो वे योजनाएं पूरी तरह से विफल हो जाती हैं। कलाकारों का कहना है कि शासन से कई उपकरण और संसाधन मिलने की बात की जाती है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इनका सही तरीके से वितरण नहीं होता। न तो उन्हें कोई नए उपकरण मिलते हैं और न ही किसी प्रकार का सरकारी सहयोग मिलता है। कलाकार अपने निजी खर्चे पर अपनी तैयारियां करते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हो रही है।
भारतीय और नेपाली कलाकारों के बीच मिला कला दिखाने का अवसर
इन कलाकारों ने भारत-नेपाल मैत्री समारोह में भी अपनी प्रस्तुतियां दी हैं, जहां उन्हें भारतीय और नेपाली कलाकारों के बीच अपनी कला दिखाने का अवसर मिला। वे बताते हैं कि खीरी जिले में साल में दो बड़े सांस्कृतिक मेले होते हैं, लखीमपुर का दशहरा मेला और गोला का चैती मेला। लेकिन इन मेलों के मंचों पर भी लोक कलाओं और रंगमंच के लिए कोई स्थान नहीं मिलता। इन मेलों में चकाचौंध वाले संगीत और गीत कार्यक्रमों का बोलबाला रहता है, जबकि लोक कला और रंगमंच को नजरअंदाज किया जाता है।
हमारी भी सुनें:
सेजल साहू ने बताया कि अन्य जिलों में लड़कियां आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। हमारे हुनर को आज गलत ढंग से पेश किया जाता है। कलाकारों की प्रतिभा निखरकर सामने आने के लिए मंच की जरूरत है। मैंने जब सीखना शुरू किया था, तब घर वालों को बिना बताए यह सफर शुरू किया था, लेकिन आज वे मेरे साथ हैं। हालांकि, कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए उपयुक्त मंच की कमी खलती है। मैंने शॉर्ट फिल्म में भी अभिनय किया है, लेकिन ऑडिटोरियम की अनुपलब्धता के कारण हमारी कला को सही मंच नहीं मिल पाता।
हर्ष अग्निहोत्री ने बताया कि उन्होंने बचपन से ही ढोलक बजाना शुरू कर दिया था। मात्र 3 साल की उम्र से वे ढोलक बजा रहे हैं। स्कूल के शुरुआती दिनों से ही विभिन्न कार्यक्रमों में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया। कई मंचों पर अपनी प्रस्तुति दी, लेकिन जिले में कलाकारों के लिए उचित प्लेटफार्म की कमी बनी हुई है। प्रशासन और शासन को कलाकारों के लिए मंच उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे उनकी प्रतिभा निखरकर सामने आ सके।
राजन शर्मा ने बताया कि वे लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन उन्हें अपनी कला को निखारने के लिए उचित मंच नहीं मिल रहा है। बिना संसाधनों के कोई भी प्रयास व्यर्थ हो जाता है, वैसे ही बिना मंच के कलाकारों की मेहनत अधूरी रह जाती है। उन्हें सरकार से उम्मीद है कि कलाकारों के लिए समुचित व्यवस्था की जाएगी।
अंशिका शुक्ला ने बताया कि वे पिछले 5 वर्षों से डांसिंग सीख रही हैं। लखीमपुर में उन्होंने पहली बार अपनी प्रतिभा को मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया। ऐसे मंचों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि कलाकारों को अपनी कला को निखारने और प्रदर्शित करने का अधिक अवसर मिल सके।
दीपक गुप्ता ने बताया कि वे पिछले 30 वर्षों से इस कला से जुड़े हुए हैं। पहले वे आर्केस्ट्रा में काम करते थे, लेकिन आज तक उन्हें ऐसा कोई मंच नहीं मिला, जिससे वे आगे बढ़ पाते। क्षेत्रीय कार्यक्रमों की संख्या भी घट रही है, जिससे कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने के अवसर कम मिल रहे हैं। वर्षों की मेहनत के बावजूद वे वहीं के वहीं रुके हुए हैं और आगे बढ़ने के लिए उचित मंच की जरूरत महसूस कर रहे हैं।
निरी मुस्कान ने बताया कि उनके पिताजी रंगमंच कलाकार और गायक रह चुके हैं। वे इस समय आर्टिस्ट के रूप में काम कर रहे हैं। पिताजी से प्रेरणा पाकर उन्होंने भी सीखना शुरू किया। उन्हें सीखते हुए 5 महीने हो चुके हैं, लेकिन मंच की कमी उन्हें खलती है। वे कहती हैं कि कलाकारों को अपनी प्रतिभा को निखारने और प्रदर्शित करने के लिए सही प्लेटफार्म मिलना बहुत जरूरी है।
मानवी श्रीवास्तव ने बताया कि उन्हें प्रैक्टिस करने में ऑडिटोरियम की कमी सबसे बड़ी समस्या लगती है। सार्वजनिक रूप से सीखने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई बार जान-पहचान वाले देखकर मजाक भी बनाते हैं। कलाकार मेहनत तो बहुत करते हैं, लेकिन ऑडिटोरियम न होने के कारण उनकी तैयारी में बाधा आती है। यदि उचित अभ्यास स्थल मिले तो कलाकार बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
शिव प्रसाद शक्ति ने बताया कि उन्होंने 15 वर्ष की उम्र से इस क्षेत्र में कदम रखा था और अब वे 64 वर्ष के हो चुके हैं। वे मानते हैं कि शहर में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने के लिए सही मंच नहीं मिल पाता। सरकार और प्रशासन को कलाकारों को उचित मंच देने के लिए काम करना चाहिए, जिससे हर उम्र के कलाकार अपनी प्रतिभा को निखार सकें। उन्होंने बताया कि उन्होंने छोटी उम्र से रामायण पढ़ने की शुरुआत की और धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लिया। वे लेखक और गायक के रूप में भी सक्रिय हैं।
मुनीर खान ने बताया कि वे 75 वर्ष के हो चुके हैं। उन्होंने 1975 में लखीमपुर से बॉम्बे का रुख किया था। कुछ वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें वहां आर्ट डायरेक्शन में काम मिला। 2020 में वे लखीमपुर लौट आए और अब वे छोटे कलाकारों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि लखीमपुर के कलाकार अपनी प्रतिभा को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा सकें, पर संसाधनों की कमी कहीं न कहीं इन प्रतिभाशाली कलाकारों के भविष्य में अर्चन बनी हुई है।
प्रयास संस्था के अध्यक्ष आनंद अग्निहोत्री ने बताया कि वे लगभग 42 वर्षों से इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इनमें से 22 वर्षों से वे भारत सरकार और प्रदेश सरकार के रजिस्टर्ड आर्टिस्ट हैं। वे पिछले 20 वर्षों से अपने शहर के बच्चों को इस कला में प्रशिक्षित कर रहे हैं। वे मानते हैं कि यदि कलाकारों को मंच मिले, तो वे और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
रोहड़ी श्रीवास्तव ने बताया कि लखीमपुर महोत्सव जैसे कार्यक्रम नियमित रूप से होने चाहिए। अब लोग कलाकारों को पहचानने लगे हैं, जिससे उनकी कला को नई पहचान मिल रही है। ऐसे आयोजनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि स्थानीय कलाकारों को आगे बढ़ने का अवसर मिल सके।
समस्याएं:
1. शहर में थिएटर और प्रेक्षागृह की अनुपस्थिति के कारण कलाकारों को अभ्यास और मंचन के लिए उपयुक्त स्थान नहीं मिल पा रहा है।
2. रामलीला और नाटक करने वाले कई कलाकार आर्थिक रूप से कमजोर हैं, जिसके कारण उन्हें अपनी कला के साथ-साथ पार्ट-टाइम काम करने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है।
3. नाट्य कला में रुचि रखने वाले नए कलाकारों को अपनी कला में आगे बढ़ने के लिए कोई ठोस दिशा और समर्थन नहीं मिल रहा।
4. कला और संस्कृति विभाग थिएटर के विकास और कलाकारों के प्रशिक्षण पर आवश्यक ध्यान नहीं दे रहा, जिससे कलाकारों के लिए उचित संसाधन और अवसरों की कमी हो रही है।
5. नुक्कड़ नाटकों के लिए आवंटित बजट का सही तरीके से उपयोग नहीं हो रहा, और अधिकतर पैसा फ्लैक्सी और होर्डिंग्स पर खर्च किया जा रहा है, जबकि वास्तविक कलाकारों और कार्यक्रमों को समर्थन नहीं मिल रहा है।
सुझाव:
1. शहर में एक स्थायी थिएटर और प्रेक्षागृह का निर्माण किया जाए, ताकि कलाकारों को नियमित अभ्यास और मंचन के लिए उचित स्थान मिल सके और उनकी कला का सम्मान हो सके।
2. थिएटर के निर्माण से कलाकारों को नियमित रिहर्सल करने का अवसर मिलेगा, जिससे उनकी कला निखर सकेगी और वे बड़े मंचों पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकेंगे।
3. शहर के वरिष्ठ और अनुभवी कलाकारों के नेतृत्व में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए, जिससे रामलीला और नाट्य कला को बढ़ावा मिले और कलाकारों को नए मंच मिल सकें।
4. सप्ताह में कम से कम दो-तीन दिन वरिष्ठ और नए कलाकारों के बीच नाट्य कला पर संवाद और कार्यशालाएं आयोजित की जाएं, ताकि नई पीढ़ी को अनुभवी कलाकारों से मार्गदर्शन मिल सके और उनकी कला में सुधार हो सके।
5. शहर के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नाटक कला को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए, और कलाकारों को मंच प्रदान करने के लिए विविध आयोजन आयोजित किए जाएं, ताकि उनकी कला को व्यापक पहचान मिल सके और वे उत्साहित रहें।
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